मैं मजबूर हूँ, मैं मजदूर हूँ
हम मजदूरों का जीवन सिर्फ कहानी में न गुजरे..
किसी मजदूर का बेटा अपने जवानी में न गुजरे..!!
हम दो पैसे कम कमाएं,लेकिन गाँव मे ही रहेंगे..
बस हमारा जीवन इस तरह बलिदानी में न गुजरे..!
मजदूरों की लाचारी,दशा पर ओये सौरभ इतना ही कहेगा..
कि भगवान किसी मजदूर की साइकिल नीलामी में न गुजरे..!!
हम चार पैसे कमाकर और दो रोटी खा कर ही खुश है..
हमारा खान-पान अमीरो की तरह बिरयानी में न गुज़रे..!!
कुछ सुकून,शांति और आराम हमे भी चाहिए होता है मेरे मालिक..
कमाने में जीवन गांव से शहर और शहर से गांव की प्रस्थानी में न गुजरे..!!
गांव में ही रोजगार और नौकरी दे दो हमको साहेब..
ताकि मजदूरी के लिए हमारा जीवन मुम्बई और राजधानी में न गुजरे..!!
मैं थक-हार कर सो जाऊंगा रेल की पटरियों पर..
दुआ करना कोई रेलगाड़ी आवगमनी में न गुजरे..!
ट्रक में भर-भरकर हमे जानवर तो बना ही दिया..
पशु भले बेजुबान है लेकिन हम बेजुबानी में न गुजरे..!!
हमारे साथ सरकार भी देख रही मजदूरों की लाचारी..
उनको ड़र है कि उनकी सरकार अपमानी में न गुजरे..!
सत्ताधारियों तुमसे कोई शिकवा नही तुम मौज करो..
लेकिन साहेब हमारा भी जीवन सिर्फ दाना-पानी मे न गुजरे..!!
खाने का पैकेट देखकर,हम एक दूसरे को खींच रहे..
मेरे रब किसी का जीवन ऐसे खींचातानी में न गुजरे..!!
चौराहे पर बैठे लड़के से पूछा सौरभ,क्या देख रहे हो..
कहा,देख रहा कोई फरिश्ता रोटियां लेकर चारमुहानी से न गुजरे..!!
अमल करोगे हमारे हालात पर तो रो पड़ोगे ऐ राजनेताओं..
दुआ करूँगा की आप बड़े लोग उस समय ग्लानि में न गुजरे..!!
आवाज दबा दी जाती है आखिर गुनाह क्या है हमारा..
हमारी बात सिर्फ अखबारों और संविधानी में न गुजरे..!!
मैं पैर के छालों और भूख प्यास सब सह लूंगा..
लेकिन इन साहेब लोगो का भी जीवन गुमानी में न गुजरे..!!
कह रहा सौरभ,अधिकारों के लिए कन्धा मिला लो मजदूर भाइयो..
हम आवाज़ बुलंद करेंगे ताकि प्रशासन मनमानी में न गुजरे..!!
अगर मजदूर और किसान होना इसे कहते है तो माफ करना दोस्त..
सौरभ बोलेगा कि किसी की ज़िंदगी मजदूरी और किसानी में न गुजरे..!!
सौरभ ‘शुभ’
सिवान,बिहार