चुनाव आयोग पर प्रहार:संवैधानिक संकट का सूचक

सुसंस्कृति परिहार
एक स्वायत्त संगठन और अर्धन्यायायिक संस्थान है जिसे हमारे संविधान ने चुनाव जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपी हुई है यदि उसके ख़िलाफ़ मद्रास हाईकोर्ट और चुनाव आयोग पैनल के अधिवक्ता ही उंगलियां उठा रहे हैं तो मामला अति गंभीर की श्रेणी में आता है।यह संवैधानिक संकट की चेतावनी है।
याद आते हैं वे दिन जब टी एन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त ने इसकी पहचान जन जन से कराई। ।इससे पूर्व चुनाव तो लोग जानते थे पर चुनाव आयुक्त और उसके अधिकार को जानते नहीं थे ।शेषन साहिब ने मतदाताओं को एक संबल भी दिया और मत की अहमियत को भी प्रचारित कर मतदान का प्रतिशत बढ़ाया था। सबसे बड़ी बात ये उन्होंने अपने कार्यकाल में अपनी स्वायत्तता को जिस तरह कायम रखा वह एक मिसाल है।आज यह स्वायत्तता माननीयों ने कितनी पतन में पहुंचा दी है इसके क ई मामले सामने आए पर पहली बार खुलकर मद्रास हाईकोर्ट ने इस पर चिंता ज़ाहिर की उसने पाया कि चुनाव आयोग पर हत्या के आरोप लगाने चाहिए और राजनीतिक दलों को कोविड -19 प्रोटोकॉल के सख्त दुरुपयोग से रोकने में पिछले कुछ महीनों में सबसे गैर जिम्मेदार था.देश में बिगड़ी कोविड -19 स्थिति का जिक्र करते हुए अदालत ने यह भी कहा था कि आयोग आज के हालात के लिए जिम्मेदार एकमात्र संस्था है.चुनाव आयोग ने इस तरह की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग पर मीडिया को चुप कराने के लिए अदालत में एक दलील के साथ जवाब दिया, जिसे मद्रास उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.
उन्होंने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने मीडिया को चुप कराने से भी इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालती कार्यवाही पर मीडिया रिपोर्टिंग सार्वजनिक जांच को बढ़ाती है और यह संस्थागत पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है.
अब इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे पैनल के अधिवक्ता मोहित डी राम ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कहा कि उनके मूल्य चुनाव आयोग के मौजूदा कामकाज के अनुरूप नहीं हैं.मोहित डी राम, जिन्होंने 2013 में इस पद को संभाला था, ने विधि आयोग के निदेशक को पत्र लिखकर अपने फैसले से अवगत कराया है।
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) का प्रतिनिधित्व करना एक सम्मान था. मेरे पास अपने कैरियर का यह मील का पत्थर है. यह यात्रा चुनाव आयोग के स्थायी काउंसिल के कार्यालय का हिस्सा होने के साथ शुरू हुई और ईसीआई (2013 से) पैनल वकीलों में से एक के रूप में मैंने काम किया और इस तरह यह आगे बढ़ी.हालांकि, मैंने पाया है कि मेरे मूल्य ईसीआई के वर्तमान कामकाज के अनुरूप नहीं हैं और इसलिए मैंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपने पैनल के वकील की जिम्मेदारियों से खुद को हटा लिया है.सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे पैनल के वकील मोहित डी राम ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा है कि चुनाव आयोग के कामकाज और मेरे मूल्यों के बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा है लिहाजा मैं इस्तीफा दे रहा हूं. मोहित डी राम, साल 2013 से सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के लिए वकील के तौर पर काम कर रहे थे।
इस त्यागपत्र के बाद सुको को अविलंब इस विषय पर संज्ञान लेने की जरूरत है।क्या चुनाव आयुक्त सिर्फ़ सरकार की मंशानुरूप काम करने वाले बनकर नहीं रह गए हैं। लोग मज़ाक में ये कहने लगे हैं कि पी एम की घोषणाएं हो जाएं तभी आचार संहिता लगेगी ।एक दफ़े तो चुनाव आयोग सफ़ा कटघरे में खड़ा हो गया था जब उसने दो बजे पत्रकारों को आमंत्रित कर लिया लेकिन मोदी जी की घोषणाएं चल रही थीं इसलिए समय बदला गया ।ये सब क्या है ?आप आचार संहिता लगाते तब भी घोषणाएं होती तो आपके पास उन पर कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित है।
बंगाल में आठ चरणों में चुनाव एक मज़ाक बना दिया गया जबकि आठ चरणों में पूरे देश में चुनाव हुआ है। मुझे अच्छी तरह याद है सन् 2014का लोकसभा चुनाव था जिसमें नरेन्द्र मोदी को भावी पीएम प्रोजेक्ट किया गया था वे अपने मतदान केंद्र की लाईन में पीछे खड़े होकर कमल का फूल हाथ में लेकर दिखा रहे थे।यह मामला तूल पकड़ा लेकिन गुजरात चुनाव अधिकारी ने यह कहकर उन्हें निर्दोष साबित कर दिया वे 100गज से दूर थे। समरथ को नहीं दोष गुसाईं।अब तो प्रधानमंत्री बनकर उन्होंने कितने कोरोना प्रोटोकाल तोड़े, कितने भाषण आचार-संहिता के विरूद्ध दिए पर कुछ भी नहीं हुआ। चुनाव आयोग कितना कमज़ोर हुआ? क्यों?
इसके साथ ही ई वी एम हटाने के लिए तमाम दल राजी हैं सिर्फ भाजपा को छोड़कर तो इसकी जगह बैलेट से मतदान क्यों नहीं ?यह सिद्ध हो चुका है हजार दो हजार तक की हार को ई वी एम से साधा जा सकता है बिहार राज्य विधानसभा चुनाव में कथित तौर पर 25सीटों पर यह खेला हुआ। बंगाल में कम मार्जिन वाले भाजपा वाले जीते। अधिक वाले सलामत रहे। दमोह उपचुनाव में भी कांग्रेस की जीत इतनी अधिक रही कि खेला का मौका ही नहीं मिला ।इस खेला पर विराम लगना ही चाहिए। ना रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। ईवीएम हटाओ।
एक बार फिर कि यह विचारणीय बिन्दु हैं इस पर विमर्श ज़रूरी है चुनाव आयोग यदि दबाव में काम करेगा तो चुनाव अपने मूल्य खो देगा और संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। इसका निर्मूलन अपेक्षित है।

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