बैंकों के निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मियों का प्रभावी प्रदर्शन
भोपाल: हाल ही में पेश केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री ने दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की है। इसके विरोध में देश के दस लाख बैंक कर्मचारी- अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन- यूनाइटेड फोरम और बैंक यूनियंस, ने इसके विरोध में 4 फरवरी को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया था। इसी तारतम्य में फोरम की भोपाल इकाई के तत्वावधान में विभिन्न बैंकों के सैकड़ों बैंक कर्मचारी एवं अधिकारी आज शाम 6ः00 बजे अरेरा हिल्स भोपाल स्थित यूको बैंक के जोनल आॅफिस के सामने एकत्रित हुए।
उन्होंने बैंकों के निजीकरण के विरोध में जोरदार नारेबाजी कर प्रभावी प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के पश्चात सभा हुई जिसे बैंक कर्मचारी- अधिकारी संगठनों के पदाधिकारियों साथी वी के शर्मा, नजीर कुरेशी, दीपक शुक्ला, वी.एस.नेगी, दीपक रत्न शर्मा, जे.पी. झंवर, अमिताभ चटर्जी, संजीव चैबे, दर्शन भाई, आर.के. हीरा, अंबर नायक, गुणाशेखरन, संजय सिंह आदि ने संबोधित किया।
वक्ताओं ने बताया कि बैंकों का निजीकरण हमारे देश, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारी आम जनता के हित में नहीं है। यदि बैंकों का निजीकरण हो जाता है, तो आम आदमी, किसानों, छोटे व्यापारियों आदि को ऋण नहीं मिल पाएगा। निजी बैंकों का उद्देश्य मात्र लाभ कमाना होगा अतः वे बड़े-बड़े उद्योगपतियों को ही बैंकिंग सेवाएं प्रदान करेंगी।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, बड़े पैमाने पर आम लोगों की मदद कर रहे हैं। यदि बैंकों का निजीकरण हुआ तो यह सब बंद हो जावेगा। देश की बैंकों में आम आदमी का पैसा जमा है जो कि उसने अपनी मेहनत से कमाया है। आज बैंकों में 143 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा जनता की जमा राशियां है। यदि बैंकों का निजीकरण होता है तो जनता की कीमती जमा राशियों के ऊपर खतरा उत्पन्न हो जाएगा क्योंकि पूर्व में कई निजी बैंक बंद हो चुके हैं।
देश की स्वतंत्रता के पश्चात सन 1948 से 1968 तक यानी 20 वर्ष में करीब 736 निजी क्षेत्र के बैंक बंद हो गए थे ।बैंक राष्ट्रीयकरण के पश्चात सन 1969 से 2008 के दौरान 40 वर्ष में करीब 40 निजी क्षेत्र के बैंक बंद हो गए। देश के विकास में निजी क्षेत्र के बैंकों का कोई भी उल्लेखनीय योगदान नहीं रहा है जबकि राष्ट्रीयकरण के पश्चात सरकारी क्षेत्र के बैंकों के सहयोग से देश विकास की गति पर दौड़ने लगा था।
हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, औद्योगिक क्रांति एवं आईटी क्रांति राष्ट्रीय कृत बैंकों की देन है। इन बैंकों ने देश के अंदर स्वरोजगार एवं रोजगार पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सन 2008 में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी के दौरान अमेरिका, यूरोप एवं अन्य देशों के आर्थिक संस्थान एवं निजी बैंकें ताश के पत्तों की तरह ढह गई। इस कारण यह देश आर्थिक मंदी का शिकार हुए। लेकिन उस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीयकृत बैंकों ने बचाया।
वर्तमान में बैंकों के निजी करण कि नहीं बल्कि बैंकों में लगातार बढ़ रहे खराब ऋणों की राशियों की वसूली के लिए कठोर एवं कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है। जानबूझकर बैंकों का ऋण नहीं चुकाने वालों को अपराधी घोषित किया जाए, जानबूझकर बैंक ऋण नहीं चुकाना दंडनीय अपराध की श्रेणी में लाया जाए एवं खराब ऋणों की वसूली के लिए कठोर एवं कारगर कदम उठाए जाएं ।
वक्ताओं ने देश की जनता से अपील की कि वह आम जनता की जमा राशियों की रक्षा के लिए बैंक कर्मियों के संघर्ष एवं आंदोलन को समर्थन प्रदान कर निजीकरण को रोकने की मुहिम में अपना सहयोग प्रदान करें। उन्होंने बताया कि 9 फरवरी 2021 को संगठन की राष्ट्रीय स्तर की मीटिंग में निजीकरण के विरोध में आंदोलन को और तेज करने का निर्णय लिया जाएगा। जिसमें राष्ट्रव्यापी बैंक हड़तालें भी शामिल होंगी।