सेहत, फिटनेस और इम्यूनिटी के लिए ‘सक्रिय’ जीवन में स्ट्रेस फ्रैक्चर के केसेस एक साल में 100% तक बढ़ गए हैं

डाक्टरों का कहना है कि मध्यम आयु वर्ग के लोग , जिन्होंने आउटडोर एक्टिविटी नहीं की थी वे भी लॉकडाउन खुलने के बाद एक्टिविटी में भाग लेने लगे। पिछले एक साल में ऐसे लोग कुल फ्रैक्चर केसेस का 10% हैं।

जांच करने पर पता चला है कि ऐसे लोग पहले कभी कोई मेहनत वाली एक्सरसाइज जैसे कि दौड़ना, स्किपिंग, खेलना और कूदना कभी नहीं किया था।

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महामारी से पहले इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में एक साल में स्ट्रेस फ्रैक्चर के लगभग 20 केसेस सामने आए थे, मुख्य रूप से शहर में मैराथन दौड़ होने या अमरनाथ यात्रा के बाद ये केसेस मिले थे।

मरीजों को प्राथमिक उपचार के रूप में RICE (आराम करना; बर्फ लगाना; कंप्रेशन; और एलिवेशन) की सलाह दी गई और लगभग 6 हफ्ते तक सुबह की सैर या दौड़ को पूरी तरह से बंद करने के लिए कहा है; इनमें से किसी भी मरीज़ को सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ी।

इस  ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए और लोगों में जागरूकता की कमी को देखते हुए कि गलत जूते इस तरह की चोटों का कारण कैसे बन सकते हैं, हॉस्पिटल ने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है।#RightShoesMatter

 26 जुलाई 2021, नई दिल्ली:  महामारी ने लोगों को स्वास्थ्य, फिटनेस और इम्यूनिटी को बनाए रखने के लिए सक्रिय रहने के बारे में जागरूक किया है। इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर (आईएसआईसी), नई दिल्ली के डॉक्टरों ने ‘स्ट्रेस फ्रैक्चर’ का अनुभव करने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। उनके मुताबिक पिछले साल फेज अनलॉकिंग के बाद से स्ट्रेस फ्रैक्चर के केसेस में 1003 तक  का इजाफा हुआ है। डाक्टरों का कहना है कि मध्यम आयु वर्ग के लोग , जिन्होंने आउटडोर एक्टिविटी नहीं की थी वे भी लॉकडाउन खुलने के बाद एक्टिविटी में भाग लेने लगे। पिछले एक साल में ऐसे लोग कुल फ्रैक्चर केसेस का 10% हैं।

इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर (आईएसआईसी), नई दिल्ली के फुट और एंकल सर्विस चीफ़ और आर्थोपेडिक सीनियर कंसल्टेंट डॉ मनिंदर शाह सिंह ने स्ट्रेस फ्रैक्चर के बढ़ते केसेस पर अपनी चिन्ता जाहिर करते हुए और इस तरह की समस्या पर अपनी राय रखी तथा कुछ उपाय भी बताए। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, “महामारी से पहले हमें एक साल में स्ट्रेस फ्रैक्चर के 15 से 18 केसेस मिलते थे। ये केसेस मुख्य रूप से शहर में मैराथन जैसी दौड़ के बाद या अमरनाथ यात्रा के बाद देखने को मिलते थे क्योंकि जिन लोगों ने इन गतिविधियों को किया उनका शरीर इन परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हो पाया, जिसकी वजह से उन्हे स्ट्रेस फ्रेक्चर का सामना करना पड़ा।

हालांकि इस साल ऐसे केसेस दोगुने हो गए हैं – हमें अब तक 30 से ज्यादा ऐसे प्राप्त हुए हैं, जोकि बहुत ज्यादा वृद्धि है। अधिकांश मरीज़ 30 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के हैं, इसके बाद 40 से 50 वर्ष के व्यक्ति भी इन समस्याओं से पीड़ित हैं। जांच करने पर पता चला है कि ऐसे लोग पहले कभी कोई मेहनत वाली एक्सरसाइज जैसे कि दौड़ना, स्किपिंग, खेलना और कूदना कभी नहीं किया था। हालांकि महामारी के कारण सेहत, इम्यूनिटी और फिटनेस के बारे में जागरूक होने के बाद इन लोगों ने शारीरिक रूप से सक्रिय होना चुना, जो उनके लिए गलत साबित हुआ और उन्हे स्ट्रेस फ्रेक्चर से पीड़ित होना पड़ा।

शरीर के लिए एक झटका था जो इस तरह की गतिविधियों के लिए बेहिसाब और बिना शर्त है। हमनें मरीजों को प्राथमिक उपचार के रूप में RICE (आराम करना; बर्फ लगाना; कंप्रेशन; और एलिवेशन) की सलाह दी है और लगभग 6 हफ्ते तक सुबह की सैर या दौड़ को पूरी तरह से बंद करने के लिए कहा है; इनमें से किसी भी मरीज़ को सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ी।”

‘ स्ट्रेस फ्रेक्चर’ का मतलब हड्डी में बहुत थोड़ा सा क्रैक होना होता है। यह रिपिटिटिव ट्रामा की वजह से हो सकता है। हड्डियों में होने वाला यह फ्रेक्चर आमतौर पर शिन बोन, पैर, एड़ी, कूल्हे और पीठ के निचले हिस्से में होता है। इसका सामान्य लक्षण दर्द होता हैं जो आराम के दौरान कम हो जाता हैं, लेकिन यह सामान्य और रोजमर्रा के कामों को करते हुए भी होता है। अन्य लक्षणों में पैर के ऊपर या एड़ी के चारो ओर सूजन हो जाती है। फ्रैक्चर की साइट पर छूने या खरोंच से दर्द होता है।

बार-बार ऊपर-नीचे कूदना, लंबी दूरी तक दौड़ना, या गलत या घिसे-पिटे जूते पहनने से स्ट्रेस फ्रैक्चर हो सकता है। अगर इसका इलाज न किया जाए तो स्ट्रेस फ्रैक्चर की जगह और उसके आसपास इस तरह का दर्द बढ़ सकता है और प्रभावित हड्डी में पूरी तरह से फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ सकता है।

 इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर (आईएसआईसी), नई दिल्ली के डॉ मनिंदर शाह सिंह ने समस्या पर और ज्यादा प्रकाश डालते हुए कहा, “एथलीट और मिलिट्री भर्ती में सबसे ज्यादा होने वाली चोटों में स्ट्रेस फ्रैक्चर प्रमुख है। इस तरह के फ्रैक्चर ऊपरी अंगों की तुलना में निचले अंगों में ज्यादा होते हैं। इन चोटों की जांच उन मरीजों के लिए की जानी चाहिए जो आराम के बाद गतिविधि में बढ़ोत्तरी करते हैं और उनमें इस तरह का दर्द होता है।

यह चोट हड्डी पर दोहराव और अत्यधिक तनाव से शुरू होती है जिसके परिणामस्वरूप सामान्य हड्डी रीमॉडेलिंग में तेजी आ सकती है, फिर माइक्रो फ्रैक्चर का उत्पादन (हड्डी की मरम्मत के लिए अपर्याप्त समय के कारण), उसके बाद  हड्डी स्ट्रेस चोट का निर्माण ( तनाव प्रतिक्रिया), और अंत में स्ट्रेस फ्रैक्चर होता है।

इस  ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए और लोगों में जागरूकता की कमी को देखते हुए कि गलत जूते इस तरह की चोटों का कारण कैसे बन सकते हैं, हॉस्पिटल ने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया जो जुलाई के अंत तक चलेगा। इस अभियान को #RightShoesMatter नाम दिया गया है। अभियान में क्रियेटिव (रचनात्मक) और इन्फोर्मेटिव (सूचनात्मक) ग्राफिक्स, वीडियो और टेक्स्ट पोस्ट और डॉ मनिंदर सिंह के साथ  एफबी लाइव सेशन में शामिल है।

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