दूर गगन में उड़ते पंछी

विचार—विमर्श

पंछी उड़ते दूर गगन में
सभी सीमाओं से बहुत दूर
यह मेरा है यह तेरा है की चिंता नहीं
बस मंजिल पर पहुंचना है ज़रूर
यह पूरा गगन है मेरा
हौसलों से मेरी उड़ान है
एक पेड़ नहीं है मेरा घर
मेरा तो अपना सारा जहान है
पूर्ब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण
कोई मुझे भला क्यों रोकेगा
मेरा अपना सारा साम्राज्य है यह
दम नहीं किसी में जो मुझे टोकेगा
इंसान की तरह मैं सीमा में नहीं बंधा हूँ
जो भी मिल जाये वो खाता हूँ
नफरत नहीं है मेरे दिल में कोई
हमेशा प्यार का गीत सुनाता हूँ
कभी आम का पेड़ कभी नीम की डाली
कहीं उमड़ते बादल कभी घटा घनघोर काली
कभी मैं कोयल की कूक बन जाता
मोर बन नाचता मैं देख बादलों की छटा निराली
चंदा को देख मैं बन जाता चकोर
बच्चों की चिंता नहीं मुझे
बड़े होते ही उड़ जाते है
मुझसे दूर होकर अपना
एक अलग संसार बसाते हैं
फिर भी मुझे कोई गम नहीं
अपनी मंजिल पर है जाना
जिस पर मेरा नाम लिखा प्रभू ने
खाने को मिलेगा मुझे वही दाना

रवींद्र कुमार शर्मा
घुमारवीं
जिला बिलासपुर हि प्र

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments