फेस मास्क – कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक आवश्यक कवच

By- डॉ. समीरन पांडा, प्रमुख, महामारी विज्ञान और संचारी रोग (ईसीडी), आईसीएमआर

कोविड-19 के आगमन के साथ फेस मास्क पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ है। पिछले एक साल में फेस मास्क पर सार्वजनिक चर्चाओं और राजनीतिक बहस में अभूतपूर्व चर्चा हुई है। बातें खासकर के फेस मास्क के उपयोग करने या न करने के साथ-साथ मास्क उपयोग करने की उपयुक्त स्थिति पर केंद्रित रही हैं । श्वास प्रश्वास सम्बंधी संक्रमण सूक्ष्म जीव-युक्त बूंदों (> 5-10 μm) और एरोसोल (5 μm) के संचरण के माध्यम से होते हैं, जो सांस लेने, बोलने, खांसने और छींकने के दौरान संक्रमित व्यक्तियों से बाहर निकलते हैं, इन संक्रमण का जोखिम फेस मास्क पहनकर कम किए जा सकते हैं।

रोग की रोकथाम के लिए सामुदायिक स्तर पर फेस मास्क का उपयोग मंचूरियन प्लेग (1910-1911) के समय पहली बार किया गया। इस महामारी के दौरान रोग की रोकथाम पर काम करने वाली टीम को न्यूमोनिक प्लेग के हवा के जरिए जरिए फैसले का संदेह हुआ। इस वजह से उन्होंने रोगियों को एकांत में अलग रखने के अलावा गेज मास्क पहनने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके कुछ साल बाद 1918 के इन्फ्लूएंजा महामारी (जिसे स्पेनिश फ्लू के रूप में जाना जाता है) के दौरान बहु-स्तरीय गेज मास्क के उपयोग को पश्चिमी देशों में रोकथाम के रूप में उपयोग किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से मास्क के उप-गुणवत्ता और कुछ हद तक इसके उपयोग के प्रति सार्वजनिक अनिच्छा की वजह से इसका प्रभाव कम देखा गया। हालांकि लगभग एक सदी बाद संक्रामक रोगों से संबंधित नई खोज और प्रगति की वजह से फेस मास्क गंभीर श्वसन सिंड्रोम (SARS), मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम (MERS) और अब कोरोना वायरस से जन्मे कोविड-19 के खिलाफ बचाव की पहली पंक्ति बन गया।

कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में कोरोना वायरस के संचार के बारे में कई भ्रांतियां थी। लेकिन इसके बावजूद पूर्वी एशियाई देशों जैसे हांगकांग, ताइवान और दक्षिण कोरिया ने सार्वजनिक स्थानों पर फेस मास्क पहनने को बढ़ावा दिया। यह व्यवहार इन देशों में कोरोना वायरस की महामारी के पिछले अनुभव की वजह से देखा गया। इसके विपरीत पश्चिम देशों में मास्क पहनने को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए कुछ सरकारी अधिकारियों की शुरुआती हिचकिचाहट से संक्रमण बढ़ने में अपेक्षाकृत तेजी देखी गई। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर 14 मार्च, 2020 से ही फेस मास्क को अनिवार्य किया जाता तो शायद मई के अंत तक करीब 19,000-47,000 लोगों की जान बचाई जा सकती थी। इसी तरह कनाडा में एक अध्ययन में फेस मास्क की वजह से साप्ताहिक कोविड-19 मामलों में 25 प्रतिशत तक की कमी का अनुमान लगाया गया था। वहीं जर्मनी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक मास्क के इस्तेमाल से कोविड-19 मामलों की दैनिक वृद्धि दर में 40 प्रतिशत तक की कमी का अनुमान लगाया गया है।

भारत में 30 जनवरी, 2020 को कोविड-19 के पहले केस के पहचान के बाद यात्रा प्रतिबंध से संबंधित प्रारंभिक एडवाइजरी जारी की गई। इसके तत्पश्चात् देश में सार्वजनिक रूप से फेस मास्क के उपयोग को प्रोत्साहित किया गया। इस पृष्ठभूमि में ध्यान देने योग्य बात यह है कि कई राज्यों में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण (दूसरा दौर) से पता चला कि सितंबर-2020 के मध्य तक वयस्क आबादी के केवल सात प्रतिशत में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी थी। जबकि मई-जून 2020 में हुए सर्वेक्षण में केवल 0.7 प्रतिशत में एंटीबॉडी की पहचान हुई । इसके संकेत मिले कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी तक वायरस से बचा हुआ था और इनमें संक्रमण होने की आशंका अतिसंवेदनशील थी। शुरुआती जनवरी 2021 में राष्ट्रीय सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण का तीसरा चरण पूरा किया गया जिसके प्रारंभिक आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि अब तक आबादी के एक-चौथाई से अधिक हिस्से में ही संक्रमण फैला है और हम सामाजिक प्रतिरक्षा से अभी भी बहुत दूर हैं।

फेस मास्क के प्रभावी होने के लिए उसका उचित उपयोग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। हाल के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि 44 प्रतिशत भारतीय ही दिशा निर्देशों के मुताबिक ठीक तरीके से फेस मास्क का इस्तेमाल कर रहे थे। अंत में यह समझना महत्वपूर्ण है कि फेस मास्क का उपयोग किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप का महत्वपूर्ण हिस्सा है। फेस मास्क के अलावा दूसरे उपायों से भी कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्तियों से अतिसंवेदनशील लोगों को सुरक्षित रखा जा सकता है। कोरोना वायरस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए हाथ की स्वच्छता और शारीरिक दूरी के साथ-साथ फेस मास्क का व्यापक उपयोग अहम है।

पर्यावरण में संक्रामक श्वसन बूंदों के प्रसार को सीमित करने के अलावा, फेस मास्क सस्ती, उपयोग में आसान और व्यावहारिक हैं खासकर के उन स्थानों पर जहां शारीरिक दूरी रख पाना मुश्किल प्रतीत होती है। चेहरे पर मास्क दूसरों के लिएअनुस्मारक के रूप में काम कर सकता है, विशेष रूप से वर्तमान परिवेश में जब लोग रोकथाम के उपाय नजरअंदाज कर रहे हैं। इस प्रकार मास्क पहनने वाले लोग न केवल सहकर्मी पर दबाव बनाने में मदद कर सकते हैं बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए एम्बेसडर के रूप में भी काम कर सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर तत्परतापूर्वक उचित फेस मास्क पहनने का प्रयास करे। फेस मास्क का इस्तेमाल लम्बे समय के लिए रहने वाला हैं, कोविड-19 टीकाकरण की शुरुआत के बाद भी आबादी में वैक्सीन – प्रेरित प्रतिरक्षा के उत्पन्न होने में कुछ समय लगने वाला है। अंत में, यह भी महत्वपूर्ण है कि यद्यपि टीकाकृत व्यक्तियों में रोग होने का जोखिम कम होता है, लेकिन वो फिर भी दूसरों को वायरस फैलाने में वाहक हो सकते हैं और इसलिए उन्हें फेस मास्क का उपयोग जारी रखना होगा। 

Related Articles

Back to top button