खुले आसमानी जेल में भटकती चीख फिलिस्तीनी जिन्दगानियों की

जगदीश चंद
अक्टूबर 24 को एक युद्ध विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर इस्राइली हवाई हमले में फिलिस्तीनी कवि, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता अहमद अबु आर्तेना गंभीर रूप से जख्मी हुए, इस हमले में इनके 12 साल के बेटे समेत परिवार के पांच सदस्यों की मृृत्यु हुई।

आर्तेमा ने हाल ही में ‘‘गाजा मारा जा रहा, हमें सख्त जरूरत है आपकी मदद की’’ शीर्षक से नेशन पत्रिका में प्रकाशित लेख में लिखा कि, ‘इस्राइल ने जब हमारे शांतिपूर्ण प्रदर्शन का इस तरह के रक्तपात से जवाब दिया उसने स्पष्ट संदेश दिया किः कोई फर्क नहीं पड़ता यदि तुम अपनी मांगों को अहिंसापूर्ण तरीकों से हासिल करने की कोशिश करते हो। हम मारेंगे तुम्हें और कुछ भी हो तुम्हारे हकों को नहीं देंगे तुम्हें।’’

उनके अनुसार फिलिस्तीनी खुले आसमां के नीचे असलियत में जेल में हैं। गाजा में 75 प्रतिशत से ज्यादा फिलिस्तीनी शरणार्थी हैंं। यानी गांव और शहर जहां वे पैदा हुए सभी इस्राइली दीवारों के उस पार हैं।

‘‘हम गाजा की इस खुली जेल में मर रहे हैं। हम मर रहे हैं चूंकि दवाएं नहीं हैंं, खाना नहीं, काम नहीं है, नौकरियां नहीं हैं, फैक्टरियां नहीं हैंं। पिछले दस सालों में हजारों फैक्टरियां इस्राइली हमलों में नष्ट हुई हैं। इसलिए जब हजारों फिलिस्तीनी वापसी के मार्च में शामिल होते हैं वे कहते है हमने अपने वापसी के हक को कभी नहीं छोड़ा। यह हमारा आम अधिकार है, और यह अधिकार संयुक्त राष्ट्र के 194वें प्रस्ताव पर आधारित है। इसलिए फिलिस्तीनी उम्मीद की तलाश में हैं। वे उम्मीद चाहते हैं। वे सम्मानजनक जीवन चाहते हैं। वापसी का मार्च जिन्दगी की चीख है। यह बंद दरवाजे को खटखटाना है। जब कोई आदमी जेल में बिना खाने, बिना दवाई के होता है। उसके पास अपनी जान बचाने के लिए दरवाजा खटखटाना पड़ता है। फिलिस्तीनी गाजा में यही कर रहे हैं। वे इस्राइल से कह रहे हैं कि हमारी जीने की तमन्ना ज्यादा मजबूत है नाउम्मीदी से। इसलिए हम संघर्ष कायम रखेंगे। फिलिस्तीनियों के पास यही एक रास्ता है। हम संघर्ष करना चाहते हैं। हम जिन्दगी के लिए संघर्ष करना चाहते हैं। हम इंसानियत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम इंसाफ के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
पिछले 26 दिनों से चल रहे एकतरफा युद्ध में 8500 से ज्यादा लोगों अधिकांशतया महिलाएं और बच्चे इस्राइली सेनाओं के बर्बर हमले में मारे गए है।

इस्राइली हवाई हमलों ने अस्पतालों को अपना निशाना बनाया हुआ है।

गाजा पट्टी में इंडोनेशिया अस्पताल का एक हिस्सा बमबारी से क्षतिग्रस्त हो गया है। यह अस्पताल गाजा पट्टी के 4 लाख से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देता है और गाजा पट्टी का यह हिस्सा गाजा के दूसरे हिस्सों से कट गया है।

हवाई हमलों और टैंकों की बमबारी के कारण हजारों फिलिस्तीनियों के लिए अस्पताल सिर छिपाने की जगह बन गए हैं। इस्राइल ने पनाहगाह फिलिस्तीनियों को और घायलों एवं अन्य जरूरतमंद लोगों को अस्पताल से बेदखल करने और उन्हें वहां भी जीवित न छोड़ने के मकसद से कल एक अन्य अस्पताल तुर्किश हॉस्पिटल पर भी हवाई हमला किया। तुर्किश हॉस्पिटल फिलिस्तीन की गाजा पट्टी के आसपास एक मात्र हॉस्पिटल है जहां कैंसर के मरीजों का इलाज होता है।

इसी तरह गाजा पट्टी का एक अन्य अस्पताल अल-शिफा बिजली संकट से जूझ रहा है। फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 29 अक्टूबर को बिजली आपूर्ति बंद होने की घोषणा की थी। अल-शिफा अस्पताल गाजा पट्टी का सबसे बड़ा अस्पताल 40 प्रतिशत आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं देता है जिसमें कि वेंटिलेटर और चिकित्सा उपकरणों ;संयंत्रोंद्ध पर निर्भर मरीजों की संख्या ज्यादा है।

आपात साधन, जेनरेटरों, के ईंधन के अभाव में आईसीयू एवं वेंटिलेटर पर पड़े घायलों एवं अन्य मरीजों के इलाज के लिए यह अस्पताल कराह रहा है। उनका संकट इस हद तक बढ़ गया है कि वे दुविधा वाली स्थिति में है, किसे बचाए और किसे छोड़े। डॉ. मोइन अल मासरी के अनुसार, ‘‘ईंधन के अभाव में बिजली के न होने का मतलब आईसीयू के कई घायलों, मरीजों की मृृत्यु, इनमें से कईयों को श्वसन उपकरण ;यंत्रद्ध की जरूरत है, इसके अलावा आॅपरेशन वार्डोंं में और कई अन्य वार्डोंं में 240-250 तक की संख्या में मरीज गंभीर हालत में है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल एंटी फंगल दवाओं के भारी अभाव में है। गाजा के लोगों पर मौत अलग-अलग रूपों में मंडरा रही है। गाजा पर इस इस्राइली हमले और घेरेबंदी से पहले लगभग दवाओं और चिकित्सा उपकरणोंं से संबंधित सामान के 400 से ज्यादा ट्रक प्रतिदिन आते थे और अभी मुश्किल से 8 से 12 ट्रक जो कि बस कहने और देखने भर के लिए हैं।

यूनिसेफ के कार्यकारिणी अधिकारी कैथरीन रसेल ने कहा कि ‘‘पीने का पानी का अभाव और स्वच्छ शौच व्यवस्था तबाही के कगार पर है। फिलिस्तीनी शारणार्थियों के प्रमुख यूनाइटेड नेशन्स रीलीफ एवं वर्क एजेंंसी की प्रमुख लज्जÛरीनी ने मानवीय आधार पर तत्काल युद्धविराम की अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि, ‘‘लाखों लोगों के लिए जीवन और मृृत्यु का प्रश्न बन गया हैं।’’ उन्होंने आगे कहा कि गाजा पर लगाई गई मौजूदा घेराबंदी सामूहिक सजा है। दो हफ्तांे की पूरी घेरेबंदी के बाद पिछले हफ्ते से दुर्लभ-सी राहत यानी कि बुनियादी सुविधाएं ढह गई हैं, दवाएं खत्म हो रही है, भोजन और पानी, ईंधन खत्म हो रहा है, गाजा की सड़कों पर सीवर का पानी भर रहा है जिससे जल्द ही महामारी फैलने की आंशका है’’।

इस्राइली ने 31 अक्टूबर को हमास के कमांडर को मारने के नाम पर ‘‘दुनिया के सबसे सघन आबादी वाले इलाके’’ जबालिया पर हवाई हमले किए। इस हमले में लगभग 50 फिलिस्तीनी मारे गए और लगभग 150 लोग जख्मी हुए। मंगलवार के इन हवाई हमलों में कई रिहायशी इमारतें नष्ट हो गई। कई परिवार इन हमारतों के मलबों के नीचे फंसे हुए हैं। मृत शरीरांे ;शवोंद्ध की सफेद कपड़ों में एक लंबी कतार इंडोनेशिया अस्पताल के बाहर एक शरणार्थी कैम्प में रखी हुई थी, जहां डॉक्टर जीवितों के इलाज के लिए संघर्ष कर रहे थे।
इस्राइल के सैन्य अधिकारियों ने स्वयं कहा कि तथाकथित आरोपी हमास कमांडर को निशाने पर लेने के लिए, ‘‘व्यापक-स्तर पर हमले’’ किए गए।

ये उत्तरी-शरणार्थी कैम्प गाजा पट्टी में 1948 के नकÛबा के बाद बने थे। ये कैम्प अपने आप में शहर के अंदर कई छोटे शहर जैसे बन गए थे, ये कैम्प दुनिया के अन्य शरणार्थी कैम्पों से अलग हैंं। गाजा पट्टी के इन कैम्पों मे बसे शरणार्थियों के लिए गाजा पट्टी का उत्तर मध्य या दक्षिण कोई भी हिस्सा सुरक्षित नहीं है। इस्राइल हमले के पहले दिन से ही इस पूरी पट्टी में इस्राइली हमले जारी हैं।

‘‘गाजा में, नागरिकों के घरों, स्कूलों, चर्चों, मस्जिदों और अस्पतालों पर निर्दयतापूर्वक हमले किए गए हैं जिसमें हजारों नागरिकों का नरसंहार किया गया है। येरूशलम सहित पश्चिमी गाजा में घरों को कब्जों में लेकर फिर से पूरी तरह नस्ल के आधार पर खत्म कर दिया गया है और इस्राइली सैन्य इकाईयों ;टुकड़ियोंद्ध ने हिंसक उपनिवेशी ;सेटलरद्ध कार्यक्रम चलाए हैं। इस पूरी जमीन में, भेदभाव भरे कानून हैं। उक्त वक्तव्य एक पत्र में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के उच्चायुक्त क्रेग मोखिबर ने सार्वजनिक रूप से संयुक्त राष्ट्र को इस मुद्दे पर असफल ठहराते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र पर आरोप लगाते हुए कहा कि यू.एन. इस्राइल के अन्तरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन पर ‘‘अलग किस्म के कानून’’ लगाता है।

यू.एन. अपनी एनफोर्समेन्ट प्रक्रियाओं के ‘‘प्रभावी’’ इस्तेमाल करने से इंकार कर रहा है और इस तरह से ‘‘चीजों को ढकने’’ जैसे काम कर रहा है ‘‘जिसके पीछे जो हमने और आपने भी देखा कि फिलिस्तीनियों की बेदखली और भी बिगड़ रही है’’।

उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यू.एन. के गालियारों में यह एक खुला तथ्य है कि तथाकथित दो-राष्ट्र समाधान प्रभावी रूप से असंभव है’’, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ‘‘नए प्रतिमान’’ की इस क्षेत्र में जरूरत है जो कि ‘‘सबके लिए समानता’’ के आधार पर होनी चाहिए।

क्रेग मोखिबर अन्तरराष्ट्रीय कानून के लंबे समय से मानवाधिकार वकील हैं। उनका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त पद से इस्तीफे का पत्र ‘‘वायरल’’ हुआ है।

क्रेग मोखिबर ने अपने पत्र में एक अन्य जगह लिखा कि, ‘‘इससे भी ज्यादा, अमरीका, ब्रिटेन और अधिकतर यूरोपीय देश इस जघन्य हमलों में पूरी तरह लिप्त हैं। न केवल ये सरकारें जेनेवा कन्वेशन के लिए ‘‘सम्मान सुनिश्चित करने के लिए’’ अपनी संधियों की बाध्यताओं को मानने से इंकार कर रही है बल्कि इस्राइल को हमलों के लिए सशस्त्र कर रही हैं, इस्राइल को आर्थिक और गुप्तचर समर्थन दे रही हैं और इस्राइल के हमलों को राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से ढक रही हैं’’।

क्रेग ने डेमोक्रेसी नाऊ को दिए अपने साक्षात्कार में कहा कि जब हम एक ओर संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में मानव अधिकारों की घोषणा का 75वीं सालगिरह मना रहे हैं वहीं विरोधाभास है कि ‘‘ठीक उसी साल फिलिस्तीन में ‘नकबा’ हुआ और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद अपनाया गया। हमने देखा है कि सतत अन्तरराष्ट्रीय कानून और यू.एन. अन्तरराष्ट्रीय मानव अधिकार के आग्रह और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की वजह से दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद खत्म हुआ। हमने वही नजरिया फिलिस्तीन के प्रति नहीं अपनाया। हम इन राजनीतिक प्रक्रियाओं से हट गए और इसी कारण हमने फिलिस्तीन जनता के दमन का अंत नहीं देखा, बल्कि हमने फिलिस्तीनियों की हालात को लगातार बदतर होते देखा है।’’

वहीं पिछले शुक्रवार को यू.एन. को आम सभा में मानवीय आधार पर युद्धविराम के लिए भारी समर्थन मिला। यद्ध विराम के लिए मतदान में अमरीका और इस्राइल ने इस प्रस्ताव के विरूद्ध वोट किया।

पूरे सप्ताह गाजा पर हमलों के विरोध में विश्व भर में प्रदर्शन हुए।
न्यूयार्क में ‘ज्यूइश वाइस फॉर पीस-न्यूयार्क सिटी’ के हजारों सदस्य और संगठन के समर्थन में कई संगठनों और व्यक्तियों ने, अमरीकी कांग्रेस के कई सीनेटरों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, छात्रों ने न्यूयार्क शहर के ग्रांड सेन्ट्रल स्टेशन के मुख्य दर्मिनल को बंद कर दिया। यह न्यूयार्क धरना न्यूयार्क शहर का 20 साल बाद हुआ ऐतिहासिक धरना था जिसमें 400 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने गिरफ्तारी दी।

प्रदर्शनकारियों में कई काले रंग की टीशर्ट पहने थे जिस पर लिखा था ‘‘हमारे नाम पर नहीं’’, बैनरों पर ‘‘फिलिस्तीन आजाद हो’’, ‘‘इस्राइली युद्ध विराम चाहते हैं’’, ‘‘दुबारा कहीं कभी नहींं’’ जैसे नारे लिखे हुए थे। इस प्रदर्शन का नेतृृत्व न्यूयार्क सिटी के प्रगतिशील, यहूदी, रब्बी कर रहे थे। कई प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे कि हमारे टैक्स के डॉलरों का उपयोग युद्ध के लिए नहीं। एक प्रदर्शनकारी, जेनी हिृशमान, जो कि हॉलोकास्ट —फासीवाद जनसंहार— से बच गई थी, ने कहा कि ‘‘यह सब कभी दुबारा, कभी किसी के लिए नहीं होना चाहिए। हम इसका समर्थन नहीं करते है और नेतन्याहू को गाजा पर बमबारी रोकनी चाहिए। आपको मालूम है यह हमास ने नहीं किया। यह 1948 में शुरू हुआ था जब 7,50,000 फिलिस्तनियों को यहूदी राष्ट्र बनाने के लिए हटा दिया गया था। और ये लोग, जिन्हें इस्राइली सेना गाजा में मार रही है, ये गाजा चले गए थे 1948 नकÛबा के कारण, यानी तबाही के कारण। और अब वे इनका संहार करना चाहते हैं, मारना चाहते हैं या कहीं ओर भेजना चाहते हैं। यह रूकना चाहिए। और यहूदियों को, अमरीकी यहूदियों को आगे आना चाहिए और कहना चाहिए कि ‘‘हमारे नाम पर नहीं, हमारे टैक्स से नहीं। तुम हमारी आंखों के सामने इस तरह का जनसंहार नहीं कर सकते या कभी भी नहीं कर सकते’’।

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