9वें इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ जर्नलिस्म में वर्ल्ड रेडियो डे मनाया गया

विचार—विमर्श

वर्ल्ड रेडियो डे पर रेडियो रायपुर की शुरुआत, फेक न्यूज़ एक बिमारी की तरह 
नई दिल्ली। रेडियो एक ऐसा माध्यम है जो अपनी बात को एक समय में करोड़ो लोगों तक पहुंचा देता है। कोरोना काल में रेडियो ने न सिर्फ गानों से मनोरंजन किया, बल्कि सामाजिक कार्य करने में भी वो पीछे नहीं हटे, चाहे वो मास्क लगाना हो, सेनिटाइज़ करना हो या गांव जाते हुए मज़दूरो को समझाना हो या फिर लोगों को खाना बाँटना हो, या सर्दी में गरीबों के लिए कपड़े जमा करके देना हो, रेडियो ने अपनी भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, मैं तारीफ करना चाहूंगा रेडियो जॉकी की जो अपनी बात को इस तरह प्रभावी ढंग से व्यक्त करते है की हर कोई सुनना चाहता है।

आज मैं यह सब बातें इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज वर्ल्ड रेडियो डे है और 9वें इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ जर्नलिस्म के दूसरे दिन हम रेडियो डे मना रहे है यह कहना था एएएफटी यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. संदीप मारवाह का, जिन्होंने आज रायपुर रेडियो की शुरुआत की। इस वेबिनार में सीनियर जर्नलिस्ट डॉ. सुनील पाराशर, जर्नलिस्ट सुनील डैंग, फिल्म क्रिटिक मीना अय्यर, एडिटर ओमकारेश्वर पांडे, जर्नलिस्ट राजेश बादल, जर्नलिस्ट अरविन्द के. सिंह और रेडियो ब्रॉडकास्टर अनूप बॉस ने फेक न्यूज़ पर परिचर्चा की।

इस परिचर्चा में डॉ. सुनील पाराशर ने कहा कि आज हर इंसान पत्रकार होता जा रहा है क्योंकि उसके हाथ में मोबाइल नाम का प्राणी है जो हर चीज़ को कैप्चर कर लेता है, मोबाइल को प्राणी इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उसमें चलने की क्षमता नहीं है बल्कि लोगो को चलाने की क्षमता बहुत है।

नील डैंग ने कहा की फेक न्यूज़ एक ऐसी बिमारी है या यूँ कहे की फैलता हुआ कैंसर है जिसमें उस पत्रकार की, पत्रकारिता की और उस प्रकाशन की मृत्यु होना अनिवार्य है।

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments