किसान का अपमान

विचार—विमर्श

लिखती मैं किसान के लिए
या उस भगवान के लिए।
अल्साई आंखों से जो,
जागते ही देखे आकाश की ओर।
पैरों में ना चप्पल उसके
फ़ाजिल नहीं है चाहत जिसकी
दें दो उन्हें मात्र मेहनत का फ़ल
चाहे ना दे सको तुम उन्हें सम्मान
और ना वो कभी मांगेंगे ज्यादा
खुश हैं खा कर रोटी आधा।
यूं जो करते तुम उनका अपमान
कुपित तो तुमसे हैं भगवान।

अनामिका सिंह
जमुई , बिहार

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