लो आया बसंत….

विचार—विमर्श

धरती ने। नव श्रृंगार किया
प्रकृति ने नव नवाचार किया
रजनीगंधा हरसिंगार से महका
उपवन का मन प्रफुल्लित करे जो
भ्रमरो ने ऋतुराज सत्कार किया
लो आया बसंत…. जीवन को
जीवन रस से सरोबार किया

लता कुसुम फूल सब हर्साए
नवयौवना सी बलखाए इतराए
रूठी रूठी अपनी प्रियसी को
मधुमास ने मनाना स्वीकार किया
लो आया बसंत…. जीवन को
जीवन रस से सरोबार किया

मीठी धूप धरा पर पड़ती
कभी ठहरती कभी अकड़ती
लुक्का छिपी खेल बादलों संग
पुरवा संग हास परिहास किया
लो आया बसंत…. जीवन को
जीवन रस से सरोबार किया

नदी धरा पर्वत है हरसे बिहंसे
चहूं ओर सरस प्रेम रस बरसे
मधुमास ने जीवन धन देकर
धरणी पर सहज उपकार किया
लो आ गया बसंत… जीवन को
जीवन रस से सरोबार किया

रतनगर्भा करें नव वस्त्र धारण
मनुज है पूजे कुसुमाकर के चरण
विरही के व्याकुल मन को
समागम का नवसंचार मिला
लो आ गया बसंत…. जीवन को
जीवन रस से सरोकार किया

रेखा शाह आरबी
जिला बलिया
, यूपी

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