जीरो क्वेश्चन, जीरो कम्प्लेंट
निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ
भारत देश मानव सभ्यता को अपनातते हुये विश्व के प्राचीनतम देश मे एक रहा हैं ,विज्ञान का जन्म भी भारत की ही देन है। जहा राजनैतिक ,सामाजिक ,आर्थिक संपन्नता का विश्व मे अपनी अनूठी पहचान का डंका बजता रहा था ।
प्राचीन में भारत हर वर्ग की, चाहे उच्च हो या निम्न सभी कर्मशील रहते हुये अपने आर्थिक सम्पन्नता का स्वर्णिम युग बना। तब शासक प्रशासक दोनो निस्वार्थ भाव से जनता के हित मे कार्य करते रहते है व “सोने की चिडिया “नाम से अपने देश को प्रगतिशील दर्जा प्रदान किया गया। तब हर व्यक्ति सिर्फ अपने कर्मो मे लीन रहता था , ना ही अधिक शिकवा ना शिकायत उसमे भी बडी बात संयुक्त परिवार का साथ जहा हर सुख दुख साथ मे बटता था और पैसो की बरकत भी अनन्त रुप मे हुआ करती थी।
उच्च शिक्षा दीक्षा व पारिवारिक कर्तव्य
वर्तमान में बच्चे अपनी उम्र के अनुसार संस्कार व संस्कृति के चरणो को पारिवरिक परंपरा अनुसार सीखते रहते हैं। उच्च शिक्षा दीक्षा व पारिवारिक कर्तव्यो का निर्वाहन किया करते है। लेकिन वहा भी अब एकाकीपन ने अपनी दस्तक देकर कयी नयी बिमारियों को जन्म दे दिया आश्चर्य जिसमें अवसाद या उच्च या निम्न रक्तचाप, डाईबटिज, व नशे की लत आदि को जन्म दे दिया हैं जो पुर्व मे सुनने मात्र से ही दिल को दहला देने वाली बाते हुआ करती थी अब आम जिन्दगी का हिस्सा बन रही।
हाल ही मे एयर-टेल कंपनी का एक विज्ञापन देखा जिसमे पुरे देश मे “जीरो क्वेश्चन,जीरो कम्प्लेंट” का एक विकासवादी विज्ञापन देखा। विचारणीय है , ओर हर्ष का विषय कब वह दिन आयेगा जब देश तो ठीक शहर व देश हर वर्ग के जीरो क्वेश्चन का दौर आयेगा। जीरो क्वेश्चन से उपजेगा जीरो कम्प्लेंट का दौर ।
कितना सुहावना समय होगा जब किसी को कोई शिकायत व प्रश्न नही होगा। वर्तमान मे जब प्रशासन मे जहा सैकडों विवादो व शिकायतों की भरमार ओर निराकरण के नाम पर जीरो रिजल्ट जहा रिजल्ट के नाम पर सार्थकता मे भी संशय। विचारणीय हैं ।जहा देश व राज्य जहा नेता-मन्त्री व आई ए एस व आई पी एस ऑफिसर से लेकर पुर्ण सरकारी तन्त्र की प्रसुप्तता या निष्क्रियता करोड़ो प्रश्नो को जन्म दे रही है।
मानवीय भाव अभिव्यक्ति के प्रत्यक्ष व्यवहारिक दृष्टिकोण को प्रशासन अपने जीवन मे उस रुप में अपनाते हुये मानवीय वेदना को एकतरफा कर दिया गया। एक चिंतन ये भी हैं कि मानवीय वेदना का हनन उन बच्चो व स्त्रियो के लिये भी बढता जा रहा हैं ।
एक आम व्यक्ति या पदो पर रहते हुये मेने स्वयं भी कई जगह न्याय दिलवाने की जब अकेले दौड लगाई तब ये जाना की सरकारी तन्त्र को सिर्फ ओर सिर्फ हवाई योजनाओं की कागज की मछली बनाकर एक बच्चो के कागज राकेट की तरह मंत्रालय मे उछाल दिया जाता। नतिजा “जीरो रिजल्ट” लेकिन जो स्टेज पर घोषित ड्रामा दिखाया जाता वह सम्मानित द्रष्टिकोण से हवा मे प्रचार प्रसार किया जाता हैं।
कई बार कई ऑफिसर या आई ए एस को ये कहते सुना हैं कि, अगर हम सरकार की ताल से ताल ना मिलाए तो पद पर रहना मुशिकल है ऐसे मे सिर्फ कैसे भी दिए टारगेट को पुरा करना कागजो पर वाकई ऐसे मे राष्ट्रवाद की बात खोखली साबित होगी क्योंकि हम खुद अपनी नजरो मे परिपूर्ण नही दिखेंगे ।
जज्बा बनाये रखना जरुरी
फ़िलहाल ‘जहा एक आम भारतीय नागरिक कोरोना काल मे कई पारिवरिक आर्थिक व सामाजिक समझौतो किये जैसे तैसे अपनी जिन्दगी को आमलीजामा पहना रहा । वह भी मौन रहकर क्योंकि उसे पता हैं सम्भव नही अपने प्रश्नो की शिकायत का निराकरण करवा पाना। वही देश मे युवा भी अब अपने अपने क्षेत्र मे जूनून व जज्बा बनाये रखना जरुरी,लेकिन इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भ्रमित सा जीवन जी रहा ।
गुमनाम सी जींन्दगी मे अपना अस्तित्व खोता जा रहा । वही स्वयं की समस्या के समाधान के लिये अब तक निर्भर हैं।
बहरहाल, जब हम अपने “अधिकारो व कर्तव्यो” अनभिज्ञ हो तभी शुरु होता हैं आवश्यकता पड़ने पर शिकायती प्रश्नो का दौर और विडंबना हैं भारत वर्ष की हम बच्चे की नीव भी इसी अनभिज्ञता की जड मे पनपने दे रहे तभी तो वह नन्हा युवा होने पर भी एक बौने से स्वरुप को प्रगट करता है जहा अपनो से दूरी ओर अपने आस पास पथभ्रमित भौतिकवादीता जुडी होने पर प्रारब्ध को भोग रहा होता हैं। जड से रोग को दुर करने की शिकायत प्रश्न नही वरन प्रकृती के अनुरूप उसकी समस्या का निवारण जरुरी है ।
शिक्षा के साथ “वेद से विज्ञान “का पुर्ण अध्ययन तभी तो जानेगा वेद से ही विज्ञान का जन्म हुआ अथार्त स्वयं को जानना। जिससे सक्षम युवा जीरो क्वेश्चन,जीरो कॉम्प्लेंट एक प्रगतिशील परिवार,समाज व देश का निर्माण हो सकेगा।