राजनीतिक मंथन से उभरेगा एक विकल्प: डी. राजा

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा का मानना है कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर एक जबर्दस्त मंथन चल रहा है। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में भाजपा की हार के बाद संघात्मकता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे ने वामपंथ के सामने गंभीर मुद्दे खड़े कर दिए हैं।

वामपंथ को बंगाल की स्थिति का और अपनी राजनीतिक लाईन, रणनीति एवं कार्यनीति के सम्बंध में गंभीरता से मूल्यांकन करना होगा। एक राष्ट्रीय दैनिक पत्र से बात करते हुए डी. राजा ने इन महत्वपूर्ण चुनावों के नतीजों के निहितार्थों और ये नतीजे आगामी समय में राजनीति एवं गठबंधनों पर किस तरह के असर डाल सकते हैं, इन सवालों का विश्लेषण किया।

हाल के विधानसभा चुनावों के बारे में उन्होंने कहाः ‘‘भाजपा-आरएसएस ने नरेन्द्र मोदी की अपराजेयता का जो मिथक बनाया था, वह चकनाचूर हो गया है। देश के लोग भाजपा और उसकी नीतियों को अस्वीकार कर रहे हैं। चुनाव नतीजों से पता चलता है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार की शुरूआत हो गयी है। यह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के पतन और पराजय का प्रारम्भ है।

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांगे्रस की जबर्दस्त जीत और भाजपा के कमजोर प्रदर्शन के संबंध में भाकपा महासचिव ने कहा कि मोदी एवं अमित शाह के आक्रामक अभियान के बावजूद भाजपा को पराजय मिली। वे वहां बहुत आगे नहीं बढ़ पाए। लोगों ने भाजपा को स्वीकार नहीं किया। भाजपा केवल एक विपक्ष के तौर पर ही आ सकी। यहां समूचे वामपंथ के सामने गंभीर चिन्ता की बात है। कांगे्रस और वामपंथ में आत्म निरीक्षण की बढ़ती आवश्यकता भी है।

डी. राजा ने कहा कि भाजपा का दावा था कि वह विधानसभा में 200 से अधिक स्थान हासिल करेगी, पर वह केवल विपक्ष के तौर पर ही उभर कर आयी। यह स्पष्ट है कि कोई भी पार्टी यह मानकर नहीं चल सकती कि जनता उस तरह वोट करेगी जैसा वह चाहती है। भाजपा यह मान बैठी थी कि जनता उसके साथ है और इलाके में जनता उसके पक्ष में है। यह उसकी समझ की एक बड़ी भूल है।

इस प्रश्न पर कि यदि गैर-भाजपा गठबंधन ने तृणमूल कांगे्रस को समर्थन किया होता तो एक अलग तरह का ध्रुवीकरण होता, डी. राजा ने कहा कि ‘‘यह एक गंभीर राजनीतिक मुद्दा है। इस मुद्दे पर वामपंथ को आत्म-निरीक्षण करना होगा। कांगे्रस को भी आत्म-निरीक्षण करना होगा। बंगाल में ऐसी परिस्थिति बने, देखते हैं कि तृणमूल कांगे्रस इस बारे में क्या जिम्मेदारी लेती है। इस पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
लोकसभा के अगले चुनाव तक क्या हम तरह की स्थिति उभरने की संभावना के संबंध में उनका उत्तर था कि इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। अभी यह एक प्रश्न है। इस चुनावों के बाद देश में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरों पर एक बड़ा मंथन होगा। यह मंथन किस प्रकार होता है और चीजें किस तरह उभर कर सामने आती हैं, इस बारे में इंतजार करना होगा।

वामपंथ को पश्चिम बंगाल में कोई सीट नहीं मिली, इस संबंध में भाकपा महासचिव ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, वामपंथ को पश्चिम बंगाल की स्थिति, अपनी राजनीतिक लाईन, रणनीति और कार्यनीति पर गंभीर समीक्षा करनी होगी।

जहां तक यह बात है कि चुनाव नतीजों के बाद भाजपा और अधिक आक्रामक हो जाएगी, डी. राजा ने कहा ‘‘भाजपा क्या आक्रामकता रख पाएगी।’’ कोरोना के संबंध में भाजपा पर हमला हो रहा है। मोदी सरकार की विफलता और निकम्मेपन का पर्दाफाश हो गया है। जनवरी 2020 में देश में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था।

उस समय सरकार अमेरिका के राष्ट्रपति के स्वागत में पलक पांवडे बिछा रही थी। महामारी के बारे में उसने गंभीरता से सोचा ही नहीं और न कोई योजना तैयार की। सरकार की नाकामी और निकम्मेपन का पूरी तरह पर्दाफाश हो चुका है। अब तो लोगों ने भाजपा को चुनाव में हरा दिया है, आक्रामक कैसे हो सकती है, आरएसएस और संघ के संगठन देश में किसी तरह का साम्प्रदायिक तनाव या झगडा जरूर पैदा कर सकते हैं। पर मैं नहीं समझता कि भाजपा आक्रामक हो सकती है। वह केन्द्र की सत्ता पर है, पर इसका मतलब यह नहीं कि लोग उसे जो चाहे वह करने देगी।

केरल की जनता ने वामपंथ को चुनाऋ क्या वहां के लोग भाजपा और केन्द्र में उसकी सरकार से डरे हुए थे, इस प्रश्न पर भाकपा महासचिव ने कहा, ‘‘वहां के लोगों ने एलडीएफ को उसके कामकाज और लगातार जनता की सेवा के लिए वोट दिया। साथ ही एलडीएफ भाजपा के खिलाफ भी लड़ रहा था। भाजपा का कोई डर नहीं था, परन्तु लोग भाजपा को पसंद नहीं करते और नहीं चाहते थे कि उस केरल में पांव जमाने का मौका मिले। यह बात ध्यान में रखने की है।

भाजपा ने वहां तमाम किस्म की चालें चली। वहां भी मोदी और अमित शाह ने चुनाव अभियान चलाया। उन्होंने मेट्रोमैन को भी आगे किया। पर लोग झांसे में नहीं आए। इन चुनावों ने पर्दाफाश किया है कि किस तरह भाजपा शासन एक कुशासन बन चुका है और किस तरह उसने राज्य शासन की संघात्मकता को कमजोर किया है। केन्द्र की भाजपा सरकार तमाम शक्तियों को अपने में संकेन्द्रित कर रही है, राज्यों के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रही है, राज्य सरकारों से उनके अधिकार छीन रही है और जो कुछ उन्हें मिलना चाहिए राज्यों को उससे वंचित कर रही है।

पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य मजबूत होंगे तो उससे संघात्मकता मजबूत होगी, इस पर भाकपा नेता ने कहा, ‘‘आगामी दिनों में संघात्मकता का प्रश्न एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा। भारत एक विविधतापूर्ण देश है। राज्यों ने अपनी सरकारों को चुना है। फिर हमारे पास एक संविधान है।

भाजपा न तो संविधान का सम्मान करती है और न संवैधानिक मूल्यों एवं संवैधानिक नैतिकता का। अतः संघात्मकता का मुद्दा महत्वपूर्ण हो जाता है। केरल और तमिलनाडु के हाल के चुनाव से पता चलता है कि लोग केन्द्र सरकार के दबाव में नहीं आएंगे और केन्द्र सरकार यह मानकर नहीं चल सकती कि राज्य उसके पुछल्ले हैं। केन्द्र-राज्य सम्बंधों की समीक्षा करनी होगी, उन्हें मजबूत करना होगा। केन्द्र राज्य सरकारों पर हावी नहीं हो सकता, उनके साथ मनमानी नहीं कर सकता। अतः राज्यपालों के दफ्तरों को केन्द्र की मनमानी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष चुनाव और वहां किसी ध्रुवीकरण के उभरने की संभावना के संबंध में भाकपा महासचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार एक नाकाम सरकार के तौर पर साबित हो चुकी हैं वहां कानून एवं व्यवस्था बदहाल है। उन्होंने कहा, ‘‘वहां पर महिलाओं के खिलाफ, दलितों के खिलाफ और खासतौर पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं।

धर्मान्तरण और लव-जिहाद के नाम पर आदित्यनाथ सरकार ने लोगों पर हमला शुरू कर रखा है। पत्रकारों एवं एक्टिविस्टों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी हमला हो रहा है।

उत्तर प्रदेश अगले साल भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनने वाला है। पंजाब में भी अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं। राज्य की स्थिति का विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में वापस नहीं आ सकती। भाजपा को लोगों का समर्थन नहीं मिल सकता।’’

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