मैं कहाँ खो गया हूँ पता मेरा बतला जा

विचार—विमर्श

भरी बरसात में बनकर बहार तू आजा।
मैं कहाँ खो गया हूँ पता मेरा बतला जा।।
तुझे देखे हुए सदियाँ ये आंखे प्यासी हैं।
प्यासी आँखों को तू दीदार अपना दिखला जा।।
भरी बरसात में बनकर बहार तू आजा…
याद में तेरी मेरी सांसे फना होती हैं,
बनाके तेरी ये तश्वीर बहुत रोती हैं,
दिल में हर वक़्त जो मीठा सा दर्द रहता,
बनके तू हकीम दवा इसकी बतला जा।।
भरी बरसात में बनकर बहार तू आजा।
मैं कहाँ खो गया हूँ पता मेरा बतला जा…
क्या यही प्यार है जो साथ मेरे होता है,
प्यार तुझे करके मेरा दिल ये बहुत रोता है,
प्यार न हो किसी को ऐसी दुआ करता हूँ,
बनकर तू गवाह जहाँ को तू बतला जा।।
भरी बरसात में बनकर बहार तू आजा।
मैं कहाँ खो गया हूँ पता मेरा बतला जा…
तेरे बिन बारिशें भी लू सी मुझे लगती हैं,
मैं अगर सो भी जाऊं आँखें मेरी जगती हैं,
क्या था अब क्या मैं हो गया हूँ इश्क़ में तेरे,
अब न तड़पा तू हाल पे मेरे तरस खा जा।।
भरी बरसात में बनकर बहार तू आजा।
मैं कहाँ खो गया हूँ पता मेरा बतला जा..

संदीप कुमार

मधुबनी

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