इतिहास के भूत से बदला लेना अलोकतांत्रिक कदम

प्रताप नारायण सिंह
जब तक न केवल भारत में बल्कि दुनिया में गरीबी, बेरोजगारी, मुफलिसी, भ्रष्टाचार एवं जुमलेबाजी रहेगी तब तक कम्युनिस्ट पार्टी की जरूरत मानवों के बीच कायम रहेगी। अभी भारतीय राजनीति में घोर दक्षिणपंथी नेता का आचरण सपेरिया जैसा हो गया है। हिन्दु-मुस्लिम के बीच नफरत की भावना भड़काकर सत्ता प्राप्ति करना ही मूल उद्देश्य हो गया है। मुगलकाल में राजाओं के द्वारा की गयी गलती की सजा आज उनके विरादरी एवं उनके वारिश से लेने की साजिश की जा रही है। उन्हें यह समझ नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र में इतिहास के भूत से बदला नहीं लिया जा सकता है। कुछ प्रतिक्रियावादी लेखक अपने लेख में वामपंथियों को उपदेश दे रहे हैं कि ज्योतिबसु को पार्टी ने प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया और सोमनाथ चटर्जी को लोकसभा का टिकट नहीं दिया। लेकिन वे भूल गए कि जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी तथा यशवन्त सिन्हा को दूध् की मक्खी की तरह हटाकर मार्गदर्शक मंडल में रख दिया। ‘‘जो जमीन को जोते-बोये, वही जमीन का मालिक होये’’।

ये पंक्ति सैकड़ों साल पहले भी सत्य था। आज भी सत्य है और आगे भी सत्य रहेगा। उन्हें मालूम होना चाहिए कि भारत कृषि प्रधन देश है। भारत की कृषि, भारत की किसानी तथा भारत के गाँव ही इस देश की अस्मिता है। लोकतंत्र में किसी की सत्ता स्थायी नहीं रहता है। प्रतिक्रियावादी लेखकों को लोकतंत्र का ज्ञान रखना आवश्यक है। वे भूल जाते हैं कि दुनिया के अन्दर सोवियत रूस ही एक एसा देश है जहाँ70 वर्षों तक समाजवादी व्यवस्था कायम रही। उस दौर में न केवल सोवियत रूस ने अपना विकास किया था बल्कि भारत जैसे अन्य विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काफी मदद भी की थी। भारत के अंदर भी वामपंथियों का 33 वर्षों तक पश्चिम बंगाल में शासन कायम रहा। उन्हें समझना चाहिए कि आजादी के बाद न केवल कांगे्रस का बल्कि भाजपा का भी इतने दिनों तक किसी भी राज्य में शासन नहीं रहा है। भाजपा की तो स्थिति ऐसाी हो गयी है कि वर्षो पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी का अर्थ लगाया था कि बीजेपी का माने ‘‘ बड़का झूट्ठा पार्टी’’। बावजूद इसके सत्ता प्राप्ति के लिए शौक से नहीं बल्कि मजबूरी में जदयू के साथ गठबंधन बनाकर बिहार में 2020 में विधन सभा चुनाव मैदान में उतरकर जदयू को भाजपा की अपेक्षा कम सीटे मिलने के बाद भी मुख्यमंत्राी नीतीश को ही बनाना पड़ा।

एक बात में भाजपा का जोड़ा इस देश में नहीं है। वह है जादूगरी और जुमलेबाजी। ऐसा जुमलेबाज अभी तक भारतीय लोकतंत्र में दूसरा नेता नहीं हुआ है। यह भी याद रखना चाहिए कि जब गोध्रा कांड हुआ था तो देश के प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी ने कहा था कि गोध्रा कांड ने भारतीय लोकतंत्र के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया। यह उक्ति वामपंथी नेता का नहीं था। खासकर पश्चिम बंगाल में भाजपा पद की लालच देकर अधिकांश तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को भाजपा में शामिल कर उन्हें टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है। केन्द्र के प्रधनमंत्री, गृहमंत्री , रक्षा मंत्री के अलावे उन सभी राज्यों के भाजपा मुूख्यमंत्रियों ने बंगाल में झूठे वायदे कर अपनी जीत सुनिश्चित करने के पिफराक में है। लोकतंांत्रिक मर्यादाओं को तिलांजलि देकर बंगाल में भाजपा का शासन कायम करने की ​फिराक में भाजपा लगी हुई है। यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेगा कि चुनाव में पश्चिम बंगाल में गांगी-यमुनी तहजीव कायम रहेगी या साम्प्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में आयेगी।

इस देश के अंदर भाजपा ने मीडिया पर अपना कब्जा कर लिया है। लेकिन जनता की गोलबन्दी के समक्ष मोदी मीडिया भी काम नहीं आयेगी। इसका उदाहरण विगत 2020 का बिहार विधन सभा के चुनाव में सभी गोदी मीडिया भाजपा के पक्ष में प्रचार में जुटी थी, बावजूद इसके महागठबंध्न को सबसे ज्यादा सीटें मिली। भाजपा भ्रष्टाचार के मामलों में किसी भी दल से पीछे नहीं है। केन्द्रीय सत्ता का दुरूपयोग करके राज्यों ने लोकतांत्रिक तरीके से बनी सरकार को पद की लालच देकर दूसरे दल के विधयकों को अपने दल मंे लाकर सरकार बनाने की प्राथिमिकता रहती है।

अभी 120 दिनों से पूरे देश के किसानों का आन्दोलन तीन काला कानूनों के खिलापफ दिल्ली के सभी बोर्डरों, देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे हैं। अभी तक 200 से अध्कि किसानों की मौत हो चुकी है। केन्द्रीय सत्ता की संवेदना मर चुकी है। भारत सरकार भातीय कृषि का कंपनीकरण करना चाहती है। किसानों का यह आन्दोलन न केवल भारतीय इतिहास में, बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा आज तक नहीं हुआ था। ये किसान सत्ता पर कब्जा करने के लिए आन्दोलन नहीं कर रहे हैं। बल्कि भारत की खेती और किसानी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। गोदी मीडिया भाजपा नेताओं के द्वारा इस आन्दोलन को बदनाम करने के लिए खालिस्तानी आन्दोलन, पाकिस्तानी आन्दोलन कहा जा रहा है। अभी राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी किसानों के पक्ष में कहा कि सरकार को इनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए इन्हें देकर ही विदा करने का प्रयास किया जाना चाहिए। मल्लिक जी केवल एक राज्यपाल ही नहीं हैं बल्कि भाजपा के पुराने कद्दावर नेता भी रहे हैं। कुछ लेखक इन दिनों सरकार के पक्ष में प्रशंसा लिखकर अपना सी.सी.आर. झमकाने के पिफराक में हंै।

लेखकों को जनभावना का आदर करना चाहिए। कलम निरपेक्ष होती है। सूर्य के प्रकाश को बादल स्थायी रूप से नहीं ढँक सकता है। कलम की निरपेक्षता पर ध्ब्बा लगाने की जरूरत नहीं है। नेताओं के पक्ष में उनकी विरूदावली में स्याही खर्च करने वाले लेखकों को इतिहास मापफ नहीं करता है। विचार एवं ज्ञान को किसी परिध् िमें नहीं रखा जा सकता है। जो विचार मानवीय मूल्य की रक्षा करता है, मानव को शोषण से मुक्ति दिलाता है, उसी को दुनिया के लोग अपनाते हैं। भाजपा के अन्दर इन दिनों दल-बदलुओं की भीड़ जमा हो रही है। कल तक जो नेता दूसरे दूसरे दल में भ्रष्ट कहे जाते थे, वे भाजपा में शामिल होते ही स्वच्छ एवं ईमानदार छवि के बन जाते हैं। इस कला में भाजपा ने महारथ हासिल की है। महात्मा गांध्ी के सत्याग्रह, सत्य और अहिंसा को पूरे विश्व ने अपनाया है। यूरोप एवं अमरिका के अन्दर भी गांध्ी के विचार को लोग आदर करते हैं और उनका अनुकरण करते हैं।

ऐसी स्थिति में वामपंथियों पर विदेशी विचारका आयात करने का आरोप लगाना विचारों का दिवालियापन दर्शाता है। राष्ट्रीय आन्दोलन में वामपंथियों की कुर्बानी को भुलाया नहीं जा सकता है। दुनिया में माक्र्स ने ही पहले-पहल घोषणा पत्रा लिखा था। आज दुनिया के हर देश में चुनाव के मौके पर घोषण पत्रा सभी राजनीतिक दल प्रकाशित करते हैं। भले ही अभी पश्चिम बंगाल के घोषणा पत्रा का नाम बदलकर संकल्प पत्रा जारी किया है। जिस तरह माताएँ सन्तान के लिए गर्भ की पीड़ाएँ भूल जाती हैं। भाजपा को भी अपनी पीड़ाएँ भूल जानी चाहिए। बच्चन ने लिखा है-
पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आए मेरी मधुशाला
भाजपा सत्ता के लिए सभी तरह की पीड़ाओं को भूलकर गैरभाजपा नेताओं को अपने दल में मिलाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकती है। लुका छिपी का खेल लगातार मोदी जी राजनीति में कर रहे हैं। नोटबंदी के समय उन्होंने कहा था कि नोटबंदी होने से आतंकवादियों को मिलने वाली आर्थिक सहायता बन्द हो जायगी। आंतकवादियों के प्रभाव में कमी तो नहीं आया बल्कि देश के सैकड़ों बुजुर्गों की बैंकों में लाइन लगाने के क्रम में जानें अवश्य चली गयीं। वामपंथ की आलोचना करने वाले लेखकों को नीरज की इस पंक्ति से सबक लेने की जरूरत है-
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों।


कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है। पूरे देश में एनडीए सरकार में भाजपा साम्प्रदायिकता की आग फैलाकर देश की जनता को बाँटने का चक्र चला रही है। साम्प्रदायिकता नागरिकता को निगल जाती है। देश के जिन लोगों ने राष्ट्रीय आन्दोलन में शहादत दी है, जेल की यातनाएँ भोगी है। जिनके त्याग और बलिदान से भारत को आजादी मिली है। विडम्बना यह है कि आज सत्ता में बैठे सत्ताधीश यह कह रहे हैं कि सारी कमजोरियों की जड़ पूर्व की कांग्रेसी सरकार है। उन पर विकास नहीं होने का ठीकड़ा फोड़कर आत्ममुग्ध् हैं। बिहारी ने ठीक ही लिखा है-
जगत जनायो जेहि सकल, सो हरि जान्यो नाहिं।
जेहि आँखिन सब देखिहें, आँखि न देखी जाहिं।।
यही हाल अभी भारत के मोदी सरकार का है। सरकार काले रंग में लगातार डुबकी लगाने के बाद देश की जनता से कह रही है-सबका साथ, सबका विकास, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, किसानो की आय दुगुनी आदि। दूसरी ओर देश के सार्वजनिक उपक्रमों को निजी कंपनियों के हाथों बेच रही है। रेल हो, जीवन बीमा निगम हो, एयर लाइन्स हों, बैंक हों। सरकार इस देश की पहचान भारतीय कृषि व्यवस्था का भी कंपनीकरण करने की साजिश कर रही है। भारत कृषिप्रधान सभ्यता की रीढ़ किसान है। ये सारे कारनामे देश की समृ​​िद्ध को निजी हाथों में करके देश की जनता को आत्मनिर्भर होने का आह्वान कर रही है। इन तमाम सवालों को सरकारी पक्ष में लिखने वाले मनीषी लेखकों को विचार करने की जरूरत है। देश की मुख्य समस्याओं की ओर ध्यान न देकर वामपंथ की टीका-टिप्पणी करने से आत्ममुग्ध् होने के सिवा और कुछ नहीं है। इतिहास और कहानी में सबसे बड़ा पफर्क यह है कि इतिहास में सब कुछ सही होता है, लेकिन वह गलत प्रतीत होता है। जबकि कहानी में सबकुछ मिथ्या होते हुए भी सच प्रतीत होता है,।

मोदी जी भारतीय जनता का ध्यान मूल समस्याओं से भटकाने के लिए 2014 से ही भारत की इस्लामिक विरासत और मुस्लिम शासन के चिन्हों के उन्मूलन से प्रेरित नामकरण की प्रेरणा के वशीभूत होकर इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज, फैजाबाद जिला का नाम बदल कर अयोध्या तथा मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर भाजपा के विचारक और जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय कर दिया है। देश के अन्दर बेतहासा मंहगाई से देश की जनता परेशान है, वहीं केन्द्रीय सत्ता पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलापफ चुनाव प्रचार में व्यस्त है। सरकार ने मंहगाई के राक्षस को गरीबों को लूटने की खुली छूट दे दी है। मोदी जी को धर्म की राजनीति के बजाय राजनीति का धर्म का पालन करना चाहिए। यही वक्त की मांग है। केन्द्रीय सत्ता की स्पष्ट समझ है कि देश के जिन राज्यों में गैर भाजपा की सरकार है, वहाँ कुशासान है। जब किसी प्रधनमंत्राी का दृष्टिकोण इतना संकीर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित हो तो यह भारतीय लोकतंत्रा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी समझ रखना प्रधनमंत्राी के लिए अशोभनीय है।

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