दे दी पटरी

दे दी पटरी मैंने अपनी
अगली पीढ़ी को
जिस पर वर्णमाला
लिखा करता था
और दे दिया मैंने वह सूत उन्हें
ताकि ली जा सके नाप
और वर्णमाला के जल से
अभिषेक किया जा सके
एवं
जानवर होने से
बचाया जा सके‌ साफ़- साफ़
लेकिन नहीं मालूम था मुझे
जिस पटरी ने
मेरी तीन पीढ़ियों की
आंखों में आंजन लगाया था
और भरपूर रोशनी में
हम लोगों को नहलाया था
कोंच दी जायेगी
आंखें उसकी
और कर दी
जायेगी नीलाम
सरे-आम बाज़ार में
ताकि न कर सके
एक ख़ूबसूरत सफ़र वह
एवं भाषा के स्टेशन
तक पहुंचते-पहुंचते
टूट जाय सांसें उसकी
और न प्रसूत कर सके
एक मुकम्मल आदमी
वर्णमाला के गर्भ
से फिर कभी

डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर

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