कैसे करें अरहर की खेती और कमाएं भरपूर लाभ–डॉ राम लखन सिंह

संवाददाता/छपिया गोण्डा। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित विज्ञान केंद्र मनकापुर के वरिष्ठ शस्य वैज्ञानिक डॉ राम लखन सिंह ने बताया कि अरहर की खेती करके किसान भाई अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। दलहनी फसलों में अरहर का मुख्य स्थान है।

दलहनी फसलों में प्रोटीन की 24% मात्रा पाई जाती है। ये फसलें प्रोटीन का प्रचुर स्रोत हैं। अरहर की बुवाई का उपयुक्त समय चल रहा है। किसान भाई जुलाई माह में अरहर की बुवाई अवश्य कर दें।

इसकी बुवाई के लिए उत्तम जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। इसकी खेती के लिए ऊंची भूमि जिसमें जलभराव की समस्या न हो उपयुक्त होती है। खेत की तैयारी करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलट हल से तथा 2 जुताईयां देसी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देते हैं। बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त होती है।

बीज शोधन व उपचार करने के लिए एफ आई आर क्रम का ध्यान अवश्य रखें। एफ का मतलब फंगीसाइड, आई का मतलब इंसेक्टिसाइड और आर का मतलब राइजोबियम कल्चर से है। बीज शोधन एवं उपचार के लिए यदि फफूंदनाशी, कीटनाशी एवं राइजोबियम कल्चर का प्रयोग किया जाता है तो सबसे पहले फफूंदनाशी फिर कीटनाशी एवं इसके बाद राइजोबियम कल्चर का प्रयोग करना चाहिए।

दलहनी फसलों के बीज को राइजोबियम से कल्चर से उपचारित करना अति आवश्यक है। राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने पर दलहनी फसलें वायुमंडल में पाई जाने वाली नत्रजन की मात्रा को फसल की जड़ों में पाई जाने वाली ग्रंथियों के द्वारा ग्रहण कर भूमि को उपलब्ध कराती हैं।

राइजोबियम कल्चर से बीज उपचारित करने के लिए 200 ग्राम वजन वाले एक कल्चर के पैकेट से 10 किलोग्राम बीज का उपचार किया जाता है। उपचारित करने के लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ डालकर गर्म करते हैं। ठंडा होने पर इसमें 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर के पैकेट को मिला देते हैं फिर इस घोल को 10 किलोग्राम बीज में अच्छी तरह से हाथ से मिलाकर छायादार जगह में सुखा लेते हैं। इस प्रकार उपचारित बीज की बुवाई खेत में की जाती है।

खेत की तैयारी करते समय डीएपी की 40 किलोग्राम मात्रा एवं म्यूरेट आफ पोटाश की 20 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करते हैं। अरहर की बुवाई मेड़ पर करने से वर्षा ऋतु में फसल का बचाव होता है एवं इसकी उपज में सवा से डेढ़ गुना बढ़ोतरी होती है। इसकी बुआई करने के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2 फीट एवं पौधा से पौधा के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखी जाती है।

बुवाई के तुरंत बाद पेन्डीमैथलीन 30 ईसी की आधा लीटर मात्रा को प्रति एकड़ की दर से ढाई सौ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करते हैं। जिससे खरपतवारों का जमाव नहीं होता है।

फसल की बुवाई के दो सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई करते हैं तथा विरलीकरण द्वारा घने पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर कर लेते हैं।

फसल का दीमक से बचाव के लिए खेत की तैयारी करते समय क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी की एक लीटर मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला देते हैं। अरहर की उपयुक्त प्रजातियों में नरेंद्र अरहर एक, नरेंद्र अरहर दो, पूसा नौ, आजाद मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार आदि मुख्य है।

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