तुझ बिन
तुझ बिन
विरह में जल रहा जीवन मेरा
राख भी सुलग रही है
रह गई है बोझिल सांसे
तुझे बिन वह भी मचल रही है।
नयन के सागर सूखे मेरे
व्याकुल हृदय पिघल रहा है
रात मेरे संग स्वप्न भी जागे
तुझ बिन वह भी तड़प रही हैं।
स्थिर हुआ मैं बना समाधि
दीपक सा मन जल रहा है
दीमक बन गई तुझसे दूरी
तुझ बिन मुझे मिट्टी कर रही है।
गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर