पोलावरम परियोजना पर एक विशेष विचार विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया

कामरेड कोल्ली नागेश्वर राव किसान एवं कम्युनिस्ट आंदोलन के एक प्रख्यात नेता थे। जब वह स्कूल में पढ़ते थे तब ही माक्र्सवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हो गए थे। उन्होंने अपना सारा जीवन मेहनतकश लोगों के हितों की बेहतरी के लिए अर्पित किया। वह एक आदर्श नेता की तरह रहे और कम्युनिस्ट नैतिक मूल्यों का पालन किया। कम्युनिस्ट एवं किसान आंदोलन में उन्होंने प्रतिब(ता एवं समर्पण के साथ अपनी जिम्मेदारियां का निर्वाह किया।

कामरेड नागेश्वर राव 1961-65 के बीच आंध्र प्रदेश राज्य एआईएसएफ के महासचिव, 1978-91 के दौरान कृष्णा जिला भाकपा सचिव और उसके बाद राज्य भाकपा सचिव मंडल के सदस्य रहे। उन्होंने 1999-2002 के दौरान आंध्र प्रदेश रैयतु संगम के महासचिव, 2003-06 के दौरान अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष और 2007-16 के दौरान उपाध्यक्ष रहे। एक लंबे अरसे तक उन्होंने रैयतुलोकम मासिक पत्रिका के संपादक के तौर पर भी काम किया। किसानों को खेती के संबंध में मार्गदर्शन के लिए वह ‘‘फार्मर्स डायरी’’ नियमित तौर पर निकालते थे।
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष आर. वैंकटैयाा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। प्रारंभ में आंध्र प्रदेश भाकपा सह सचिव एम. नागेश्वर राव ने कामरेड नागेश्वर राव के फोटो पर माल्यार्पण किया और श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके बाद मीटिंग में आय सभी महानुभाव लोगों ने कामरेड नागेश्वर राव को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर आंध्र प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री वी. सोभानेद्रीईश्वरम ने सामाजिक कार्यकर्ता टी. लक्ष्मीनारायण द्वारा लिखित एक पुस्तिका विमोचन किया। पुस्तिका का शीर्षक था-‘‘पोलावरम का सपना कब पूरा होगा’’। इस पुस्तिका को कोल्ली नागेश्वर राव स्टडी सेंटर ने प्रकाशित किया है।

वक्ताओं ने किसान आंदोलन को कामरेड कोल्ली नागेश्वर राव के महान योगदान एवं सेवाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की। वह किसानों और कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए अथक काम करते थे। विशेषतौर पर उन्होंने सिंचाई परियोजनाओं के लिए और नदियों के पानी के लिए उचित इस्तेमाल के लिए जनआंदोलन चलाए। उन्होंने ‘‘आंध्र प्रदेश जलदर्शनी’’ नामक एक सर्वसमावेशी पुस्तक लिखी जिसमें आंध्र प्रदेश के जल संसाधनों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा गया। गोदावरी का पानी तेलंगाना के ऊंचाई पर पडने वाला इलाकों तक ले जाया जाए। इसकी मांग करते हुए उन्होंने एक बार अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की थी। उन्होंने पोलावरम और पुलीचिन्ताला परियोजनाओं के लिए और गोदावरी-कृष्णा-पेन्ना नदियों को जोड़ने के लिए भी संघर्ष किया। प्रख्यात इंजीनियरों, एकेडमिक्स, राजनेताओं और किसान नेताओं ने उनकी सेवाओं एवं योगदान की चर्चा की। वक्ताओं ने आरोप लगाया कि मोदी और जगनमोहन रेड्डी सरकारों ने कोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना के निर्माण में संकट खड़े कर दिए हैं। वक्ताओं ने एक स्वर से मांग की कि कोलावरम परियोजना को युद्ध स्तर पर पूरा किया जाएऋ उन्होंने इसके लिए राजनीतिक पार्टियों एवं किसान संगठनों संयुक्त आंदोलन का आह्वान किया।

गोदावरी जल विवाद ट्रिब्यूनल ने 150 फीट एफआरएल और 194.6 टीएमसी भंडारण के लिए, नये आयाकुट की 7.2 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करने, गोदावरी डेल्टा की 10.13 लाख एकड़ जमीन और कृष्णा डेल्टा आयाकुट की 13 लाख एकड़ जमीन को स्टेबलाइज करने के लिए और तेलुगु गंगा, हन्ड्रीनेवा, गेलुरू-नागारी, आमतौर से सूखाग्रस्त रायलसीमा एवं प्रकाशम् जिले के वैलीगोन्डा परियोजनाओं के लिए और उत्तर आंध्रा सुजल स्रावन्ती स्कीम के लिए भी पानी देने के लिए कोलावरम परियोजना को स्वीकार किया। एक के बाद दूसरे वक्ता ने केन्द्र और राज्य सरकारों की तीव्र भत्र्सना की जो इस परियोजना को पूरी करने की दिशा में गंभीरता से काम नहीं कर रही है।

उन्होंने 2020 के बाढ़-प्रवाह के कारण डायफ्राम वाल को हुए नुकसान पर भारी चिन्ता व्यक्त की। इस क्षतिग्रस्त डायफ्रा वाल की मरम्मत के लिए तरीके पर काफी विचार-विमर्श चल रहा है। वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारें दुविधा में पड़ी हुई हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि परियोजना का निर्माण कब पूरा होगा, इसकी मरम्मत का क्या तरीका होगा, इसमें कितना समय लगेगा, कितनी लागत आयेगी और इसका खर्चा कौन देगा।

जगनमोहन रेड्डी ने एक अन्य समस्या यह पैदा कर दी है कि उसने पहले चरण को 41.15 मीटर केन्टूर तक सीमित कर दिया है और उसी के अनुसार निर्माण कार्य किया जायेगा और उतना ही पानी स्टोर किया जायेगा। तद्नुसार केन्द्र सरकार से पैसा देने के लिए अनुरोध किया गया था। वक्ताओं के अनुसार जगनमोहन रेड्डी ने एक चिन्ताजनक और खतरनाक फैसला लिया है। इससे कोलावरम परियेाजना के बहुउद्देश्यीय लाभों को ही खतरा पैदा हो जायेगा। राज्य सरकार परियोजना के लिए केन्द्र से पैसा हासिल करने में कामयाब रही है। केन्द्रीय जल आयोग के राष्ट्रीय परियोजना निदेशालय की तकनीकी सलाहकार समिति और केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 55.548 करोड़ रूपए की संशोधित अनुमानित लागत की डीपीआर-2 को स्वीकृति दे दी है, तो भी केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने इसे तीन साल तक लंबित रखा। इस प्रकार इस परियेाजना के पूरा होने में देरी के लिए केन्द्र और राज्य सरकार दोनों जिम्मेदार हैं।

वक्ताओं ने यह भी कहा कि यदि श्रीशेलम जल भंडार की मरम्मत युद्ध स्तर पर नहीं की गई तो उससे भविष्य में खतरा पैदा होगा। वक्ताओं ने पुलीचिन्ताला परियोजना और चेयुरू परियोजना की मरम्मत के प्रति राज्य सरकार की उदासीनता और उपेक्षा पर भी चिन्ता व्यक्त की।

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