एसएईएल ने नॉर्वे के क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट फंड नॉरफंड के साथ साझेदारी की घोषणा की

संवाददाता (दिल्ली): उत्तर भारत में हर साल किसान धान की कटाई के बाद उसके बचे हिस्सों को हटाने के लिए अपने खेतों की पराली को जलाते हैं, जिसके चलते क्षेत्र में गंभीर रूप से वायु प्रदूषण होता है जिसका स्वास्थ्य पर भयंकर प्रभाव पड़ता है। एसएईएल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने ऐसा बिजनेस मॉडल विकसित किया है जहाँ फसलों की की कटाई के बाद उनके बचे हिस्सों का उपयोग अपशिष्ट पदार्थों से ऊर्जा तैयार की जाने वाली परियोजनाओं में ईंधन के रूप में किया जाता है। एसएईएल भारत की एक उभरती हुई नवीकरणीय कंपनी है जिसकी उपस्थिति सौर और कृषि वेस्ट-टू-एनर्जी परियोजनाओं में है।

नॉरफंड द्वारा प्रबंधित नॉर्वेजियन क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट फंड अब एसएईएल में इक्विटी निवेश कर रहा है। इसका लक्ष्य 600 मेगावाट के मौजूदा पोर्टफोलियो के अलावा सालाना 100 मेगावाट नई बायोमास और 400 मेगावाट नई सौर क्षमता जोड़कर अपने पोर्टफोलियो को अगले पांच वर्षों में 3 गीगावाट तक बढ़ाने के लिए कंपनी की महत्वाकांक्षा का समर्थन करना है।

साझेदारी के बारे में बताते हुए, नॉरफंड की एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट, स्ट्रेटजी एवं कम्यूनिकेशंस, सुश्री यल्वा लिंडबर्ग ने कहा, “हमें भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं पूरी करने में योगदान देते हुए एसएईएल के लिए आवश्यक वित्तपोषण के साथ सहायता कर पाने की खुशी है ताकि यह अपनी आकांक्षाएं पूरी कर सके और जलवायु उत्सर्जन एवं स्थानीय प्रदूषण को कम करने में योगदान दिया जा सके।”

नॉर्वे के राजदूत, हैंस जैकब फ्रायडेनलुंड ने कहा, “भारत का हरित परिवर्तन में सफल होना दुनिया के लिए ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में सफल होने के लिए महत्वपूर्ण है, और मुझे खुशी है कि नॉर्वे हमारे नए जलवायु निवेश कोष के माध्यम से इसमें योगदान दे सकता है।”

फाइन पार्टिकल मैटर (पीएम 2.5) का स्तर फसल की पराली जलाने से वार्षिक रूप से बढ़ता है और यह वायु की गुणवत्ता को दुनिया में निम्नतम स्तरों तक पहुँचाने में योगदान देती है। 2.5 स्तर के उच्च पीएम को स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से जोड़ा गया है जैसे कि अस्थमा एवं फेफड़े की क्रियाशीलता में कमी, और फसल की पराली को जलाने से मिट्टी की गुणवत्ता भी कम हो जाती है, जिससे रसायनों के बढ़ते उपयोग की आवश्यकता होती है जिसके चलते अन्य स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं। 

एसएईएल लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जसबीर अवला ने कहा, “हमारे अपशिष्ट-से-ऊर्जा बनाने वाले संयंत्रों में ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिए फसलों की पराली को इकट्ठा करके, हम अपने देश की एक सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या से लड़ने में योगदान देते हैं। साथ ही, हम स्थानीय रोजगार सृजित कर रहे हैं और किसानों तथा स्थानीय उद्यमियों के लिए अतिरिक्त आय पैदा कर रहे हैं। हमें खुशी है कि इन प्रयासों में नॉरफंड हमारे साथ सहयोग कर रहा है। नॉरफंड के साथ साझेदारी से इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी आएगी और हम इस क्षेत्र में अग्रणी बन सकेंगे।” 

वर्तमान भारतीय ऊर्जा मिश्रण के आधार पर, इस निवेश से सालाना 7,9 मिलियन टन कार्बन डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने में योगदान दिए जाने का अनुमान है।

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