मैं भारत हूं

विचार—विमर्श

अनेकों नाम मेरे,
विविध पहचान मेरी,
केसरिया, सफ़ेद और हरित
रंग से रंगा मैं,
शांति का जयघोष और उन्माद
की स्वर लहरियां हूं मैं,
मैं भारत हूं।

सृष्टि भी मैं ,दृष्टि भी मैं,
पूरब की प्राची, काशी का अविनाशी हूं मैं,
मैं जलतरंग गंगा की अविरल,
अचल – अमर यमुना का ताजमहल हूं मैं,
प्रेम का पनघट और परंपराओं का निर्वाह हूं मैं,
मैं भारत हूं।

रघुकुल का जनक
वेद और उपनिषद का प्रचारक हूं मैं ,
जीवन दर्शन का प्रणेता हूं मैं,
मोक्ष का संवाहक, गीता का रचियता हूं मैं,
संस्कारों का हिमालय और कला शिल्प का संयोजक हूं मैं,
मैं भारत हूं।

डॉ वर्षा महेश “गरिमा”
मुंबई

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