न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए किसानों का आंदोलन

रावुला वेंकैया

केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पेश किए गए अंतरिम बजट में 48 लाख करोड़ की राशि आवंटित की जानी है। इस आवंटन में से 1 लाख 27 हजार करोड़ की राशि कृषि और उससे जुड़ी इकाइयों के लिए आवंटित की गई है। पिछले साल के बजट में इसके लिए एक लाख पच्चीस हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। पिछले साल यह 4.26 प्रतिशत थी और अब आज कृषि के लिए यह गिरकर 2.4 प्रतिशत हो गयी है। किसान समर्थन मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। लेकिन प्रत्येक किसान परिवार के लिए केवल थोड़ी सी राशि आवंटित की गई है। किसानों को कम से कम नौ हजार करोड़ की बढ़ोतरी की उम्मीद थी।

यदि भारत में 15 करोड़ परिवार हैं तो सम्मान निधि भी 11.5 करोड़ है। व्यावहारिक रूप से सरकार ने केवल नौ करोड़ किसान परिवारों के लिए ही खर्च किया है। फर्टिलाइजर सब्सिडी पहले 2 लाख 64 हजार करोड़ थी। आज यह घटकर 2 लाख 51 हजार करोड़ रह गया है। हमारे पास पहले मूल्य स्थिरीकरण कोष था, लेकिन अब उसे भी रद्द कर दिया गया है। किसान संघ फंड को स्थिर करने के लिए 100,000 रुपये की मांग कर रहे हैं। मोदी के दस साल के शासनकाल में कर्ज के बोझ से लोगों ने आत्महत्या की। केरल के किसान देश के बाकी हिस्सों में भी कानूनी अधिकार के तौर पर कर्ज राहत कानून की मांग कर रहे हैं। बजट में इसका जिक्र तक नहीं है।

हाल ही में किसानों के लिए काम करने वाले डा. स्वामीनाथन और पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लेकिन किसानों के लिए उन्होंने जो नीतियां सुझाईं, उन पर अब तक अमल नहीं हो सका है। डा. स्वामीनाथन की रिपोर्ट में किसानों की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ;एमएसपीद्ध पर जोर दिया गया है और किसानों ने सी2़50 को कानूनी गारंटी अधिकार देने की मांग की है। सत्ता में आने से पहले नरेंद्र मोदी ने डा. स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था। लेकिन साल 2015 में सत्ता में आने के बाद एनडीए की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया गया कि डा. स्वामीनाथन रिपोर्ट व्यावहारिक नहीं है और इसलिए सरकार इस रिपोर्ट को लागू करने में असमर्थ है। एनडीए ने कहा कि इनके लागू होने की स्थिति में उपभोक्ताओं पर भारी बोझ पड़ेगा।

2016 में मोदी ने वादा किया था कि उनकी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देगी। 8 साल बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। 13 महीने के इंतजार के बाद 2020-21 में ऐतिहासिक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया गया। नरेंद्र मोदी ने अंततः सभी किसानों से माफी मांगी और किसानों के लिए हानिकारक तीन काले कानूनों को वापस ले लिया। लेकिन किसान संगठनों को एक भी लिखित गारंटी नहीं दी गई। उन आश्वासनों में उन्होंने किसानों के लिए समर्थन मूल्य लागू करने का वादा किया था। केरल शैली के ऋण राहत कानून में आंदोलन के दौरान मारे गए 750 लोगों के परिवारों को मुआवजा भी दिया गया।

किसानों पर दर्ज हजारों मुकदमे वापस लेने का भी वादा किया गया। दो वर्ष बीत जाने के बावजूद इनमें से किसी पर भी अमल नहीं किया गया। पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया गया लेकिन उत्तर प्रदेश से ही। यह भी सच है कि इसी राज्य के लखीमपुर खीरी में किसानों पर कार चढ़ा दी गई, जिससे चार किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गई। गाड़ी चला रहे मंत्री अजय मिश्रा और उनके बेटे आशीष मिश्रा पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

इस संदर्भ में, एसकेएम और श्रमिक संघों ने महापड़ाव नामक एक संयुक्त मंच का गठन किया और सभी राज्यों में विरोध कार्यक्रमों के साथ-साथ देश भर में ट्रैक्टर रैलियां आयोजित की गईं। अपील के पत्र राज्य के राज्यपालों को दिये गये। 16 फरवरी को राष्ट्रव्यापी ग्रामीण बंद और कस्बों में आम हड़ताल सफलतापूर्वक आयोजित की गई। हाल ही में 13 और 14 फरवरी को पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली कूच का आह्वान किया था। केंद्र सरकार ने गैस और पानी बमों का उपयोग करके उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस और सेना को तैनात किया है। दिल्ली की सीमा में लड़ाई का माहौल बन गया। देश के तमाम लोगों ने इन घटनाओं और किसानों को लेकर अपनाए गए रवैये की निंदा की।

पृष्ठभूमि में, एक और कार्यक्रम था कि यूरोपीय देश जैसे फ्रांस, जर्मनी और ग्रीस आदि। नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे पश्चिम एशियाई देशों में भी किसान यही मांग कर रहे थे और वह भी अपनी उपज के लिए लाभकारी मूल्य के लिए। और इनपुट लागत पर सब्सिडी। उनके देशों में बड़े पैमाने पर आंदोलन, प्रदर्शन और आंदोलन चल रहे हैं। अपनी राजधानी के लिए हजारों ट्रैक्टरों का रैली केंद्रों पर पहुंचना और विभिन्न रूपों में संघर्ष जारी है। हमारे देश में भी संयुक्त किसान मोर्चा सरकार से किसान आंदोलन को जारी रखने की मांग कर रहा है क्योंकि मोर्चा पूरे भारत में इसे सफल बनाने के लिए किसानों से आह्वान कर रहा है।
लेखक अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के अध्यक्ष हैं

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