शासकीय अधिवक्ता की अर्जी और मसाजिद कमेटी की आपत्ति पर भी सुनवाई मंगलवार को
वाराणसी। ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी (Gyanvapi Shringar Gauri) मामले में सोमवार को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेस (District Judge Dr. Ajay Krishna Vishwas) की अदालत में सुनवाई हुई। जिला जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले में फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया। अदालत में मंदिर पक्ष, जिला शासकीय अधिवक्ता (civil) के प्रार्थना पत्र और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की आपत्ति पर सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत परिसर में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए थे।
अदालत में वादी लक्ष्मी, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक (Wadi Lakshmi, Sita Sahu, Manju Vyas, Rekha Pathak in Dalat) एवं उनके अधिवक्ता, प्रतिवादी पक्ष एवं उनके अधिवक्ता और शासकीय अधिवक्ता के अलावा अन्य का प्रवेश प्रतिबंधित रहा। जिला अदालत मंगलवार को यह फैसला करेगी कि पहले याचिका की पोषणीयता के मुकदमे की सुनवाई हो या श्रृंगार गौरी प्रकरण में आईं आपत्तियों को पहले सुना जाए। साथ ही भी तय करेगी कि किन मुद्दों पर पहले सुनवाई होगी। लगभग 45 मिनट तक वादी और प्रतिवादी पक्ष ने जिला जज के सामने दलीलें पेश कीं। प्रतिवादी पक्ष का इस दौरान जोर था कि पहले पोषणीयता यानी 711 (places of worship act) पर सुनवाई हो। वहीं, वादी पक्ष के अधिवक्ताओं की दलील थी कि अन्य के साथ ही उसकी सुनवाई हो।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत ने भी दाखिल की याचिका (Former Mahant of Kashi Vishwanath temple also filed a petition)
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने सोमवार को जिला अदालत में याचिका दाखिल की। याचिका के जरिये उन्होंने ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के स्नान, भोग-राग, श्रृंगार और पूजापाठ का अधिकार देने की मांग की है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता (Places of Worship Act 1991 does not apply)
ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में जिला जज के अदालत में सुनवाई के पहले वादी पक्ष के अधिवक्ता विष्णु जैन ने पत्रकारों से दो टूक कहा कि ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 (Places of Worship Act-1991) लागू नहीं होता है। 1937 में दीन मोहम्मद के केस का उल्लेख कर कर उन्होंने कहा कि उस मामले में 15 लोगों ने इस बात की गवाही दी थी कि वहां पूजा होती थी जो 1942 तक हुई। इसलिए वह एक्ट ज्ञानवापी प्रकरण में प्रभावी नहीं होगा। यही तथ्य हम अदालत के सामने भी रखेंगे।
उल्लेखनीय है कि 20 मई को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की तीन सदस्यीय बेंच ने ज्ञानवापी प्रकरण (Gyanvapi case) को वाराणसी सिविल कोर्ट (senior division) से जिला अदालत को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि जिला जज 8 हफ्ते में अपनी सुनवाई पूरी करेंगे। तब तक 17 मई की सुनवाई के दौरान दिए गए निर्देश जारी रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 21 मई को सिविल जज (senior division) रवि कुमार दिवाकर के कोर्ट ने ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित पत्रावली जिला कोर्ट को सौंपी।