नव निर्माण से जल्द नए रूप में दिखेंगे हुसेनाबाद के दुबे कुल के आराध्य काश नारायण बाबा

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बलिया/हुसेनाबाद (माइकल भारद्वाज) । जनपद बलिया भृगु की धरती वैसे भी दैविय गाथाओं से भरी हुई और पूजनीय धरती है। यहां एक- एक पत्थरों में निष्ठा देखी जाती है ।यह माना जाता है कि कण-कण में भगवान है। हुसेनाबाद चारों दिशाओं से मंदिर और तालाबों की विभिन्न पौराणिक कथाओं से सुसज्जित है। हुसेनाबाद के पूर्वी छोर पर भगवान शिव (रामनाथ बाबा) के साथ मां सिद्धेश्वरी विद्यमान है।

पश्चिम दिशा में साधु बाबा तो उत्तर और दक्षिण दिशा में रमन बाबा तथा औलिया की मजार पूजनीय सुशोभित है। ऐसा मान्यता है कि इस गांव की रक्षा देवी देवता अपने दैवीय धर्म से सदा करते आए हैं। इसी कड़ी में मैं जनपद बलिया संवाददाता माइकल भारद्वाज एक बहुत ही पुराने मंदिर जो हुसेनाबाद में स्थित है। उसके बारे में वहां के लोगों से जानने की कोशिश किया तो इसी गांव के राजेंद्र दुबे ने बताया कि जिस धरती पर काशनारायण बाबा के मंदिर का नव निर्माण हो रहा है।

यह मंदिर हम दुबे परिवार के आराध्य हैं ।इन्हें पूरा दुबे परिवार पूजता है। हम लोगों को भी इस बात की सही जानकारी नहीं है कि कई वर्ष गुजर गए । यह हम लोगों के जन्म से पहले का मंदिर है। कुछ लोगों का कहना है कि जब हुसेनाबाद गांव का जन्म हो रहा था उस समय यहां सिर्फ दो ही लोग थे । एक ठाकुर जी और एक काशनारायण बाबा।

इस मंदिर में ठाकुर जी और काशनारायण बाबा दोनों लोगों की पूजा की जाती है जबकि सबसे पहले ठाकुर जी की पूजा की जाती है, उसके बाद काशनारायण बाबा की पूजा की जाती है।

इसी गांव के परमात्मानंद तिवारी ने बताया कि कहा जाता है कि ठाकुर जी और काशनारायण बाबा दोनों परम मित्र थे और हुसेनाबाद के ये पहले व्यक्ति हैं जो दोनों भक्ति विचारों वाले थे। हुसेनाबाद के पहले व्यक्ति होने के नाते इन्हें सदा सदा के लिए पूजा जाता है। इसी गांव के समाजसेवी श्री राजेंद्र तिवारी जी का कहना है कि लगभग यह मंदिर 400 साल पुराना है और हम सब का आराध्य मंदिर है।

अब पुन: नए सिरे से निर्माण किया जा रहा है जिसमें पूरे हुसेनाबाद के लोगों की एक अहम भूमिका है ।बताया जा रहा है कि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जनार्दन दुबे की है। इसके निर्माण में कोई सरकारी फंडिंग नहीं है। लोग अपनी स्वेच्छा से चंदा के रूप में जो भी दे रहे हैं उसे स्वीकार किया जा रहा है।

इसके बाद जैसे ही हमने वहां के मजदूरी करने वाले मजदूरों से बात किया तो उन्होंने बताया कि हम लोग भी ने अपना आराध्य मानते हैं और हम लोग यह तय किए हैं कि जितना दिन काम करने में लगे उसमें से दो दिन की मजदूरी चंदा के रूप में बाबा के नाम पर दे देंगे।

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