शब्द–निःशब्द या स्तब्ध
राजकुमार अरोड़ा’गाइड’
शब्द ही तो हैं जब कोई इन्हें बड़े प्यार से कहता है तो सुनने वाला निःशब्द हो जाता है, वो भावातिरेक में इतना भावविभोर हो जाता है,उसे प्रशंसा व आभार व्यक्त करने के लिये शब्द ही नहीं मिलते ओर कभी यही शब्द जब कारण, अकारण दर्प व घमंड के साथ नीचा दिखाने के लिये कहे जाते हैं तो सामने वाला स्तब्ध रह जाता है, हक्का बक्का रह जाता है। बरसों से चले आ रहे आत्मीयता व अपनेपन के रिश्ते खाक में मिल जाते हैं पर जब एहसास होता है कि क्या खो दिया तो समय निकल चुका होता है!
बोलने से पहले शब्द मनुष्य के वश में होते हैं,बोलने के बाद मनुष्य शब्दों के वश में हो जाता है,अतः सोच समझ कर मीठा ही बोलना चाहिए।सच ही तो कहा गया है कि जुबान में कोई हड्डी नहीं होती,पर यह गलत और अप्रिय बोलने पर आपकी हड्डियां तुड़वा सकती है,एक बात और शब्दों के भी तो अपने ज़ायके होते हैं, परोसने से पहले चख लेने चाहिए।चखने में कमी रह जाने से जुबान कड़वी होने के कारण ही भाई भाई, पति पत्नी,सास बहु, देवरानी जेठानी, जेठानी,ननद भौजाई,माता पिता व सन्तान में,दोस्त दोस्त में मन मुटाव हो जाता है। रिश्तों की अहमियत भुला दी जाती है।पूरे ब्रह्मांड में जुबान ही ऐसी है, जहाँ एक ही समय में अमृत व विष दोनों विद्यमान रहते हैं।
शब्दों के दाँत नहीं होते,पर ये काट लेते हैं दीवारें खड़ी किये बगैर हमको बाँट देते है।मीठे बोल की दो बूंदे,रिश्तों को पोलियो से बचाती हैं।शब्दों में बड़ी जान होती है,यही आरती,अरदास,अजान,होती है, ये समुन्दर के वो मोती हैं, जिनसे आदमी की पहचान होती है।शब्द ही सब कुछ होते हैं,दिल जीत भी लेते हैं, दिल चीर भी देते हैं।मरहम जैसे होते हैं कुछ लोग,जिनके शब्द बोलते ही दर्द गायब हो जाता है।
शब्द प्यार की बहार है,खुशियों का संसार हैं। शब्द ही तलवार की धार है,सीने को चीरती कटार है।कड़वी जुबान क्रोध की जननी है, क्रोध माचिस की तीली की तरह है, पहले खुद जलती है, फिर दूसरों को जलाती है!यह सही है कि व्यक्ति की वाणी ही उसका पहला परिचय होता है।यदि हम मधुर व हितभरी वाणी बोलेंगें तो दूसरों को सदा आनंद,प्रेम और शांति कीअनुभूति होती है।यदि कड़वी वाणी बोलेंगे तो दूसरों को शूल की तरह भेदती है।अगर हम किसी को गुड़ नहीं दे सकते तो गुड़ सी बात तो कर ही सकते हैं।यह वाणी का ही प्रभाव है कि मीठा और और मधुर बोलने वाला मिर्च का व्यापारी शाम तक सारी मिर्च बेच जाता है और कर्कश और कटु बोलने वाला गुड़ का व्यापारी,गुड़ लिये बैठा रह जाता है।इसलिए कहते हैं कि कठोर वाणी पत्थर से भी ज्यादा तेज़ गति से टकराती है।
मेरा अपना मानना है कि मानव के जीवन में जितने भी गिले शिकवे हैं,वो आधे से ज्यादा खत्म हो जाएंगे यदि वो एक दूसरे के बारे में बोलने की जगह एक दूसरे के साथ सिर्फ क्या और कैसे बोलना है,सीख ले!समय व शब्द दोनों का उपयोग लापरवाही से नहीं करना चाहिये क्योंकि दोनों न तो दोबारा आते हैं,न ही मौका देते हैं।
कवि, लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
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