किसान आंदोलन में खेत मजदूरों का शामिल होना क्यों आवश्यक

गुलजार सिंह गोरीया
देश की राजधानी दिल्ली के बार्डरों पर किसान आंदोलन शिखरों पर है। यह आज के समय का ऐतिहासिक आंदोलन बन चुका है। इसकी चर्चा पूरी विश्व में हो रही है। इस किसान आंदोलन ने हर एक वर्ग को प्रभावित किया है। साथ नोवें दौर की बातचीत हो चुकी है और 10वें दौर की बात होने वाली है, परन्तु अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला। सरकार अपने अड़ियल रवैये के कारण तारीख पर तारीख देती जा रही है और किसानों के सब्र का इम्तिहान ले रही है। उसको भ्रम है कि किसान थककर अपने घरों को वापिस चले जाएंगे, परन्तु ऐसा होने वाला नहीं है, क्योंकि किसानों के हौंसले बुलंदियों पर हैं और अब यह आंदोलन केवल किसानों का ही नहीं बल्कि आम लोगों का आंदोलन बन गया है।

भयंकर सर्दी और बरसते बादलों में भी किसान पूरी तरह से डटे हुए हैं, क्योंकि पिछले 40 दिनों से मुझे खुद भी भिन्न-भिन्न बार्डरों पर इस आंदोलन में भाग लेने का अवसर मिला है। अब तक इस संघर्ष में सौ से ज्यादा किसान भाई अपनी जानें कुर्बान कर चुके हैं। इसमें 6 खुदकुशियां भी शामिल हैं। यह बहुत दुखद घटना है। यह शांतपूर्वक आंदोलन देश और दुनियां में अपना अलग इतिहास बना रहा है।


देश की सरकारों ने खेती क्षेत्र को दरकिनार किया और इस संकट के कारण यहां के किसान और खेत मजदूर बहुत भयंकर आर्थिक हालातों में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। खेती में कौमी आमदन सिर्फ 16.5 प्रतीशत ही रह गई। 42.5 प्रतीशत आबादी 2018-19 के सर्वे के अनुसार खेती से जुड़ी हुई है। देश के 86 प्रतिशत छोटे और मध्यम किसानों के पास औसतन 2 हैक्टेयर से भी कम जमीन की मालकियत है। सिर्फ 1 फीसदी आबादी के पास 10 हैक्टेयर से ज्यादा जमीन है। खेती में से आमदनी कम हो रही हैं। गांव क्षेत्रों में बेचैनी का आलम है। खेती में किसान और खेत मजदूरों को निरंतर कार्य नहीं मिल रहे हैं। यह दोनों वर्ग धीरे-धीरे खेती से बाहर हो रहे हैं। इनके लिए सरकार की तरफ से कार्य का कोई प्रबंध नहीं किए जा रहे हैं। खेती आधारित इंडस्ट्री नहीं लगाई जा रही हैं। इस संकट की घड़ी में सरकार को चाहिए कि सभी संबन्धित वर्गों से मिलकर खासतौर पर किसानों और खेत मजदूरों को सुनकर कोई अच्छी नीति लाई जाए, पर सरकार लेकर आई नए-कानून, जो खेती में बड़े कार्पोरेट घरानों की सीधे ही कानूनी दखलअंदाजी की इजाजत देते हैं, क्योंकि कार्पोरेट घरानों अडानी-अंबानी की सहायता से बनी सरकार खेती में इनको लाना चाहती है।

केंद्र सरकार ने कोरोना की आड़ में बिना बहस किए संसद में अपनी बहुमत-गिनती से और विपक्ष को नजरअंदाज करके तीनों खेती कानून पास करवा लिए। यह तीनों खेती विरोधी, देश विरोधी और संविधान विरोधी कानून लागू होने से मौजूदा मंडी सिस्टम को खतरा पैदा हो जाएगा। बदली मंडी के प्रबंधन में कार्पोरेट घराने आएंगे। वह कुछ समय ज्यादा रेट देकर बाकी समय अपनी जिम्मेंवारी से पीछे हटेंगे। एफ.सी.आई का रोल कम होगा।

खेती जिन्सों को खरीदने की गांरटी नहीं होगी। कम से कम समर्थन मूल्य के लिए आज भी सरकार कानूनी तौर पर गांरटी देने को तैयार नहीं। प्रश्न केवल एमएसपी के एलान का ही नहीं, बल्कि खरीद की गांरटी की भी है। कार्पोरेट घरानों की तरफ से जरुरी वस्तुएं खरीद कर ज्यादा से ज्यादा स्टाक करने की खूली छूट से यह लोग मनमर्जी के रेटों से अनाज बेचेंगे, जिससे गरीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा प्रणाली को खतरा उत्पन हो जाएगा। इसका सीधा असर यहां के खेत मजदूरों और अन्य किरती वर्गों पर पड़ेगा। तीसरे कानून के जरिए कांट्रैक्ट सिस्टम के अधीन धीरे धीरे बड़े कार्पोरेट घराने अपने बड़े प्रबंधो भाव ज्यादा मशीनरी के जरिए खेती में आएंगे और सीधे तौर पर रोजाना की दिहाड़ी करने वाले खेत मजदूरों के लिए खेती में कार्य मिलना असंभव हो जाएगा। सरकार के पास वैकल्पिक काम का कोई प्रबंध नहीं है। इससे गांव क्षेत्रों में इन खेती कानूनों का सख्त विरोध हो रहा है।

सरकार इन कानूनों को वापिस लेने को तैयार नहीं। इस लिए देश में चल रहे किसानी घोल में खेत मजदूर इसका पूरा साथ दे रहे हैं, क्योंकि यह आंदोलन केंद्र सरकार की कार्पोरेट नीतियों के खिलाफ हैं और अपनी आर्थिक मांगों के लिए है, बाद में इसके राजनीतिक परिणाम भी निकलेंगे। लोगों में एकत्रित होकर संघर्ष करने का हौसला भी बनना है। इस आंदोलन में खेत मजदूर सीधे तौर पर जत्थे लेकर दिल्ली के बार्डरों पर भी आए। बहुत सारे किसान भाईयों के साथ भी आए। गांवों में आर्थिक और सामाजिक विपरीत हालातों के बावजूद इस आंदोलन ने गांव की भाईचारा सांझ बढ़ाने में एक बहुत बड़ा रोल अदा किया है।

किसानों को अपने असल जमाती दुश्मन की पहचान हुई है। इसमें हर तरह के राजनीतिक जत्थेबंदियों के बावजूद आर्थिक मुद्दों पर एकता मजबूत है, यह इस आंदोलन का शुभ शगुन है। गांव के खेत मजदूरों की सबसे पहली खेत मजदूर जत्थेबंदी, भारतीय खेत मजदूर यूनीयन ने 5 जून 2020 से ही जब यह खेती विरोधी कानूनों के तीन अध्यादेश जारी किए, उस दिन से जोरदार विरोध का ऐलान कर दिया था। पंजाब में 50 हजार हैंडबिल छपवा कर बांटे और लोगों को जागरुक किया। अब भी पूरे विश्व में यह जत्थेबंदी किसानों के साथ मिलकर संघर्ष में है।

यह केंद्र सरकार पर जोर डाल रही है कि वह अपना कड़ा रवैया छोडकर संयुक्त किसान मोर्चे के आगुओं से खुले मन से बात करे और यह जन विरोधी काले कानून वापिस ले। किसानों और खेत मजदूरों के जीवन निर्वाह के लिए ठोस योजना लेकर आए। इसके साथ ही देश में किसानों और मजदूरों की एकता को मजबूत करके संघर्ष को ओर विशाल और तेज करने की जरुरत है। आने वाले दिनों में खेत मजदूर 23 जनवरी को नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी का जन्मदिवस किसान आंदोलन की मजबूती के लिए मनाएं और 26 जनवरी को बड़े पेमाने पर ट्रैक्टर मार्च में गणतंत्र दिवस मनाने की जरुरत है और साथ ही चल रहे आंदोलन में ज्यादा से ज्यादा सरगर्मी करने की जरुरत है।

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