कोरोनरी स्टेंट की कीमतें हो सकती हैं ​कम, विशेषज्ञ गुणवत्ता को लेकर हैं आशंकित

नई दिल्ली। देश में लाखों दिल के मरीज़ों को राहत मिल सकती है। एनपीपीए यानी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथोरिटी जल्द ही कोरोनरी स्टेंट की कीमतें तय करेगी। इस कदम से जीवनरक्षक मेडिकल डिवाइस के किफ़ायती होने की संभावना है। यहां यह बताना आवश्यक है कि नवम्बर 2022 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोनरी स्टेंट को ज़रूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल करते हुए कोरोनरी स्टेंट की कीमतें तय करने की सलाह दी थी।

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी अधिसूचना के अनुसार सरकार ने 2018 में स्टैण्डिंग नेशनल कमेटी ऑन मेडिसिन्स का गठन किया था। इस कमेटी ने 9 सितम्बर को अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्वीकृति दे दी गई। तत्पश्चात, स्टैण्डिंग नेशनल कमेटी ऑन मेडिसिन्स ने 6 नवम्बर को कोरोनरी स्टेंट की दो श्रेणियां बेयर मैटल स्टेंट और ड्रग एल्युटिंग स्टेंट जिसमें मैटेलिक डीईएस और बायोरिज़ॉर्बेबल वैस्कुलर स्काफोल्ड/ बायोडीग्रेडेबल स्टेंट शामिल हैं, को आवश्यक दवाओं की श्रेणी में शामिल करने की अनुशंसा की।

दिल की बीमारियां दुनिया भर में मौतों का मुख्य कारण है, जिसकी वजह से विश्व में हर साल 17.9 मिलियन ज़िंदगियां चली जाती हैं। दुनिया भर में दिल की बीमारियों के 60 फीसदी मामले भारत में दर्ज किए जाते हैं। उम्मीद है कि कीमतें तय करने से दिल के मरीज़ों को बड़ी राहत मिलेगी। हालांकि इससे गुणवत्ता और किफ़ायती दामों के बीच तर्क-वितर्क की संभावना भी बढ़ेगी।

कुछ विशेषज्ञ, अपना नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि 2017 से जब केन्द्र सरकार ने पहली बार कोरोनरी स्टेंट की कीमतें कम करने की घोषणा की थी, कुछ कंपनियों ने कोरोनरी स्टेंट्स को भारतीय बाज़ार से हटा लिया गया था। इनमें एबॉट का ज़ाइंस अल्पाइन और एब्ज़ॉर्ब बॉस्टन साइंटिफिक—सिनर्जी शामिल हैं। कुछ विशेषज्ञों ने आशंका जताई है ​कि कीमतें तय करने से देश में आधुनिक मेडिकल टेक्नोलॉजी इनोवेशन्स में कमी आएगी।

मैक्स हास्पीटल के डॉ.विवेका कुमार ने कहा कि महामारी के बाद कई मरीज़ों पर प्रभाव पड़ा। आज मरीज़ सजग हो गए हैं और बीमारी के घातक परिणाम या सर्जरी की नौबत आने से पहले ही इलाज करवा लेना चाहते हैं। अन्य देशों में आधुनिक प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी आसानी से इंटरनेट पर सुलभ है, जो इलाज करने वाले चिकित्सक को दुविधा में डाल देगी, जब ये सभी तकनीकें भारत में उपचार के लिए उपलब्ध नहीं होंगी।

डॉ. प्रवीण चन्द्रा, जो मेदांता मेडीसिटी अस्पताल, गुड़गांव से जुड़े हुए हैं, ने भी ऐसे ही विचार प्रकट किए और बताया कि ‘पिछले 20 सालों में स्टेंट टेक्नोलॉजी मैटल स्टेंट से विकसित होकर ड्रग एल्युटिंग स्टेंट, पतले-स्ट्रूट स्टेंट और बायोडीग्रेडेबल पॉलिमर कोटेड डीईएस तक विकसित हुई है। हर इनोवेशन के साथ सुरक्षा के स्तर में सुधार आया है और मरीज़ों के लिए जोखिम की संभावनाएं कम हुई हैं। आज जटिल मरीज़ भी इलाज के लिए आगे आ रहे हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि मरीज़ों के लिए स्टेंटिंग एवं आधुनिक देखभाल के सभी विकल्प उपलब्ध हों।’

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button