खुशी में होती पहचान रिश्तों की

सबसे सुना था ,दुःख में अपनों की पहचान होती है,पर मुझे जो अनुभव है,उससे लगता है ,दुःख में नही सुख में अपनों की पहचान होती है। वर्तमान समय में लोग आपाधापी भरी जिंदगी में स्वार्थी होते जा रहे है । आज रिश्तों को अपनेपन नही अपितु अपने स्वार्थ से तोल रहे। 
खैर हम विषय से न हटते हुए वापस उसी पर आते है। 

तो मुझे लगता है ,रिश्तों की पहचान सुख में ज्यादा होती है। ये बात वह व्यक्ति ज्यादा अच्छे से बता सकता है,जिसने सुख दुःख दोनो देखा है। 
जब हम दुःख में या गरीबी में होते है। लोग बेचारगी दिखाते है।अंदर से न सही पर ऊपर से तो मानवता दिखाते है। कुछ अपनापन दिखाते है,पर जैसे हीआप सफलता की ओर बढ़ना शुरु करते है। उन्हे आपकी सफलता की ओर बढ़ना शुरु करते है। अब उन्हे आपकी कामयाबी सताने लगती है। आपकी उनसे आगे निकलने की चाह कहीं दम तोड़ती है। और टूटता हैअपनेपन का मुखौटा ।जो अब कहीं आपको आगे बढ़ते देखना नही चाहता । जिसको अब हर बात में आपकी कमियाँ नजर आने लगती है। 

कुछ ऐसे भी है जो दुःख में आपके साथ कभी नही रहे ,पर जहाँ सफलता आयी आपसे झूठा नाता झूठा प्यार प्रदर्शित करने आ जाते है। जिनमें एक बडा़ परिवर्तन स्पष्ट दिखने लगता है। 

और यदि आपने पहले दुःख फिर सुख देखा है। तो ये अंतर बहुत आसानी से देखा जा सकता है। 

आज के दौर में सुख में भी लोग पहचाने जाते है। 
उतार कर कपडे़ जब हमाम में नहाने आते है ।। 
टूट जाता है भरम अपनों में अपनों के होने  का , 
जब आपको नही ,आपकी शोहरत को भुनाने आते है।। 

यह अफसोस है कि इतनी बडी़ दुनिया में माँ बाप के अलावा कोई अपना नही मिलता ।सबके दो चेहरे सबके दो रंग हरपल बदला करते है। कभी एक मुखौटा कभी दूसरा । 

पर जो रिश्ते सच्चे होते है ,सदा एक जैसे ही रहते है। चाहे आप अमीर हो या गरीब ,वो प्रेम से वैसे ही गले लगाते है । 
आप की आँख का आँसू ,उनकी बात का जरिया होता है। आपकी सफलता पर वो खुश होते है । आपको उनकी जरूरत हुई और वो उनके पास आ गये । 

ऐसे ही रिश्तों को सँभालने की जरूरत है जनाब और बाकी को समझ और पहचान कर दूर करने की । 

क्योकि बाकी लोग आप सें नही आपकी स्थिति से प्यार करते है।कोई आपके दुःख से खुश था तो कोई सुख का भागी बनना चाहा । और दे गया आपको एक अंतहीन अकेलेपन का एहसास।। 

सुमति श्रीवास्तव 
जौनपुर 

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