भारतीय कर्मचारियों में बर्नआउट, चिंता, डिप्रेशन और मानसिक तनाव के लक्षण बड़े पैमाने पर

लिव लव लाफ फाउंडेशन ने पेश किया डेटा-आधारित रोडमैप

द लिव लव लाफ फाउंडेशन जो 2015 में स्थापित एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, ने आज अपने कॉर्पोरेट मेंटल हेल्थ एंड वेल-बीइंग प्रोग्राम की शुरुआत की। यह एक व्यापक और शोध-आधारित पहल है, जिसे पूरे भारत में संगठनों को मानसिक रूप से मजबूत कार्यस्थल तैयार करने में मदद करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है।

मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारतीय कर्मचारियों में बर्नआउट, चिंता, डिप्रेशन और मानसिक तनाव के लक्षण बड़े पैमाने पर देखे जा रहे हैं। करीब 60% कर्मचारियों ने बर्नआउट की शिकायत की, जबकि 51% ने बताया कि वे काम के भारी दबाव में हैं। ये आंकड़े कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

डॉ. श्याम भट, चेयरपर्सन, द लिव लव लाफ फाउंडेशन ने कहा, “भारतीय कंपनियों को सिर्फ कर्मचारी सहायता कार्यक्रमों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। सालाना सर्वेक्षण या तात्कालिक उपायों की बजाय, हमें कार्यस्थल की मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों की जड़ तक पहुंचने और उन्हें दूर करने के लिए डेटा-आधारित और व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाना होगा। अगर हम जागरूकता फैलाएं, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को कम करें और ठोस जानकारी के आधार पर कदम उठाएं, तो कंपनियां ऐसे समाधान तैयार कर सकती हैं जो वास्तव में असरदार हों।”

सितंबर 2022 में, डेलॉइट ने अनुमान लगाया कि भारत में कर्मचारियों के खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण भारतीय कंपनियों को हर साल ₹1,10,000 करोड़ (लगभग 14 अरब अमेरिकी डॉलर) का नुकसान होता है।
किरण मजूमदार-शॉ, ट्रस्टी, द लिव लव लाफ फाउंडेशन एवं चेयरपर्सन, बायोकॉन ग्रुप ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य का एक जरूरी हिस्सा है, और कंपनियों को समझना चाहिए कि इसका सीधा असर उनकी उत्पादकता, नवाचार और दीर्घकालिक मजबूती पर पड़ता है। अगर कर्मचारी तनाव में हैं और कार्य से जुड़ाव नहीं महसूस कर रहे, तो यह उनकी क्षमता और नए विचारों को बाधित करता है, जिससे कारोबार और अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित होते हैं।

हमें एक ऐसा माहौल बनाना होगा जो सहानुभूति पर आधारित हो, जहां लोग मानसिक रूप से सुरक्षित महसूस करें, खुलकर बात कर सकें और जरूरत पड़ने पर मदद ले सकें। मानसिक कल्याण कार्यों में निवेश करना सिर्फ एक नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक समझदारी भरा व्यवसायिक फैसला भी है जो कंपनी और देश की अर्थव्यवस्था — दोनों को मजबूत करता है।”

अनीशा पादुकोण, सीईओ, द लिव लव लाफ फाउंडेशन ने कहा, “पिछले दस वर्षों से लिव लव लाफ ने अलग-अलग समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काम किया है। अब हम मानते हैं कि कार्यस्थल पर मानसिक सेहत को गंभीरता से लेना भी उतना ही ज़रूरी है। इसी सोच के तहत हमने एक ऐसा विशेष कार्यक्रम तैयार किया है, जो नेतृत्वकर्ताओं, प्रबंधकों और कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य को अपनी कार्य-संस्कृति का अहम हिस्सा बनाने में मदद करता है। यह कार्यक्रम कंपनियों को हर साल अपने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों को समझने और सुधारने में सहयोग करेगा। आने वाले समय में विभिन्न संस्थानों से मिले इन अनुभवों के ज़रिए नीति-निर्माण से जुड़ी चर्चाओं में भी योगदान मिलेगा और बड़े बदलाव लाने का रास्ता बनेगा।”

द लिव लव लाफ फाउंडेशन का यह कार्यक्रम कई कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ मिलकर पायलट स्तर पर आज़माया गया और शोध के आधार पर विकसित किया गया है। इसमें एचआर लीडर्स के साथ बातचीत और प्रायोगिक परियोजनाओं से मिली जानकारी को शामिल किया गया। इन प्रयासों से यह सामने आया कि अब कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य को एक प्राथमिक व्यापारिक ज़रूरत के रूप में देखने लगी हैं। कंपनियों की नई पहलों में नेतृत्व का सहयोग, कर्मचारियों की भावनात्मक स्थिति पर ध्यान, जागरूकता अभियानों का आयोजन, अलग-अलग कर्मचारी समूहों के लिए विशेष समर्थन और नेतृत्वकर्ताओं द्वारा अपनी मानसिक चुनौतियों को साझा करके विश्वास का माहौल बनाना शामिल है।
हालांकि इन सकारात्मक बदलावों के बावजूद, अब भी कई कंपनियाँ बिखरे हुए और अल्पकालिक उपायों पर ही निर्भर हैं, जिनमें समुचित ढांचा और निरंतरता की कमी है। इसी खाई को पाटने के लिए एलएलएल ने एक ऐसा प्रामाणिक कार्यक्रम तैयार किया है जो शोध और वास्तविक अनुभवों के आधार पर कर्मचारियों की भलाई के लिए व्यावहारिक रणनीतियाँ प्रदान करता है।
इस कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण विशेषता है — कर्मचारी मानसिक स्वास्थ्य और भलाई का आकलन, जिसे मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट के सहयोग से विकसित किया गया है। यह कंपनियों को अपने कर्मचारियों की ज़रूरतों को बेहतर तरीके से समझने और उनके लिए अनुकूल सहायता योजनाएं बनाने में मदद करता है।

जैकलीन ब्रेसी, रिसर्च साइंस डायरेक्टर और हेल्दी वर्कफोर्सेज की को-डायरेक्टर, मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट, ने कहा, “कंपनियों के सामने यह एक बड़ा अवसर और ज़िम्मेदारी है कि वे अपने कर्मचारियों की संपूर्ण भलाई और बर्नआउट की वजहों को समझें और उसका समाधान करें। हमें द लिव लव लाफ फाउंडेशन के साथ मिलकर काम करने पर गर्व है, ताकि कंपनियां ऐसी कार्य-संस्कृति बना सकें जिसमें मानसिक सेहत को प्राथमिकता दी जाए, इससे जुड़ा संकोच कम हो और लोग आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।”

कार्यक्रम के प्रमुख स्तंभ:
● साइकोमेट्रिक रूप से प्रमाणित आकलन: यह टूल कंपनियों को उनके कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और भलाई के अलग-अलग पहलुओं की गुमनाम, डेटा-आधारित जानकारी उपलब्ध कराता है। इस स्कोर की तुलना मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट के व्यापक शोध के आधार पर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ की जाती है।

● कस्टमाइज रिपोर्ट और उपयोगी जानकारियां: प्रत्येक कंपनी को मूल्यांकन के आधार पर एक विशेष रिपोर्ट दी जाती है, जिसकी पहुंच सीमित होती है। यह रिपोर्ट नेतृत्व की प्रतिबद्धता, कार्यभार का संतुलन, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक, और बर्नआउट, चिंता, अवसाद व तनाव के संकेतों को उजागर करती है। एलएलएल की टीम नेतृत्व के साथ मिलकर रिपोर्ट पर चर्चा करती है और डेटा को स्पष्ट, व्यावहारिक प्राथमिकताओं में बदलने में सहायता करती है।

● बदलाव के लिए रणनीतिक रोडमैप: आकलन से आगे बढ़ते हुए, लिव लव लाफ प्रत्येक संगठन के लिए एक विशेष रोडमैप तैयार करता है, जिसमें व्यक्तियों, टीमों, प्रबंधकों और लीडर्स के लिए लक्षित हस्तक्षेप शामिल होते हैं। यह रोडमैप कार्यस्थल की दिनचर्या में मानसिक भलाई को शामिल करने और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली प्रणालियाँ बनाने में मदद करता है।

● मौजूदा प्रयासों की प्रभावशीलता बढ़ाना: यह कार्यक्रम जागरूकता और भागीदारी को बढ़ाकर एम्प्लॉई असिस्टेंस प्रोग्राम और अन्य मौजूदा मानसिक कल्याण पहलों के उपयोग को बेहतर बनाने में संगठनों की मदद करता है।

● निरंतर सुधार और मापने योग्य असर: यह पहल संगठनों को हर साल मूल्यांकन में भाग लेने और लगातार प्रगति पर नज़र रखने के लिए प्रेरित करती है। इससे मानसिक स्वास्थ्य को प्रदर्शन और जुड़ाव के मुख्य मानकों में शामिल किया जाता है। समय के साथ विभिन्न कंपनियों से एकत्रित आंकड़ों के ज़रिए पूरे उद्योग में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े रुझान सामने आएंगे, जो नीति-निर्माण में मदद करेंगे, व्यापक बदलाव को गति देंगे और एक संवेदनशील, देखभाल-आधारित कार्यसंस्कृति को मज़बूत करेंगे।

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