20 जनवरी की वार्ता भी बेनतीजा: गणतंत्र दिवस पर होगी किसान-ट्रैक्टर परेड

आर.एस. यादव
20 जनवरी को आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच दसवीं वार्ता भी बेनतीजा रही। वार्ता के प्रारंभ में सरकार अपना पुराना राग दोहराती रही कि कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा, जबकि किसानों ने अपना दृढ़ संकल्प दोहराया कि तीनों काले कानूनों को जब तक सरकार वापस नहीं लेती और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी जामा नहीं पहनाती और कानूनी गारंटी नहीं देती, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
दरअसल, यह वार्ता 18 जनवरी को होने वाली थी। परंतु सरकार ने ऐन मौके पर उसे 20 जनवरी के लिए टाल दिया था। संभवतः इसका कारण यह था कि 19 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट उस याचिका को सुनने वाला था जिसमें सरकार ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट 26 जनवरी को किसानों द्वारा प्रस्तावित किसान ट्रैक्टर परेड पर रोक लगा देगा, जिससे सरकार पर आंदोलन का दबाव कुछ कम हो जाएगा और उससे आंदोलनकारी किसानों का हौसला कुछ कमजोर पड़ेगा जिसका असर वार्ता के दौरान उनके रूख पर पड़ सकता है।
किसानों ने स्पष्ट कर दिया था कि सुपीम कोर्ट कुछ भी आदेश करें, वह ट्रैक्टर परेड जरूर निकालेंगे, हर कोई जानता है कि ट्रैक्टर परेड के लिए निकले लाखों किसानों को रोकने के लिए यदि सरकार ने लाठियां-गोलियों का सहारा लिया तो उससे जलियांबाग जैसी घटना हो सकती है। संभवतः मोदी सरकार की यह रणनीति थी कि सुप्रीम कोर्ट से ट्रैक्टर परेड पर रोक के आदेश के बाद यदि से ट्रैक्टर परेड निकलती है तो वह अदालत के आदेश के बल पर उसे जैसे चाहे कुचल सकती है और यदि कोई नरसंहार भी हो जाता है तो उसकी जिम्मेदारी अदालत के आदेश पर होगी और प्रधानमंत्री ‘‘डायर के अवतार’’ होने के संभावित आरोप से बच जाएंगे। अतः अदालत के आदेश का इतंजार करने के लिए 18 जनवरी की वार्ता को 19 जनवरी, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में ट्रैक्टर परेड पर रोक की सरकार की अर्जी पर विचार होना था, उसके बाद की तारीख 20 जनवरी के लिए स्थगित कर दिया गया। 18 जनवरी की वार्ता को टालने के इसके अलावा अन्य कोई कारण नजर नहीं आता।
20 जनवरी की वार्ता भी सुप्रीम कोर्ट के ट्रैक्टर परेड को रोकने से इंकार के फैसले के बाद शुरू की गयी।
वार्ता के शुरू में सरकार ने फिर जोर दिया कि तीन कानूनों के वापस नहीं लिया जाएगा और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी दी जाएगी। पर किसान अपनी मांग से टस से मस नहीं हुए। सरकार 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड से भयभीत है। इस परेड के लिए देश भर में और खासतौर पर दिल्ली के निकटवर्ती राज्यों-पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और राजस्थान के गांव-गांव में किसान लामबंद हो रहे हैं। हजारों ट्रैक्टर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं। सरकार चाहती है कि किसी भी चाल से टैªक्टर परेड को रोका जाए। संभवतः इसी रणनीति के तहत उस समय जब वार्ता ,खत्म होने के करीब थी, सरकार ने साल-डेढ़ साल के लिए तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाए रखने की पेशकश की और साथ कानूनों पर विचार करने के लिए एक समिति गठित करने का प्रस्ताव किया जिसमें सरकार और किसान संगठनों-दोनों के बराबर संख्या में प्रतिनिधि होंगे। सरकार ने कहा कि वह शपथपत्र देने को तैयार है कि जब तक समिति की रिपोर्ट नीं आ जाती, कानून निलम्बित रहेंगे। सरकार के इस प्रस्ताव पर किसान तुरंत सहमत नहीं हुए। उन्होंने विचार के लिए एक दिन का समय लिया है। अगली बैठक 22 जनवरी को होगी।
परंतु किसान संगठनों के नेताओं ने बैठक के बाद कहा कि कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की अपनी मांग पर अडिग हैं। फिर भी कानूनों को निलम्बित करने के सरकार के प्रस्ताव पर सभी संगठन मिल-बैठकर मंथन करेंगे और 22 जनवरी को सरकार को अपने फैसले से अवगत करा देंगे। किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने पर चर्चा को टाल रही है।
आंदोलन को कमजोर करने के लिए दमन, डराने-धमकाने की कोशिश
किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए सरकार साम-दाम-दंड-भेद-हर तिकड़म का रास्ता अपना रही है। आंदोलन का समर्थन करने वाले लोगों के खिलाफ सरकार डराने-धमकाने की कार्रवाई कर रही है। पंजाब के अनेक आढ़तियों पर मारे गए छापे डराने-धमकाने की इसी साजिश का हिस्सा हैं। किसान नेताओं ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ;एन.आई.ए.द्ध ने किसान आंदोलन से जुड़े लोगों के खिलाफ मामले दायर कर परेशान करना शुरू कर दिया है। एन.आई.ए. ने किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा और पंजाबी अभिनेता दीप सि(ू को सिख फाॅर जस्टिस के संबंधित मामले में नेश होने के लिए समन भेजे। एन.आई.ए. ने न्यायिक एंड संहिता की धारा 160 के तहत गवाह के रूप में पेश होने के लिए 40 लोगों को समन भेजे हैं। इनमें किसान नेताओं के अलावा धार्मिक और सामाजिक संगठनों के प्रमुखों के साथ-साथ कलाकार, ट्रांसपोर्टर, आढ़तिए, पेट्रोल पम्प संचालक, जत्थेदार एवं अन्य कई शामिल है। किसानों ने साफ कह दिया है कि वे इस तरह डरने वाले नहीं है।
ट्रैक्टर परेड पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंतजार
प्रस्तावित ट्रैक्टर या ट्राॅली रैली अथवा गणतंत्र दिवस समारोहों एवं सभाओं को बाधित करने की कोशिश करने के लिए अन्य प्रकार के प्रदर्शनों पर रोक लगाने की केंद्र की याचिका पर 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में दखल करने से इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कहा, ‘‘हम आपको यह नहीं बताने जा रहे हैं कि आपको क्या करना चाहिए।’’
केंद्र ने दिल्ली पुलिस के जरिए दायर याचिका में कहा था कि गणतंत्र दिवस समारोहों को बाधित करने वाली कोई भी प्रस्तावित रैली या प्रदर्शन ‘‘देश के लिए शर्मिन्दगी का कारण’’ बनेगा।
जाहिर है किसानों द्वारा प्रस्तावित शांतिपूर्ण रैली को ‘‘गणतंत्र दिवस समारोह को बाधित करने वाली’’ का नाम देना किसानों के लगभग दो महीने से चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने की सरकार की साजिश का ही एक हिस्सा हे।
तीन काले कृषि कानूनों का विरोध कर रहे संगठन बार-बार कह चुके हैं कि गणतंत्र दिवस को मनाना और इस अवसर पर शांतिपूर्वक ट्रैक्टर रैली निकालना उनका संवैधानिक अधिकार है। वे यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि किसान राजपथ और उच्च सुरक्षा वाले स्थलों में रैली नहीं निकालने जा रहे हैंऋ केवल दिल्ली में आउटर रिंग रोड पर रैली निकालेंगे। आउटर रिंग रोड और आधिकारिक एवं परम्परागत रैली के रास्ते से आउटर रिंग बहुत दूरी पर है और आउटर रिंग पर ट्रैक्टर रैली से आधिकारिक गणतंत्र में किसी भी तरह की कोई बाधा नहीं पहुंचती।
अटाॅर्नी जनरल का यह कथन कि प्रस्तावित रैली ‘‘देश के लिए शर्मिन्दगी’’ का कारण बनेगी सर्वथा अवांछित है।
सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में संवैधानिक गरिमा का मुद्दा भी दांव पर लगा है। इसपर प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘कहां है संवैधानिकता का मुद्दा इस मामले में’’।
अटाॅर्नी जनरल ने कहा कि लोग शहर के बाहर बैठे हैंऋ खतरा है कि 26 जनवरी को वे गैर-कानूनी तरीके से दिल्ली में दाखिल होंगे। उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि सरकार उम्मीद कर रही है कि अदालत ‘‘उसके हाथ मजबूत करेगी’’।
परंतु अदालत ने कहा कि ‘आप क्यों चाहते हैं कि हम आपको बताएं कि आप अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कैसे करें? क्या यह भी सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि पुलिस की क्या शक्तियां है और वह उनका इस्तेमाल कैसे करेगी।’’
अटाॅर्नी जनरल ने जब कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को अपने हाथ में ले चुका है अतः केंद्र सरकार की मांग है कि आप किसानों की रैली पर रोक लगाएं तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ‘‘हमने मामले को अपने हाथ में नहीं लिया है सिवाय एक मुद्दे के। और हमारे हस्तक्षेप को बुरी तरह गलत समझा गया है’’। इसके बाद अदालत ने आगे की सुनवाई 20 जनवरी के लिए मुल्तवी कर दी।
जिस मुद्दे का अदालत ने हवाला दिया वह 12 जनवरी का अदालत के उस आदेश से संबंधित था जिसमें उसने तीन कृषि कानूनों के अमल पर अस्थायी स्थगन आदेश के अलावा किसान के मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया था। अदालत के उस आदेश पर किसानों ने तो असहमति और निराशा जतायी ही, कानून एवं संविधान के जानकर लोगों ने उसे सरकार के पक्ष में एक अनुचित हस्तक्षेप बताया था।
20 जनवरी के सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की मांग को खारिज करते हुए 26 जनवरी के दिल्ली में प्रस्तावित किसान ट्रैक्टर परेड पर रोक लगाने से इंकार कर दिया और कहा कि अदालत के लिए इस मामले में हस्तक्षेप करना अनुचित होगा।

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