दिल्ली, एक जंग का मैदान

विक्की महेसरी
दिल्ली इस जंग का मैदान बन चुका है। दिल्ली का सिंहासन उन रैलियों और नारों को ेकांप रहा है। मजदूर वर्ग के हिरावल दस्ते ने केन्द्र सरकार को इस सदी का सबसे बडा झटका दिया है। यूनियनें और जनता अपनी जीत दर्ज कराने के लिए एकजुट होकर कदम दर कदम आगे बढ रहीं हैं और मोदी सरकार जनता की अदालत में इसे मजबूरी से देखने के लिए विवश है। अपनी नेतृत्वकारी भूमिका में पंजाब इस आंदोलन में समर्पित है, नौजवानों और किसानों की एकता के इस ऐतिहासिक क्षण को जीवंत बनाते हुए।

दिल्ली जो कभी दूर जान पडती थी जनता उसे नजदीक खींच लायी है। राजमार्ग पर हमारे लिए खडे किये गये कंक्रीट अवरोध अब आग के गड्ढे के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं। दिल्ली में दखिल होने वाले राजमार्गों पर नये गांव उग आये हैं।


वो जो सरबत दा भला ;सबकी बेहतरीद्ध चाहते थे वे पूरी दुनिया के सामने एक अनुकरणीय चरित्र का उदाहरण पेश कर रहे हैं। मेहनतकश जनता ने अपने जीवन की गाढी कमाई इस आंदोलन को समर्पित कर दी है। समाज के सभी वर्ग इस एकताब( आंदोलन में योगदान कर रहे हैं और इस लडाई के सबसे महत्वपूर्ण लडाके किसान और मजदूर हैं। प्रदाताओं की नजर में यह ऐक अवज्ञा है जनता का उत्साह दिल्ली से मुकाबला कर रहा है उसे बाहर बुला रहा है, दिल्ली घात लगाये बैठी है।

सिंहासन वाले बाबा नानक, गुरू गोविंद सिंह, बाबा बंदा बहादुर, चाचा अजीत सिंह और भगत सिंह के इतिहास को दोहरा रहे हैं। दिल्ली की सत्ता पोह माह ;दिसंबरद्ध की सर्दी में पीने से तर बतर है और औरंगजेब और हिटलर की खत्मे की याद दिला रही है। दिल्ली के किनारों पर वो लोग जो लंबे समय से बेगमपुरा ;दुखों से मुक्त एक शहरद्ध की बाट जोह रहे थे उन्होंने दिल्ली को घेरकर एक गांव बसा लिया है। हवा मेहनत से पकाये गये खाने की सुगंध से भर गयी है। दिल्ली के प्रवेश द्वारो पर भाई लालो की आग हजारों चुल्हों में जल रही है। और कहीं दूर दिल्ली के अंधेरों में मलिक भागो दुबका हुआ है, अपने अंत की तैयारी करता जान पड रहा है।


एआईएसएफ और इप्टा मोगा अपने थियेटर ग्रुप के साथ इस आंदोलन में एक नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। टीम इस ऐतिहासिक पल में एक ऐतिहासिक भूमिका निभा रही है, कला इस आंदोलन में एक अनौखी जगह बना रही है और कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकार उनके प्रदर्शन की तरह ही अधिक चेतन हो रहे हैं। ‘डरना‘ नाटक एक उदाहरण है। लगातार दो महीने से एक गांव से दूसरे गांव सफर करते इस नाटक ने मजदूर वर्ग के संघर्ष को रेखांकित किया है। हरेक की जबान पर कविता और क्रान्तिकारी गीत हैं जो लोगों के रोष को रूख देने के लिए लिखे गये है।

वहीं कलाकार जो पंजाब में पुलिस से उलझते रहे हैं और विजेता की तरह अपने अभियान को जिंदा रखते रहे हैं, वही दिल्ली के प्रवेश द्वारा सिंघू बार्डर पर जारी संघर्ष में अगली कतार में हैं। इस आंदोलन ने नये गीतों और कविताओं को जन्म दिया है। जनता उन शब्दों को बोले जाने से पहले जानती है।

पूरा कारवां नाटकों, संगीत समूहों, पेंटरों और हरेक तरह के कलाकारों के प्रदर्शनों का आनन्ददायक प्रदर्शन है। प्रदर्शन स्थल एक बडी कला गैलरी में बदल चुका है। टीम अपने नाटकों के प्रदर्शन के लिए 4-5 किलोमीटर का सफर करती है। लागे उन्हें देखने सुनने के लिए अपने ट्रेक्टर, ट्राली पर खडे होते हैं। नाटक में एक मां दिल्ली की तरफ इशारा करके अपने बेटे से पूछती है, उनके पास बंब, राइफल और कैनन हैं तुम उनसे कैसे मुकाबला करोगे। बेटा जवाब देता है, मां, हमारे पास गुरू नानक का दिया हुआ हल और मेहनत का सि(ांत है। लोग इसके समर्थन में जोर से नारे लगाते हैं।

नाटक जारी रहता है। कलाकार गाना शुरू करते हैं, सूरा सो पहचानिये। सारे मेहनतकश इसमें शामिल हो जाते हैं और उनके गीतों की गंूज आसमान तक सुनाई देती है। गीत जनता के गीत में बदल जाता है। हम दिल्ली का समानला कर रहे हैं, लड रहे हैं। और आज गुरू नानक का जन्मदिन है। राष्ट्रीय राजमार्ग को रोशनी जगमगा रही है। बु(िमानी आंदोलन को बढा रही है। कलाकार मोमबतियां थामे ट्रालियों के बीच गोल घेरा बनाये हुए हैं। लोग बैचेनी से आज के कार्यक्रम का इंतजार कर रहे हैं। पूरे इलाके को जगमगाने के लिए लोगों ने अपने ट्रेक्टरों की लाइटें जला दी हैं।

भाई लालों के वारिसों के ‘किसका खून है यह‘ नाटक शुरू करने से पहले वे उर्जा को जगाते हैं। लोग अपनी ईमानदार मेहनत की कमाई का समर्थन कलाकारों को देते हैं, परंतु कालाकर उसे लेने से इंकार कर देते हैं और केवल प्यार ही स्वीकार करते हैं। लोग जलती आंखों से दिल्ली को घूर रहे हैं, जैसे जैसे हम प्रदर्शन आगे बढाते हैं, हम इतिहास के पन्नों में वापसी करते हैं और ऐतिहासिक मलिक भागों के माध्यम से लोग आज के मलिक भागों से रूबरू होते हैं। लोग अपने दृढ संकल्प को दिखाने के लिए दिल्ली की तरफ इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। अनन्त आशावादी, गर्वित लोग इस लडाई को जीतेंगे, इसीलिए यह जरूरी है कि हम जोर से और साफ बोलें।


इस आंदोलन के साथ खडे होकर नौजवान दो उम्मीदों के लिए लड रहे हैं। एक कृषि को बचाने का सवाल है, और बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी का सावल है, और इस आंदोलन से दोनों मसले मजबूत होंगे। बनेगा ;भगत सिंह नेशनल एम्पलायमेंट गांरटी एक्टद्ध नौजवानों के लिए कोई अतिशयोक्ति नहीं है। लोगों ने अपना मीडिया बनाया है। इस इलाकेे में सेल्यूलर नेटवर्क जाम है। एक फोन करना भी लगभग असंभव है, परंतु हमारे मुद्दे अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा साझे किये जा रह हैं।

मानवता ने सभी कुछ निवेश किया है। आंदोलन में पूरा दिन शिरकत करने के बाद हरेक अपनी ट्रालियों की तरफ लौटता है और लंगर बनाता और खाता है और उसके बाद अपने नये अनुभवों के नये गीत लिखना शुरू करता है। शायद लोगोें के गीत वहीं होते हैं जो लोगों के बीच से पैदा होते हैं। यह निर्णायक लडाई है और यह हमारी पूरी ताकत से लडी जानी चाहिए।

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