रोजगार में घट रही युवाओं की हिस्सेदारी

प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में भारत का एक युवा देश के तौर पर जिक्र किया जहां के युवाओं के सामने अनेक अवसर मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि भारत में 30 वर्ष से कम की आबादी दुनिया में सबसे अधिक है।
अवश्य ही देश में युवाओं की बड़ी आबादी है परंतु इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत के युवा जिस बेकद्री का शिकार हंै उसका दुनिया में अन्य कोई उदाहरण नहीं। भारत में 25 प्रतिशत से अधिक युवा बेरोजगार हैं।
युवाओं का बेरोजगार होना उनकी सबसे बड़ी बेकद्री है। उनके बीच बेरोजगारी का यह आलम है कि श्रम शक्ति में युवाओं की हिस्सेदारी ही घटती जा रही है।

सीएमआईई ;सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमीद्ध के रोजगार आंकड़ों के इंडियन एक्सप्रेस द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार मोदी सरकार के सात सालों की अवधि, 2016-17 से 2022-23 की अवधि में 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की रोजगार में हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से 17 प्रतिशत से आ गई है। 30 से 44 आयु वर्ग के लोगों की भी रोजगार में हिस्सेदारी 38 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत पर आ गई, जबकि 45 वर्ष ऊपर के आयुवर्ग के लोगों की रोजगार में हिस्सेदारी 33 प्रतिशत से बढ़कर 49 प्रतिशत पर आ गई है। रोजगार में युवाओं की घटती हिस्सेदारी और 45 वर्ष से ऊपर के आयुवर्ग के लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी रोजगार के मामले में भारत की स्थिति के बदतर होने की द्योतक है। मोदी सरकार की नीतियों में देश में रोजगार कम किया है और बेरोजगारी बढ़ाई।

2016-17 में 15 से 30 वर्ष के आयुवर्ग के युवाओं की भारत की श्रम शक्ति में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। मोदी सरकार की नीतियां रोजगार विरोधी रही हैं। उनकी रोजगार विरोधी नीतियों के फलस्वरूप श्रमशक्ति में युवाओं की हिस्सेदारी लगातार कम होती जा रही है।

2016-17 में 15 से 30 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं की भारत की श्रम शक्ति में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी थी जो 2017-18 में घटकर 23 प्रतिशत, 2018-19 में 23 प्रतिशत, 2019-20 में 21 प्रतिशत, 2020-21 18 प्रतिशत, 2021-22 में 18 प्रतिशत और 2022-23 में 17 प्रतिशत पर आ गई।

2016-17 में रोजगार में लगे लोगों की कुल संख्या 41.27 करोड़ थी जो 2022-23 में घटकर 40.58 करोड़ रह गई। इसमें यह उल्लेखनीय है कि 2016-17 में 15 से 30 आयु वर्ग के लोगों की श्रमशक्ति में संख्या10.34 करोड़ थी, जबकि 2022-23 में श्रमशक्ति में उनकी संख्या घटकर लगभग 7.1करोड़ रह गई। इससे समझा जा सकता था है कि देश में बेरोजगारी कितनी भयानक है। ऐसे में प्रधानमंत्री का भारत की जनसंाख्यिकी और भारत में युवाओं की दुनिया में सबसे बड़ी संख्या होने पर गर्व करना कोई मायने नहीं रखता। उन्हें युवाओं की इस दुर्दशा पर गर्व के बजाय शर्म आनी चाहिए।

क्या यह मोदी सरकार के लिए कलंक की बात नहीं है कि इस सरकार के सत्ता में आने के बाद युवाओं में रोजगार की दर साल-दर-साल घटती जा रही है? आबादी के किसी आयु समूह की रोजगार दर से पता चलता है कि उस आयु समूह की आबादी का कितना प्रतिशत हिस्सा रोजगार में लगा है। उदाहरण के लिए यदि 15 से 30 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 100 है और उनमें से केवल 10 रोजगार पर लगे है तो उनकी रोजगार दर 10 प्रतिशत होगी।

2016-17 में 15 से 30 वर्ष की आबादी के लोगों के बीच रोजगार दर 29 प्रतिशत थी। मोदी सरकार के कार्यकाल में उनकी रोजगार दर बढ़ने के बजाय घटी है और घटते-घटते 2022-23 में 19 प्रतिशत पर आ गई।

2016-17 में 15 से 30 वर्ष की आबादी के लोगों के बीच 29 प्रतिशत की रोजगार दर थी जो 2017-18 में घटकर 27 प्रतिशत, 2018-19 में 25 प्रतिशत, 2019-20 में 24 प्रतिशत, 2020-21 में 19 प्रतिशत, 2021-22 में 19 प्रतिशत और 2022-23 में भी 19 प्रतिशत रही। (सभी आंकड़े द इंडियन एक्सप्रेस ;23अगस्त 2023,पृृ.9 ; के ‘‘लेख यंग इंडियन्स, ऐजिंग वर्कफोर्स’’ से उद््धृत)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम मांगने वालों की बढ़ती संख्या मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़ती बेरोजगारी की पुष्टि करती है। जिसे कहीं रोजगार नहीं मिलता वही मनरेगा के तहत काम करने जाता है। मनरेगा में काम मांगने वालों की बढ़ती संख्या इशारा करती है कि अर्थव्यवस्था ठीकठाक नहीं चल रही है। यदि अर्थव्यवस्था ठीकठाक चले तो उसमें रोजगार का सृजन होना चाहिए और फलस्वरूप मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या घटनी चाहिए।

मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या आर्थिक वृृद्धि से विपरीत समानुपाती होनी चाहिए अर्थात आर्थिक वृृद्धि होगी तो मनरेगा में काम करने वालों की संख्या घटनी चाहिए और आर्थिक वृृद्धि कम होगी तो मनरेगा में काम करने वालों की संख्या बढ़ेगी।

कृृषि के बाद मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को रोजगार प्रदान करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है। सीएमआईई और सीईडीए ;सेन्टर फॉर इकोनोमिक डाटा एंड एनेलेसिसद्ध के एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार मोदी सरकार के कार्यकाल में 2016-17 से 2020-21की अवधि में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार लगभग 50 प्रतिशत कम हो गया है। 2016-17 में इस क्षेत्र में 5.1करोड़ लोग काम करते थे जबकि 2020-21 में इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या 2.7 करोड़ रह गई। इससे बढ़ती बेरोजगारी का पता चलता है। नए रोजगार का सृजन नहीं हो रहा है और जो मौजूदा रोजगार है उसमें कमी आ गई।

सरकार और उसके प्रायोजित प्रचार के जरिये भारत की कैसी भी चमकीली तस्वीर पेश करने की कोशिश की जाए, देश के आर्थिक विकास के संबंध में कुछ भी दावे किए जाएं, बढ़ती बेरोजगारी इस तरह के तमाम प्रचार और दावों को खारिज करती है।

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