
तेलंगाना किसान संघर्ष समन्वय समिति का धरना
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बेहिसाब बढे संपति कर के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान
राम नरसिम्हा राव
हैदराबादः किसान संघर्ष समन्वय समिति तेलंगाना राज्य के द्वारा धरना चैक, हैदराबाद में पिछले 5 दिन से जारी धरने को संबोधित करते हुए भाकपा के पूर्व महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता जाहिर की। धरने स्थल पर भाकपा के राज्य सचिव सी वेंकट रेड्डी, एटक के उपाध्यक्ष एवं सचिव टी नरसिम्हन और डाॅ. बी वी विजयलक्ष्मी भी पहंुचे और किसानों के इस ऐतिहासिक संघर्ष के प्रति अपनी एकजुटता का इजहार किया।

सुधाकर रेड्डी ने अपने संबोधन में गृहराज्य मंत्री जी किशन रेड्डी के बयान की आलोचना की कि किसान आंदोलन का नेतृत्व ब्रोकर्स के द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए सवाल किया कि यदि यह सच है तो क्यों गृहमंत्री अमित शाह ब्रोकर्स से वार्ता कर रहे हैं। उन्होंने यह भी साफ किया कि किसान मंडल मंडी यार्ड तक जाने के लिए भी यातायात साधनों की समस्या का सामना कर रहे हैं। ऐसे में वे कैसे दूसरे राज्यों तक अपने उत्पाद को ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानून और बिजली बिल 2020 किसान विरोधी, जन विरोधी ओर कारपोरेट समर्थक कानून हैं। सुधाकर ने कहा कि भाजपा सरकार को दमनकारी उपायों और किसान समुदाय की एकता को तोडने के प्रयासों को बंद करना चाहिए। उन्होंने यह भी साफ किया कि आंदोलन पूरी तरह से किसानों के द्वारा चलाया जा रहा ना किसी किसी पार्टी अथवा पार्टियों द्वारा। राजनीतिक दलों और जन संगठनों के नेता एकजुटता जाहिर कर रहे हैं और यह आंदोलन अनौखा है और पिछले 25 दिनों से जारी है।
सुधाकर रेड्डी ने आगे रेखांकित किया कि यदि ये कठोर कानून लागू होते हैं तो मंडिया गायब हो जायेंगी और कृषि क्षेत्र में कारपोरेट एजेंट घुस जायेंगे। देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान हैं और उनकी क्षमता यातायात साधनों और व्यक्तिगत वाहनों को वहन करने की नहीं है। वे कैसे दूर दराज इलाकें में अपने उत्पाद ले जा सकते हैं। मोदी सरकार को इन कानूनों के क्रियान्वयन के समय मात दी जानी चाहिए। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि भाकपा किसानों की मांगें माने जाने तक किसानों को पूरा समर्थन जारी रखेगी।
सुधाकर ने आगे कहा कि मोदी सरकार ने संसद में बहुमत और कोविड का लाभ उठाकर इन कानूनों को संसद में बगैर चर्चा के और राजनीतिक दलों से बगैर विमर्श के एकतरफा तरीके पारित करा लिया है। मोदी सरकार ने श्रम कानूनों को ऐसे लागू किया है जैसा कि ब्रिटिश शासन में भी नहीं किया गया था। लोकतंत्र का अर्थ केवल वोट का अधिकार नहीं है बल्कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक आंदोलन का सम्मान करना भी है। परंतु भाजपा सरकार किसान आंदोलन को कुचलने के लिए वाटर कैनन और लाठी का इस्तेमाल कर रही है। सरकार कह रही है कि किसानों के दिल्ली का रास्ता रोके जाने से उसे 3600 करोड का नुकसान हुआ है। सरकार आगे घाटे का बढने से रोकने के लिए तुरंत इस मसले को हल करना चाहिए।
भाकपा तेलंगाना के राज्य सचिव सी वेंकट रेड्डी ने अपने संबोधन में कहा कि केन्द्र सरकार में उस प्रकार की मानवता नहीं है जैसी कि संप्रीम कोर्ट में है। केसीआर को समय नहीं है कि वे आंदोलरत किसानों से जाकर मिल सकें और वे दिल्ली से लोटकर आने के बाद खामोश हैं। उन्हें केन्द्र सरकार पर इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाना चाहिए। यदि ये कानून लागू हो गये तो किसान, बंटाईदार और खेत मजदूरों के लिए गंभीर समस्याएं शुरू हो जायेंगी। हाल ही के भारत बंद में भाजपा और एमआईएम को छोडकर सभी राजनीतिक दलों ने भाग लिया था। उन्होंने केन्द्र सरकार से इन कानूनों को लंबित रखने और किसानों से बात करने की मांग की।
एटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष टी नरसिम्हन ने अपने संबोधन में कहा कि मोदी का लक्ष्य पूरे देश को कारपोरेट को सौंप देने का है। उन्होंने याद दिलाया कि कोल ब्लाॅक को निजी क्षेत्र को सौंपने के खिलाफ हुई हडताल में भारतीय मजदूर संघ ने भी भाग लिया था। उन्होंने सवाल किया कि क्या इसका अर्थ यह है कि उनका संबंध विपक्ष से है? हम सब देखेंगे कि तेलंगाना विधानसभा में इन कारपोरेट कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो।
धरने की अध्यक्षता किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजको पस्य पद्मा, टी सागर, के रंगैये, अच्यूत रामाराव, पी उपेन्द्र रेड्डी ने की।
एटक की राष्ट्रीय सचिव डाॅ. बी वी विजयलक्ष्मी, एटक राज्य महासचिव वी एस बोस, अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य अध्यक्ष टी विश्वेश्वर राव, गिरिजन समाख्या महासचिव ए अन्जैया नायक, दस्तकार यूनियन महासचिव पंडुराग चारी, लेखक यमुना, विमला, ज्योति, दशरथ, कृष्णमूर्ति, अलवल रेड्डी आदि भी धरने में मौजूद थे।