बाकी है लिखा जाना प्रेम का अंतिम नगमा
पढ़ कर प्रेम की कविताएँ
आभास होने लगता है
शायद धूल गए है द्वेष समाज से
जैसे पहली बरसात में धूल जाते हैं
पेड़ के पत्तो पर पड़े गर्द
छट जाता है प्रदूषण का धुंध
और सूर्य की तेज किरणें ऐसे आती है पृथ्वी पर
मानो वह व्याकुल हो आलिंगन के लिए
पढ़ के मोहब्बत की कविताएँ
आभास होने लगता है
शायद भूल गए हैं लोग वैर-भाव आपस के
बन्द हो गए धर्म के नाम पर दंगे
आशिकी को मिल गया है अनुमोदन
अब नहीं दी जाएगी प्रेमी जोड़ों को फाँसी
पढ़ कर प्रीति की कविताएं
आभास होने लगता है
विरक्त होकर नहीं जी रहा कोई आशिक
स्नेह को मिल गया है हौसला
और सपने पर लगाये उड़ रहे हैं सातवें आसमान पर
अब आशिक अपनी मासूका से मिल जाएगा
जैसे मिलता है पर्वतारोही एवरेस्ट की चोटी से
पढ़ कर उल्फ़त भरे नज़्म
दिल्लगी की गज़लें
और प्यार भरे अशआर
आभास होता है खत्म हो गया विद्वेष लोगों में
जो सुरसा की तरह मुँह बढ़ाता जा रहा था समाज में
अलग अलग भेदभाव के रूप में
लेकिन प्रेम का अंतिम नगमा लिखा जाना बाकी है
वह ऐसा होगा जो दफन कर देगा घृणा को सदा के लिए
और फिर अंकुरित होगा एक नया बीज
जो प्रेम का विशाल वृक्ष का लेगा रूप
जिसके नीचे लोग पा सकेंगे
प्रेम, दया और करुणा की सीख
और भर देंगे दुनिया को अनुराग से।
सन्तोष पटेल , नई दिल्ली