बीस की टीस के साइड इफेक्ट्स
प्रकृति के प्रकोप से मनुष्य कितना बेबस व विवश हो जाता है,वर्ष दो हज़ार बीस कितनी टीस दे गया ये वो ज्यादा जानते हैं, जिन पर कहर बन कर टूटा।कितने ही प्रतिष्ठित बुद्विजीवी, कर्मयोद्धा, परिचित काल के गाल में समा गये।बिस्तरों की कमी,डॉक्टरों, नर्सो, सफाई व पुलिस कर्मियों की मौत–बड़ा भयानक और दर्दनाक मंजर था,जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था इससे भी अधिक भयानक था मरते हुए इन्सान के सिर पर अपनों का हाथ न रख पाना,अर्थी को कंधा न दे पाना,दिनप्रतिदिन मौत के आंकड़े बढ़ते जाना,चिन्ता ओर भय का विषाक्त वातावरण,आर्थिक समस्याएं, मज़दूरों का पलायन,बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी, सारा देश बन्द की स्थिति में,काम बंद,लोग घरों में कैद, मन्दिर मस्जिदों में ताले, गरीबो के चूल्हे जलना बन्द,तत्काल सभी सरकारों,कुछ सामाजिक संस्थाओं ने जीवन यापन की सामग्री व भोजन की व्यवस्था की। भागते दौड़ते इंसान की दुनिया थम गई, व्यग्रता व बेचैनी व्याप्त हो गई।व्हाट्सएप, फेसबुक आदि ऑनलाइन कार्यक्रमों से भरने लगे।यही साधन था लोगों के पास अपनी व्यथा कहने का!
सकारात्मक दृष्टि से देखा जाये तो यह वर्ष किसी बड़े बुजुर्ग की तरह आया और बहुत सारी नसीहतें दे गया।मिलकर रहना,मितव्ययिता, समान आदर, समभाव, दिखावटी बनावटी दुनिया का सच,इन्सानियत, बच्चों को परिवार का सान्निध्य, शिक्षा का ऑनलाइन होना,बस्तों का बोझ समाप्त होना,वर्क फ्रोम होम की अवधारणा का विस्तार,संस्कार व शिक्षा परिवार द्वारा बच्चों को मिलना,सभी कुछ तो सिखाया है इस कोरोना काल ने हमें!सबसे बड़ी उपलब्धि तो पर्यावरण प्रदूषण से प्रकृति को राहत मिलना है!साहित्यकारों को मंच मिले, युवावर्ग भी साहित्य के प्रति आकर्षित हुआ, समय का सदुपयोग सृजन में हुआ,ढेर सारी रचनाएँ व पुस्तकें इन दिनों छपीं! 2020 के जाते जाते कुछ कोरोना प्रभाव पहले से कम हुआ तो नये वर्ष में नए स्ट्रेन के आगमन ने सब के चेहरों पर चिन्ता की लकीरें खींच दी!हमें स्वयँ को मजबूती दे सुप्त होती ऊर्जा को जागृत कर सर्वजन सुखाय की भावना से जागृत कर ऊर्जावान बनना होगा।अब नए टीकों के आने की खबर से सब मे एक नवीन आशा का संचार हुआ मानो जीने की जिजीविषा को एक नया रूप मिल गया।
कितने ही साइड इफेक्ट्स से दो चार हुए इस बीस की टीस के बीच:-
*2020 ने हमे संघर्ष करना सिखाया! स्वच्छता, सफाई की जरूरत समझाई!
*एक दूसरे की मदद करने का भाव जगाया। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी!
*मौत से पहले के वक्त की अनुभूति! पैसा ही सब कुछ नहीं है!
*प्रकृति की महत्ता को जाना! एहसास हुआ सबसे ज्यादा सुख अपने परिवार व घर में!
*एकल परिवार से सामुहिक परिवार अच्छा! साफ सुथरा,स्वच्छ जीवन जीना कोई कठिन कार्य नहीं!
*हम व हमारी सन्तान बिना जंक फूड के बिना भी रह सकते हैं! भोजन बनाना केवल महिलाएँ ही नहीं जानती!
*पुरुष भी चाहें तो घर के काम में खूब हाथ बंटा सकते हैं! विश्व के अधिकतर लोग अपना कार्य घर से भी कर सकते हैं!
*बिना उपभोग के विश्व में सोना,चाँदी व तेल का कोई महत्व नहीं! पहली बार पशु व परिन्दों को लगा कि यह सँसार उनका भी है।
*तारे वास्तव में टिमटिमाते हैं यह विश्वास बड़े शहर के बच्चों को पहली बार हुआ! यूरोपीय उतने शिक्षित नहीं जितना उन्हें समझा जाता था!
*विकट समय को सही तरीके से भारतीय ही सम्भाल सकता है! भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विश्व के लोगों से बहुत ज्यादा है!
*हम अपनी छुटियाँ बिना यूरोप या अमेरिका गये भी आनन्द के साथ बिता सकते हैं! लोगों को पता चला कि भारत में एक से बढ़ कर पर्यटन स्थल हैं।
*अच्छा जीवन मिला है, इसे अच्छे से जिओ! आज अमेरिका अग्रणी देश नहीं है!
*कोई पादरी,पुजारी,ग्रन्थी, मौलवी या ज्योतिषी एक भी रोगी को नहीं बचा सका! कुछ अपवाद को छोड़ भारतीय अमीरों में मानवता कूट कूट कर भरी हुई है!
*गरीब व मध्यम वर्ग भी कम संसाधन के बावजूद भी यथासंभव मदद करने का स्वभाव नहीं त्यागता! यह सीख भी मिली कि कभी कुछ भी हो सकता है,सजगता जरूरी है!
हमारी नादानियों ने तो हमें बहुत कुछ सीखा दिया,अब सम्भलना ही बेहतर है। अभिनेता केवल मनोरंजनकर्ता हैं, जीवन में वास्तविक नायक नहीं!
*धर्मिक स्थानों से अस्पतालों के निर्माण ज्यादा जरूरी! सम्पूर्ण विश्व को एक पल में शान्त रखने की ताकत प्रकृति में है!
-राजकुमार अरोड़ा गाइड
कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरि०)
मो०9034365672