शह में मुझको खो जाने दो

डर मुझको कभी लगता नहीं,
जो होना है वो हो जाने दो,
कल की दुनियां से बेहतर,
आज की दुनियां में खो जाने दो ।

चाह न मुझको है कभी,
ऊंचे ख्वाबों। को देखने की,
इस जमीं से बस एक छोटा सा,
आसमां मुझको दिख जाने दो ।

नन्हीं कलियां भी खिलेंगी बागों में,
फूल बनकर उनको महक जाने दो,
मधुमास लेने चमन में जो आयेंगे भौरें,
मस्त होकर उनको झूमने गाने दो ।

कहती है कुछ बहती पागल पुरवइया,
पातों से टकराकर उसको बहक जाने दो,
शह और मात दोनों खेल हैं इस जीवन के,
मात मिलती नहीं शह में मुझको खो जाने दो ….

राकेश कुशवाहा ऋषि
तीन मूर्ति भवन, नई दिल्ली

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