मेरी किताबें

विचार—विमर्श

किताबें ही है मेरी ज़िंदगी का
सबसे अनमोल हिस्सा
गर निकाल दो इसे मेरी ज़िंदगी से
तो शून्य हो जाएगी मेरी दुनिया
और यह जो मैं हूँ
शायद वो मैं न रह पाउँ ।

यह मेरी सबसे अच्छी बंधु है
मेरे गम और खुशियों का
राज़दार है मेरी किताबें
मेरे घर के एक छोटे से कमरे में
बसा रखी है मैंने एक रंगीन दुनिया
जिसमे रहती हूँ बस मैं और मेरी किताबें।

मेरे आस पास है बस रखा
किताबों का एक प्यारा संसार
यहां न कोई धोखा है न कोई रंजिश
ये न करती कोई शिकवा-गिला
न कभी मांगती यह कुछ भी, बस
देती ही है प्यार ही प्यार मुझे।

जब भी मुझको कोई उलझन होती
तत्क्षण बन जाती यह मेरी सखा
बनती कभी यह मेरी हमदम तो
बन जाती कभी मेरी परछाई
हर घाव पर बनती यह मरहम
पूरे करती अपनी हर ज़िम्मेदारी।

हाँ, मैं करती हूँ मुहब्बत किताबों से
है मुझको बस इसका ही नशा
क्योंकि यकीं है मुझे इस बात का
निभाएगी हरपल ये साथ मेरा
है जहां की वफ़ाई इसके अंदर
न होगी कभी ये बेवफ़ा।

है ज्ञान का ये खज़ाना बड़ा
इसे चाहना है ज़ुनून मेरा
जो प्यार करूँगी मैं इससे
है तय छू ही लूँगी आसमां
मेरी किताबों से ही मैं हूँ
सबसे अनमोल हैं मेरी किताबें।

मोनिका राज
रिसर्चर , नवनालंदा महाविहार

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