सुकून

अक्सर बारिशों में,
याद आती है ,
कागज की वो,
नाव पुरानी ,,,,,,,।
जाने क्यूं?,
जी चाहता है अक्सर,
लौट कर चलूं,
गांव की वो,
पगडंडियां मस्तानी,,,,,,,,।
थक जाती हूं मैं,
हर कदम पर ,
ढेरों सवालों से,
सोना चाहती हूं,
सुकून से मां तेरे,
आंचल में वो,
लोरी बड़ी मस्तानी,,,,,।
मधु,, वो अधूरी कहानी,
रह रह कर ,
मन दहलीज पर ,
दस्तक देती सुहानी,,,,,,,,,,।
मधु वैष्णव “मान्या” जोधपुर राजस्थान

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