जले सपने, कैसे बुझाऊ

जले सपने, कैसे बुझाऊ, बहती आंखों से..
की ये झुलसे हैं, इस तरह, नमकीन आहो से..

वो माटी के थे घर, टिकते कैसे,
लिखे जो नाम पानी पर, वो रुकते कैसे,
की ये वजह है , तुम्हे बताऊं, कैसे होठो से..

जले सपने, कैसे बुझाऊ, बहती आंखो से…

मेरी तनहाई से सरका पर्दा कैसे ,
तुमने झाक कर देखा मुझ को जैसे ,
की ये सपना है ,टूट ना जाए , मुझ को छूने से…

जले सपने, कैसे बुझाऊ, बहती आंखो से…

गरिमा खंडेलवाल 
उदयपुर 

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