
मई दिवस, लाल झण्डा और 21वीं सदी
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अनिल राजिमवाले
लाल झण्डे का जन्म जून 1832 में पेरिस के बैरिकैडस पर हुआ जब मजदूर अपनी मागों को लेकर बागी हो गये थे। झण्डे का एक रोचक इतिहास है। यह उनके नेतृत्व में हुआ था और इसने मजदूरों को मई 1886 में हुई घटना और काम के आठ घण्टे और अन्य उनकी मांगों को उठाने के लिए प्रेरित किया।
फ्रांस की क्रान्ति और लाल झण्डा
लाल रंग का फ्रांस की क्रान्ति और उसके पहले मौजूद सामंती शासन के साथ गहरा संबंध है। झण्डेे का इस्तेमाल असल में एक खतरे अथवा चेतावनी के लिए किया जाता था। राजा छोटे लाल झण्डे पूरे शहर में घोषणा करने अथवा चेतावनी देने के लिए लगाता था। यह अभी के तरह क्रान्ति का प्रतीक नहीं था, जो कि बाद में बन गया। 1789 फ्रेंच क्रान्ति के बाद लाल झण्डे 21 अक्टूबर 1789 को मार्शल लाॅ की घोषणा के लगाये गये, इसके बाद वे वहीं लगाये जाने लगे जहां कानून लगाया जाता था, इस प्रकार यह जनता का प्रतीक बन गये। ऐसा करने के लिए, पेरिस में टाउन हाॅल की मुख्य खिड़की पर एक लाल झंडा फहराया गया और इसे सभी गलियों और चैकों में प्रदर्शित किया गया। कुछ साल बाद, लाल झंडे के तहत विद्रोहियों का उल्लेख था, जिसमें ’संप्रभु जनता का मार्शल लाॅ’ शब्द के साथ थे। लाल टोपी को 1793 में लोगों द्वारा व्यापक रूप से पहना गया था, और यहां तक कि प्रसिद्ध रोबस्पियर द्वारा एक विवादास्पद बयान दिया गया था, ‘‘लाल बनाम तिरंगा‘‘। विकसित गणराज्यों ने प्रतीक के रूप में लाल झंडे को स्वीकार कर लिया। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, संास-कुलोटस ;निम्न वर्गीय क्रान्तिकारीद्ध सबसे आगे थे। वे अनाकार प्रकृति के मेहनतकश थे, जो अभी तक वर्गों में विकसित नहीं हुए थे, इनमंें संगठित औद्योगिक वर्ग की तुलना में अधिकतर दस्तकार थे।
लाल पादरी
लाल पादरी फ्रांसिसी क्रान्ति के असंतुष्ट पादरी थे वे शब्दों और कर्म दोनों से पादरियों के हरावल थे। लाल पादरी सामाजिक और दार्शनिक मीन दोनों पर लडे, हालांकि निरंतरता से नहीं। वह मध्ययुगीन रूढियों से मुक्ति का समय था। लाल पादरियों ने प्रत्यक्ष लोकतंत्र का सहारा लिया जो कि फ्रांसिसी क्रान्ति की पहचान था। कुछेक लाल पादरियों में शामिल थे पेटिट जीन, जैक्स रूक्स, डोलिवियर, क्रोइसी आदि।
फ्रांस में मजदूरों का लाल झण्डा
फ्रांस में जुलाई 1830 की क्रांति मजदूरों की पहली बड़ी कार्रवाई थी, जिसने सामंती-बुर्जुआ गठजोड़ के राजनीतिक शासन का पलट दिया था। इससे पूंजीपति वर्ग सत्ता में आया। अगस्त ब्लांकी प्रमुख नेतृत्वकारी व्यक्तित्व थे। इस प्रकार सर्वहाराओं ने निम्न वर्गीय क्रान्तिकारियों’की परंपराओं को आगे बढ़ाया। नवंबर 1831 में, फ्रांस के दूसरे सबसे बड़े शहर ल्यों में श्रमिकों के विद्रोह से फ्रांस हिल गया था। 30 हजार बुनकरों और 70 हजार अन्य श्रमिकों ने सभी पांचों फाटकों को बंद कर दिया। 21 नवंबर, 1831 को, श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच इतिहास में पहला सशस्त्र टकराव हुआ। अगले दिन, श्रमिकों ने इन शब्दों के साथ काला बैनर लहराया ‘‘टू लिविंग वर्किंग अथवा डाई फाइटिंग’। दो दिन बाद, शहर श्रमिकों के नियंत्रण में आ गया। लेकिन वे राजनीतिक दिशा में आगे नहीं बढ़े, जो चार्टिस्ट आंदोलन ने बाद में इंग्लैंड में किया। 9 अप्रैल, 1834 को ल्योंस में एक दूसरा विद्रोह हुआ और विद्रोहियों ने लाल झंडे उठाए, जिन पर ‘‘रिपब्लिक या डेथ‘‘ अंकित था।
25 जून 1832 को पेरिस के मजदूरों ने लूईस फिलिप के खिलाफ बगावत कर दी और बैरिकेडस र लाल झण्डा फहरा दिया।
इंग्लैंड में चार्टिस्ट आंदोलन
जबकि फ्रांसीसी आंदोलन प्राय एक सशस्त्र आंदोलन था, वहीं शक्तिशाली राजनीतिक जन कामगारों ने स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य के साथ 1830 -40 के दशक के दौरान इंग्लैंड में संघर्ष शुरू किया था। 1834 के अंत में, आधे 5 लाख लोगों के साथ ग्रैंड नेशनल कंसोलिडेटेड ट्रेड यूनियन की स्थापना हुई, और 1836 में, लंदन वर्किंग मैन्स एसोसिएशन का गठन किया गया। डेमोक्रेटिक एसोसिएशन और ग्रेट नार्दर्न यूनियन भी अस्तित्व में आई। दोनों ने मिलकर लाखों मजदूरों को संगठित किया। फरवरी 1839 में पहला चार्टिस्ट कन्वेंशन हुआ। नेशनल चार्टर एसोसिएशन मजदूर वर्ग का पहला सामूहिक राजनीतिक संगठन था। 1842 तक श्रमिक खुले में आ गए और व्यवस्था के खिलाफ शांतिपूर्ण विद्रोह कर दिया था।
चार्टिज्म ने दो प्रमुख राजनीतिक मांगें उठाईं। श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक मताधिकार, और दस घंटे का कार्यदिवस। दूसरी राष्ट्रीय याचिका ने संसद के लिए 3.3 मिलियन से अधिक हस्ताक्षर एकत्र किए। पहली बार यह एक मिलियन से अधिक एकत्र किये गये थे। संसद मार्च, जुलूस, याचिकाओं की इंग्लैंड में बाढ सी आ गयी। संसद मार्च ने इंग्लैंड को हिला दिया था, 1842 में आंदोलन अपने शिखर पर पहुँच गया था। मतदान के अधिकारों की मांग करने वाला शांतिपूर्ण सर्वहारा आंदोलन पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ पहला बड़ा विद्रोह था। सैनिकों ने गोली चलाने से इनकार कर दिया। एंगेल्स ने जोर दिया कि यह सार्वभौमिक मताधिकार पर आधारित एक सामाजिक क्रांति थी।
जून 1847 में कानूनी तरीके से दस घंटे के कार्यदिवस की शुरुआत की गई।
जर्मन मजदूर वर्ग की शानदार चुनावी सफलताएँ
जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ;1863द्ध मजदूर वर्ग की पहली राजनीतिक पार्टी थी। इसने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में और 20वीं की शुरुआत में लगातार वोटों और सीटों की संख्या में बढत बनायी। इसे 1878 से 1890 तक प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन यह बंद नहीं हुई। एक समय यह संसद में इसने एक-चैथाई, यहां तक कि एक-तिहाई से अधिक मतों से जीत हासिल की। इसने 107 से अधिक दैनिक समाचार पत्रों को प्रकाशित किया। माक्र्स और फिर एंगेल्स ने समाजवाद की ओर बढ़ने की एक विधि के रूप में मत पेटियों के उपयोग का काफी मूल्यांकन किया। एंगेल्स ने मतदाताओं और उनके समर्थकों को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों के आंदोलन का अग्रिम रक्षक भी कहा।
अमेरिका में संघर्ष
1791 में फिलाडेल्फिया में एक बढ़ई काम के 10 घंटे के लिए मारा गया था, और 1835 में सभी मजदूर ‘6 से 6 बजे काम और भोजन के लिए दो घंटे‘ के बैनर के साथ दस घण्टे काम के लिए हड़ताल पर चले गए थे। 8 घंटे की मांग 1836 में उठाई गई थी और बोस्टन जहाज के बढ़ईयों ने इसे 1842 में ही इसे हासिल कर लिया था। 1864 में, 8 घंटे की मांग शिकागो के श्रमिकों के लिए केंद्रीय मुद्दा बन गई थी।
अमेरिका में 10 घंटे के कार्यदिवस पर पहला कानून 1847 में न्यू हैम्पशायर में लाया गया था। 1829 के चुनावों में, श्रमिक टिकट को 28 प्रतिशत वोट मिले, स्किडमोर एक प्रसि( नेता के रूप में उभरे। 1873 में इलिनोइस में वर्कर्समैन की पार्टी का गठन किया गया और 1874 में सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्समैन की पार्टी उत्तरी अमेरिका में बनी। 1869 में आॅर्डर आॅफ नाइट्स आॅफ लेबर की स्थापना एक ट्रेड यूनियन के रूप में हुई। 1870 के दौरान अमेरिका में हडतालें मुख्य रूप से काम के 8 घंटे को लेकर हुई थी। अमेरिकन फेडरेशन आॅफ लेबर ;एएफएलद्ध, फेडरेशन आॅफ आर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियंस आॅफ यूएसए और कनाडा ;1881द्ध से निकलकर आयी थी।
काम के 8 घंटे के लिए दबाव बनाने के लिए वर्किंगमैन की पार्टी ने राष्ट्रपति जाॅनसन से मुलाकात की। 19 मई, 1869 को राष्ट्रपति यूलिस ग्रांट ने 8 घंटे के लिए एक उद्घोषणा जारी की। अमेरिकी कांग्रेस ने मैकेनिकों और मजदूरों जैसे संघीय कर्मचारियों के लिए 25 जून, 1868 को 8 घंटे का कानून पारित किया। लेकिन इसे लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर मजदूर आंदोलनों की जरूरत थी।
1870 में 8 घंटे काम का दिन केंद्रीय मांग बन गयी। न्यूयाॅर्क शहर में एक लाख कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और 1872 में 8 घंटे के दिन की जीत हासिल की। अल्बर्ट पार्सन्स 1878 में ’शिकागो 8-आवर लीग‘ के सचिव बने। 1880 में एक नेशनल 8 आॅवर कमेटी अस्तित्व में आई।
1884 में शिकागो में फेडरेशन आॅफ आर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियंस (बाद में अमेरिकन फेडरेशन आॅफ लेबर या एएफएल) के एक सम्मेलन ने 1 मई 1886 को 8 घंटे के दिन के रूप में मनाने का फैसला किया। नाइट्स आॅफ लेबर की स्थानीय इकाइयों ने मांग का समर्थन किया। ट्रेड यूनियनों ने 1 मई, 1886 को पूरे अमेरिका में मजदूरों की हड़ताल को अभूतपूर्व सफल बताया। अल्बर्ट पार्सन्स (नाइट्स आफ लेबर), उनकी पत्नी लूसी पार्सन्स और उनके दो बच्चों ने 1 मई को मिशिगन एवेन्यू, शिकागो में 80 हजार श्रमिकों का नेतृत्व किया। लाखों लोग अगले दिनों अमेरिका में हड़ताल पर चले गए। श्रदेश जे जी बलान्चार्ड के गाने ‘ऐट आवर्स सोन्ग‘ के पीछे एकताबद्ध हो गया। वी आर सम्मनिंग अवर फार्सेज फ्राम शिपयार्ड, शाॅप्स एण्ड मिल्स……;हम शिपयार्ड, दुकान और मिल से अपनी सेनाओं को बुला रहे हैं।”
वर्कर्स न्यूजपेपर के संपादक अगस्त स्पाइज ने मैककाॅर्मिक प्लांट, शिकागो में 3 मई मजदूरों को संबोधित किया था। वहां प्लांट के हडताल तोडने वालों के साथ तनाव व्याप्त था। पुलिस ने गोलीबारी की और चार लोग मारे गये। 4 मई को हेय मार्केट में आयोजित सभा के बाद एक बम फटा इससे पुलिस को झूठे मामले में नेताओं को गिरफ्तार करने और जजों को उन्हें सजा देने का बहाना मिल गया। आठ नेताओं स्पाइज, पारसन्स, एंगेल, फिशेर, फिल्डमैन, श्वाब, लींग और आस्कर नीबे को फांसी की सजा दी गयी। पहले चार को 11 नवंबर 1887 को फांसी दी गयी। 26 जून 1893 को इलिनोइस के गर्वरन पी एल्टगेल्ड ने जाहिर किया किया की मुकदमा पूरी तरह से झूठा और गढा गया था, बाकि नेताआंें को रिहा कर दिया गया और कहा गया कि फांसी दिये गये नेता हिस्टीरिया भरी हुई जूरी और पक्षपाती जजों का शिकार बन गये। प्रसि( अर्थशास्त्री रार्बट ओवेन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन और आठ घण्टे आराम का फार्मूला दिया।
एएफएल ने दिसंबर 1888 में फैसला किया कि मजदूरों को आठ घण्टे से अधिक काम नहीं करना चाहिए। दूसरे इंटरनेशनल ने 1889 में तय किया कि 1890 से प्रत्येक वर्ष 1 मई को अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में नाया जायेगा।
मई दिवस और लाल झण्डा
लाल झण्डे का इतिहास 1886 से कहीं पुरान है, जैसा कि हम देखते हैं, कि यह बाद में एकदम आम हो गया। वास्तव में अमेरिका में परंपरागत मजदूर दिवस प्रत्येक वर्ष सितंबर में मनाया जाता था। कुछ कारणों से जिसमें व्यवसायिक चक्र भी शामिल है यह 1884 में मई में शिफ्ट हो गया था। मजदूर दिवस के आयोजन में परिवार लाल बिल्लों, बैनर्स, झण्डों, झण्डियों आदि के साथ। लाल बैनर का इस्तेमाल 1840 के दशक के शुरूआती दिनों में हुआ। 1886 के मई दिवस आयोजन ने इसे पूरी दुनिया में फैला दिया।
भारत में रिपोर्ट पहला मई दिवस का आयोजन 1923 में हुआ जिसका नेतृत्व एम सिंगारवेलू ने किया। इसकी रिपोर्ट 1925 में कराची, 1927 और 1928 में मुम्बई आदि में भी हुई। लाल झण्डा मद्रास में फहराया गया था।
21वीं सदी में मजदूर वर्ग
मई 1886 से एक पूरा ऐतिहासिक युग बीत चुका है, और पूंजीवाद, समाजवाद और श्रमिक वर्ग में बहुत कुछ बदल गया है। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग के आंदोलन ने इतिहास पर अपनी छाप एक नए समाज के लिए संघर्ष करने वाले वर्ग के रूप में छोड़ दी है। मजदूर दिवस या मई दिवस एक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन बन गया है।
हम औद्योगिक क्रांति की तुलना में एक उच्च वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। उत्पादन और संचार के साधनों में बुनियादी परिवर्तन हुए हैं। इसलिए हमें औद्योगिक युग के दौरान बनी कई अवधारणाओं को बदलने की आवश्यकता है। वर्ग और सामाजिक संरचनाएं मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी और उपकरणों की प्रकृति द्वारा निर्धारित की जाती हैं। इलेक्ट्राॅनिक्स पर आधारित कंप्यूटर आज बुनियादी साधन हैं जिनका उपयोग सामाजिक कार्यों में बडी संख्या में किया जाता है। सेवाओं और सूचना नेटवर्किंग के आधार पर तेजी से शहरीकरण नई सुविधाओं को जोड़ता है।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी क्रान्ति हमारे समाज की रचना को बदल रही है। श्रमिक वर्ग की संरचना में भारी बदलाव आ रहा है। यह बदलाव व्यापक है, जिसमें सूचना कर्मचारी, सेवा कर्मचारी, इंजीनियर, प्रोग्रामर, प्रबंधक, कंप्यूटर नियंत्रक आदि शामिल हैं। मध्यम वर्ग द्वारा मजदूर-कर्मचारी के स्थान का अधिग्रहण एक प्रमुख पहलू है।
डेनियल बेल ने 1970 के दशक में समाज में उत्पादन से सेवा और संचार में बुनियादी बदलाव की ओर इशारा किया था। टाफलर, पोस्टर, रिचा, रिफकिन और कई अन्य जैसे विद्वानों ने उभरती इन विशेषताएं को रेखांकित किया हैं।
मजदूर वर्ग की संरचना में बुनियादी बदलाव उत्पादन से सेवा क्षेत्रः उत्पादन में एक अनुपातिक गिरावट है जबकि सेवा क्षेत्र में उभार है। गैर उत्पादित मजदूर संरचना का 70 प्रतिशत से अधिक गठित करते हैं। भारत में सैकड़ों किलोमीटर तक एक कताई और बुनाई मिल पाना मुश्किल हैः पुराने प्रकार के विशाल औद्योगिक केंद्र सेवा क्षेत्रों, इलेक्ट्रानिक्स, संचार, सूचना आदि के नए केंद्रों के लिए रास्ता छोड रहे हैं।
यह स्पष्ट है कि नए मजदूरों के नारे, मांग, रणनीति और युक्तियां अलग हैं। लैटिन अमेरिका, भारत, फ्रांस, यूरोप आदि में नई ऐतिहासिक और राजनीतिक बदलाव हो रही हैं। पुराने प्रकार के औद्योगिक श्रमिकों को नए श्रमिक द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
काम के घण्टों का प्रश्न अधिक जटिल हो गया है। भारत सहित कुछ दक्षिणपंथी शासनों के हमले में काम के घण्टे बढाये जा रहे हैं और श्रमिकों के अधिकारों पर हमला हो रहा है। इसके अलावा, ‘कार्य‘ की प्रकृति परिवर्तन से गुजर रही है, जिससे निश्चित सामूहिक काम के घण्टों की पहचान करना मुश्किल हो गया है, और इसमें अधिक बदलाव हो रहे हैं।
मजदूर वर्ग आंदोलन को 21वीं सदी के इन नये सवालों को हल करना होगा।