टूट गया वामपंथ का चमकता सितारा

तमाम अटकलों को 28 सितंबर 2021 को विराम लग गया है जब सीपीआई नेता कन्हैया कुमार कॉंग्रेस में शामिल हो गए। कन्हैया कुमार के कॉंग्रेस में शामिल होना वामपंथ के लिए एक आघात से कम नहीं है। इस निराशा के बीच एक ही आवाज निकली आखिर टूट गया वामपंथ का चमकता सितारा। उनके कॉंग्रेस में शामिल होने की खबर से वामपंथ से जुडे लोगों में घोर निराशा के भाव थे वहीं कॉंग्रेस उनको लेकर उत्साहित है।

कन्हैया कुमार की राजनीतिक पृष्ठभूमि वामपंथी विचारधारा रही है। कन्हैया कुमार का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के तेघडा विधानसभा के एक छोटे गांव में हुआ। उनका परिवार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थक है। पिता जयशंकर सिंह पैरालिसिस से पीडित और मा आंगनवाडी कार्यकर्ता है। कन्हैया अभिनय में रूचि लेते हुए इप्टा से जुडे।

2002 में पटना के कालेज आफ कार्मस में एडमिशन लिया जहां उनकी छात्र राजनीति की शुरूआत हुई। पटना में पोस्ट ग्रेजुएट खत्म करने के बाद कन्हैया ने जुएनयू में अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी के लिए एडमिशन लिया और 2015 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टुडेंट्स फेडरेशन से छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये। वहीं से राजनीतिक राजनीतिक पारी की नींव पड गयी। जेएनयू से निकलने के बाद कन्हैया कुमार ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गये।

कन्हैया कुमार 2019 के सीपीआई के टिकट पर बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडे उनके खिलाफ भाजपा के दिग्गज नेता गिरिराज थे। कन्हैया कुमार को करीब 22 प्रतिशत वोट मिले। बेगूसराय में भूमिहार जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार हैं फिर भी वे चुनाव हार गए थे ।

कन्हैया कुमार के कॉंग्रेस में शामिल होने को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थी। जिनमें दो बात चर्चा में रहीं। कन्हैया के हवाले से जो बातें कई दिनों से चर्चा में रहीं कि वे अपनी पार्टी यानि भाकपा में घुटन महसूस कर रहे थे। दूसरी बात उनके कॉंग्रेस में शामिल होने के ऐन पहले पार्टी दफ्तर में अपना लगाया एसी भी उखाड़ ले गए। ये दो बातें उनके राजनीतिक व्यक्तित्व के खिलाफ दिखाई दे रही थी।

कन्हैया कुमार के कई विषयों पर पार्टी से मतभेद उभर कर सामने आया। जिसको भाकपा के वरिष्ठ नेताओं ने बातचीत कर दुरूस्त करने का प्रयास किया। कम्युनिस्ट पार्टी में लोग आते हैं तो समाज में व्याप्त अच्छाइयों और बुराइयों के साथ आते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी उनके नकारात्मक गुणों को एक प्रक्रिया में दुरुस्त करने की कोशिश करती है। कुछ तो बदल जाते हैं वहीं कुछ लोग अपना रास्ता बदल लेते हैं। कन्हैया ने रास्ता बदल लेने का विकल्प चुना।

भगत सिंह की जयंती के दिन कॉंग्रेस में शामिल होते हुए कन्हैया ने देश को भगत सिंह के साहस की जरूरत बताई। कन्हैया अपने दल-बदल को जायज ठहराने के लिए गांधी, भगत सिंह और डॉ.अंबेडकर की पंचमेल खिचड़ी बनाने से नहीं चुके। यहां तक कि भगत सिंह के कथन को भी तोड़ने-मरोड़ने में उन्होंने गुरेज नहीं किया। जैसे भगत सिंह के कथन-बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते-को आधा बोल कर कन्हैया ने कह दिया कि उस साहस की जरूरत है हमको ! भगत सिंह का पूरा कथन है- “बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते, इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।” विचारों से किनाराकशी करते हुए स्वाभाविक है कि कन्हैया कुमार की जुबान यह कहने को तैयार न हुई होगी। इस तरह अब देखना होगा कि कन्हैया कुमार की नई राजनीतिक सफर कैसा रहता है।

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