वो अन्न का देवता गरीब किसान कहलाता है

चीर कर धरती का सीना जो अपनी फसल को उगाता है,
कड़ाके की ठंड और चिलचिलाती धूप मे भी इम्तेहान दे जाता है,
बड़ी मेहनत से दिन रात एक कर वो बहुत उम्मीदें लगाता है,
पर बाजारों में भी उसकी फसल को सही दाम नहीं मिल पाता है,
वो अन्न का देवता गरीब किसान कहलाता है ।

चुनावी दौर मे नेताओ द्वारा झूठे वादो मे फसाया जाता है,
वो बेचारा हर बार हर सरकार से बड़ी उम्मीदे लगाता है,
कर्जा लेकर भी वो गरीब अपनी फसल को उगाता है ,
पर कई बार जिसकी फसल को भंडारगृहो मे सड़ाया जाता है,
वो अन्न का देवता गरीब किसान कहलाता है ।

साहूकारो और महाजनों का कर्जा उसे बहुत सताता है,
कर्ज लगान और गिरवी मकान का बोझ वो नही उठा पाता है,
पर उसकी मजबूरी को कोइ नहीं समझ पाता है,
कीटनाशक पी लेता है या फांसी पर लटक जाता है,
वो अन्न का देवता गरीब किसान कहलाता है ।

हर बार ही उसके साथ ऐसा क्यो हो जाता है ?
पिता खेत मे जलता है और बेटा सीमा पर गोली खाता है,
क्यो गरीब परिवार को राजनीति का जहर पिलाया जाता है ?
क्यो जय जवान जय किसान का नारा सिर्फ नारा ही रह जाता है ?

ऐसा क्यो होता है साहब…….

वो अन्न का देवता ही गरीब किसान कहलाता है ।

नाम – सारंग भिमटे
ग्राम – मोहगांव (गंगेरुआ)
तह.- बरघाट
जिला – सिवनी (म. प्र.)

Related Articles

Back to top button