महाराजा सुहेलदेव पर गरमाने लगी है पूर्वांचल की राजनीति

उदयभान राजभर


बसंत पंचमी के दिन महाराजा सुहलदेव की जयंती बनाई जाती है।

पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर महाराजा सुहलदेव की जयंती मनाई गई।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बहराइच में वीडियो कांफ्रेंस के जरिए से महाराजा सुहेलदेव स्मारक तथा चित्तौरा झील की विकास योजना का शिलान्यास तथा महाराजा सुहेलदेव स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय का लोकार्पण किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कार्यक्रम में आये लोगों को संबोधित किया। इसको लेकर पूर्वांचल की राजनीतिक सरगरमी तेज हो गई है।

राजभर समाज का पूर्वांचल के लगभग 60 विधानसभा सीटों पर अपना अस्सा—खासा असर रखता है। कहा जा रहा है कि राजभर समाज के इसी वोट बैंक पर राजनीतिक पार्टियों की नजर है।

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वैसे तो ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) की राजभर समाज पर अपनी अच्छी पकड़ रखते है और आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए भागीदारी संकल्प मोर्चे में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी शामिल होना पूर्वांचल की राजनीति को और तेज कर दिया है।

बता दें कि असदुदृीन ओवैसी की पार्टी का बिहार विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन रहा है।


पूर्वांचल में राजभर वोट का दबदबा
पूर्वांचल में जिलों में राजभर समाज के वोट हार—जीत पर अपना काफी असर डालता है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समाज की आबादी 18 प्रतिशत है। इस पूरे प्रदेश राजभर की कुल भागीदा ढाई प्रतिशत की है।

आजमगढ़, गाजीपुर, अकबरपुर, वाराणसी, मऊ, गोरखपुर, देवरिया बलिया सहित बहराइच-श्रावस्ती तक राजभर वोट राजनीतिक पार्टियों को अपनी तरफ खींचते हैं।

15 जिलों की लगभग 60 सीटों पर राजभर समाज अच्छा अपना दबदबा रखता है।

वहीं राजभर उत्तर प्रदेश की उन 17 अति पिछड़ी जातियों में से हैं, जो लंबे समय से अनुसूचित जाति का दर्जा मांग करते आ रहे हैं।


राजभर समाज की नाराजगी
राजभर समाज के एक बड़े हिस्से की मांग रही है कि महाराजा सुहलदेव के आगे राजभर लिखा जाए।

इससे पहले महाराजा के नाम से डाक टिकट जारी किया तथा गाजीपुर से महाराजा सुहलदेव एक्सप्रेस रेलगाडी भी चलाई गई।

लेकिन महाराजा सुहलदेव के नाम के आगे राजभर नहीं जोड़े जाने राजभर समाज रोष और नाराजगी है।

इसको देखते हुए तो यही लगता है कि भाजपा का यह दाव राजभर वोट बैंक को कुछ खास असर नहीं डालेगा।


सुहेलदेव राजभर राजा थे
उत्तर प्रदेश के बहराइच में महाराजा सुहेलदेव का इतिहास जानने के​ लिए गाजी मियां जिक्र करना भी जरूरी है।

नेपाल सीमा से लगा यूपी का बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी और महाराजा सुहेलदेव दोनों बीच युद्ध हुआ था।

जिसमें सैयद सालार मसूद गाजी मारा गया।

1034 ईसवी में मौत के बाद मसूद गाजी की कब्र बहराइच जिले में बनाई गई। फिर 1250 में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने इस कब्र पर मजार बनवा दिया था।

बताते हैं 13वीं सदी में मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता भी यहां आया।

देश के कोने—कोने से लोगों का यहां आकर मत्था टेकने से मजार की मान्यता दरगाह के रूप में हो गई। यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आते हैं।

इतिहासकारों की मानें तो महाराजा सुहलदेव भर, भर राजपूत थे, जिसको लेकर राजभर समाज हमेशा से दावा करता रहा है।

कहा जाता है कि पासी और राजभर समुदाय की सुहेलदेव की विरासत से खुद को जोड़ने का जिक्र करते हैं।

कई इतिहासकार मानते हैं कि सुहेलदेव की जाति को लेकर भर, भर राजपूत, नागवंशी क्षत्रिय और विसेन क्षत्रिय के रूप में जाना जाता है।

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