यही मलाल सबको सता रहा

विचार—विमर्श

गणतन्त्र बदला गनतंत्र में,लुप्त हुआ आधार।
देश की स्वच्छ छवि का, बदल गया आकार।।
घर में घुस कर ही,मारने का दावा करने वाले।
कैसे हुए सहसा,अपने ही घेरे में घिर लाचार।।

किसानों के हित में,जो बनाया था तुमने कानून।
न समझा पाये किसानों को,न दिया कोई सकून।।
जिस तिरंगे की खातिर,हँस हँस कर दी थी जान।
देश के गद्दारों ने कर किया,विश्वास में ये अपमान।।

अन्नदाता बने थे आदरणीय ,रहा शान्ति भरा माहौल।
शान्ति के बीच कितनी अशान्ति,खुल गई सारी पोल।।
ठिठुरन से भरी ठण्ड में, दो माह से बैठे थे घेरे दिल्ली।
चन्द भटके लोगों की करतूत ने,खूब उड़ा दी खिल्ली।।

देश के गौरव का प्रतीक,लालकिला आज कराह रहा।
क्यों,कैसे हुआ ये मंजर,यही मलाल सबको सता रहा।।
लाल बाल और पाल ने,जिस झंडे की थी कसमें खाई।
अव्यवस्था के आलम में,उसी झंडे ने निज लाज गँवाई।।

वार्ताओं के लम्बे जाल में, उलझा ही तो रह गया किसान ।
हर बात रही अनसुनी,निकल न पाया कोई भी समाधान।।
पूछता है हर भारतवासी,कहाँ है अब वो मज़बूत सरकार।
बोध हो कर्तव्य व अधिकार का, तो हर सपना हो साकार।।

-राजकुमार अरोड़ा गाइड
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरियाणा)
मो०9034365672

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