एक शाम अली जावेद के नाम

1 अक्टूबर 2021 की शाम JNU के साबरमती ढाबा परिसर में प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और जेएनयू में एआईएसएफ़ के पूर्व छात्र नेता, प्रो अली जावेद को याद को याद किया गया। कार्यक्रम का आयोजन AISF JNU, Convenor संतोष कुमार द्वारा किया गया था, जबकि IPTA के नेतृत्व में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की इस नज़्म “चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़” से प्रोग्राम की शुरुआत हुई। इसके बाद मुक्तिबोध की कविता “ हमारे पास तुम्हारे पास” , पाश की “ हम लड़ेंगे साथी” नामालूम कवि “सन्नाटों का शोर हमारी गलियों में” और अरविंद चतुर्वेद की कविता “हमारी सारी दुनिया न देखो ” को प्रस्तुत किया।

अंतिम प्रस्तुति प्रगतिशील लेखक संघ, दिल्ली के वरिष्ठ सदस्य राजीव कुमार शुक्ल ने IPTA के साथियों के साथ मिलकर तैयार की थी। राजीव शुक्ल प्रलेस के अलावा लम्बे समय से IPTA में भी सक्रिय रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन IPTA के मनीष श्रीवास्तव ने किया।

ये आयोजन इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रहा कि सत्तर के दशक के पूर्व छात्र (जिनमे ज़्यादातर रिटायर्ड हैं ) और कई पीढ़ी बाद के युवा छात्र छात्राओं ने मिलकर अली जावेद के बहाने जेएनयू के स्वर्ण युग को याद किया। मौलाना आज़ाद उर्दू नेशनल यूनिवर्सिटी के के पूर्व रीजनल डारेकटर प्रो शाहिद परवेज़ , हिंदी के लेखक प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल, प्रो अजय पटनायक और फ़रहत रिज़वी ने साथी अली जावेद के साथ अपनी यादों को साझा किया।

ये सभी प्रो अली जावेद के सहपाठी या उस समय एआईएसएफ़ के कार्यकर्ता रहे चुके हैं। इस यादगार शाम की सबसे ख़ुशनुमा बात प्रो चमन लाल की आमद और अली जावेद को उनकी स्नेहपूर्ण श्रधांजलि रही। भारतीय भाषा केंद्र जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष प्रो चमन लाल जो पटियाला में रेहते हैं और संयोग से दिल्ली आए हुए थे।

सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें इस प्रोग्राम की जानकारी मिली और अपने पूर्व साथी के प्रति उनका स्नेह यहाँ खींच लाया। उन्होंने पिछले सात सालों को छोड़कर इस शिक्षण संस्थान के बारे में बात करते हुए कहा कि यहाँ के पढ़े छात्रों की हमेशा यही इच्छा रहती है कि अपना अध्यापन करियर भी यहीं शुरू करें, लेकिन यहाँ से दूर दूसरे संस्थानों में भी जाकर हम अपनी विचारधारा और लोकतांत्रिक मूल्यों के ज़रिए अपने संदेश को पुहँचा सकते हैं।

चमन लाल ने JNU के मौजूदा वाइस चांसलर जगदीश कुमार को सीधा निशाना बनाते हुए कुमार के कार्यकाल को इस शैक्षिक संस्थान पर बदनुमा दाग़ बताया। अली जावेद की लिखी कविताओं “नोहा कर्बला ए हिंद” और “ ओ गंगो जमन” को भी प्रस्तुत किया गया। अंत में अली जावेद के पुत्र कामरान ने पिता के साथ अपनी यादों को साझा करते हुए सबका शुक्रिया अदा किया और कहा कि उनके जाने के बाद हमें एहसास हो रहा है कि कितने लोगों के साथ उनका वैचारिक और भावनात्मक जुड़ाव था।

जिस तरह से देश और देश से बाहर से लोगों ने बीमारी के दौरान चिंता जताई की और बाद में शोक संदेश आए, शोक सभाएँ हुईं, उससे अंदाज़ा हो रहा है कि कितने लोग उन्हें चाहते थे। कार्यक्रम में अली जावेद के परिजनों के अलावा दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो अबु बकर आबाद, डॉक्टर सफ़ीना, कामरेड अभय कुमार, मीनाक्षी सुंदर्याल, गिरिराज सिंह, कामरेड फ़ौजान, IPTA टीम समेत बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की।

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