पसरा है सघन अंधेरा

• प्रमोद दीक्षित मलय

अपनों के बीच सदा जो नेह लुटाते आये।
स्वारथ की खातिर सब सुख स्रोत रिझाते आये।
परिवर्तन की धारा के हैं वे विकट विरोधी,
सत्ता की चौखट पर जो शीश झुकाते आये।।

कोई धनिया पीड़ा का पर्वत काट न पाई।
गोबर की राह पर सुमन बिखेर बांट न पाई।
होरी का श्रम है बंधक लाला की पोथी में,
पीढ़ी रही छुटाती, कभी भाग्य बांच न पाई।।

झोपड़ियों में दुख-दैन्य, मधुमास कभी न आता।
पसरा है सघन अंधेरा, उजास कभी न आता।
पांच साल में जब लोकतंत्र है दस्तक देता,
जोड़े हाथ विकास तब, विश्वास कभी न आता।।

Related Articles

Back to top button