चाहा था हमेशा से तुझको

विचार—विमर्श

चाहा था हमेशा से तुझको
तुम तो बदल गई
मीत मिला और कोई
छोड़कर मुझे,उसके साथ निकल गई

जब तलक चलेगी सांसे
करता रहूंगा बेइंतहा प्यार
खुला रहेगा दरवाजा दिल का
करता रहूंगा तेरा इंतजार
पौ फटते ही ढूँढती है निगाहें
और शाम कब की ढल गई
मित मिला…..

फिजा में जब तक रहेंगी बहारें
गुलशन में फूल खिलते रहेंगे
जिंदगी के आखिरी मोड़ तक
इक दिन तो जरूर मिलेंगे
पूछूंगा तुमसे,मैं हूं अब तक वैसा ही
और तुम कितनी बदल गई
मित मिला….

संजोया था सपना इक
बसाऊंगा घर तुझको लेकर
नहीं झेल पाई तुम झंझावातों को
छोड़ गई मुझको धोखा देकर
दिल लगाई किसी गैर से,
और साथ तू उसके चल गई

चाहा था हमेशा से तुझको
तुम तो बदल गई
मित मिला और कोई
छोडकर मुझे,उसके साथ निकल गई
…..राजेंद्र कुमार सिंह

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