लौट आना किसी दिन

विचार—विमर्श

ओ प्रिय,
घर तो होता हीं है
लौट आने के लिए
बस लौट आना किसी दिन
जब चिरैया लौटेंगी,
लौट आना किसी दिन,
जब भी घर ये बुलाएगा
लौट आना तुम प्रिय
कोई याद में बैठी हुई है
लौट आना,याद जब
प्रिय का कभी भी सताएगा

लौट आना
कि इन अंखियों का गगन
सूना सा है
लौट आना,
मन के आंगन का पवन
धीमा सा है
लौट आना,
कि यूं अपने हैं नहीं कभी रूठते
लौट आना
प्रेम के रिश्ते कभी न टूटते,

घर की बाती और संझा
अब बुलाती है,
आ भी जाओ
नैन रतिया भर जगाती है
ओ मेरे पावन प्रिय तुम
ओ हृदय के देवता,
लौट आओ
अखियां,होकर तर बुलाती है

तुम जो ना लौटोगे,
कैसे लौटेगा ये वसंत,
कैसे फूलेगी,फुलेरी
महकेगा कैसे चमन
आ भी जाओ
प्रेम की नैया पड़ी मझधार में,
तुम हीं तो नैया खेवैया
कैसे जाऊं पार मैं !!

आनंद यादव
पुर्णिया, बिहार

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