गूलर के चमत्कारी फायदे: छाल और पत्ते, फल हैं कई रोगों के रामबाण इलाज

विचार—विमर्श

गूलर से तो ग्रामीणजन लगभग सभी परिचित होंगे। गूलर लंबी आयु वाला पेड है। इसका वनस्पतिक नाम फीकुस ग्लोमेराता रौक्सबुर्ग है। यह भारत में हर जगह पाया जाता है।

यह नदी−नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है। उत्तर प्रदेश के मैदानों में अपने आप ही उग जाता है। गूलर पत्ते 10 से 17 सेंटीमीटर लंबे होते हैं जो जनवरी से अप्रैल तक निकलते हैं। इसकी छाल का रंग लाल−घूसर होता है।

फल गोल, गुच्छों में लगते हैं। इसके फल मार्च से जून में लगते हैं। कच्चा फल छोटे और हरे रंग के होते है पकने पर फल मीठे, मुलायम तथा छोटे−छोटे दानों से युक्त होते है।

आयुर्वेदिक इलाज में गूलर एक महत्वपूर्ण इलाज है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार गूलर का कच्चा फल कसैला एवं दाहनाशक है। पका हुआ गूलर का फल रुचिकारक, मीठा, शीतल, तृषाशामक, पित्तशामक, श्रमहर, कब्ज मिटाने वाला तथा पौष्टिक है। इसकी जड़ में रक्तस्राव रोकने तथा जलन कम करने का औषधीय गुण है।

गूलर के कच्चे फलों की सब्जी भी बनाई जाती है तथा पके फल खाए जाते हैं। इसकी छाल का चूर्ण बनाकर उपयोग किया जाता है। गूलर के नियमित खाने से शरीर में पित्त एवं कफ के विकार को दूर करता है। इसके साथ ही इससे उदरस्थ अग्नि एवं दाह भी कम होते हैं।

पित्त रोगों में इसके पत्तों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन भी फायदेमंद होता है। गूलर के तने के दूध का लेप हाथ−पैरों की त्वचा फटने या बिवाई को जड से खत्म कर देता है।

गूलर से स्त्रियों की मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं भी दूर कर देता है। स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने पर इसकी छाल के काढ़े का सेवन फायदा पहुंचाता है।

इससे अत्याधिक बहाव रुक जाता है। ऐसा होने पर गूलर के पके हुए फलों के रस में खांड या शहद मिलाकर पीना भी लाभदायक होता है। विभिन्न योनि विकारों में भी गूलर काफी फायदेमंद होता है। योनि विकारों में योनि प्रक्षालन के लिए गूलर की छाल के काढ़े का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है।

मुंह में छाले को गूलर के पत्तों या छाल का काढ़ा मुंह में भरकर कुछ देर रखने पर फायदा होता है। इससे दांत हिलने तथा मसूढ़ों से खून आने जैसी विकार भी लगातार दो सप्ताह करने से दूर हो जाता है।

आंखें लाल होना, आंखों में पानी आना, जलन होना आदि के उपचार में भी गूलर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ और महीन कपड़े से छान कर, ठंडा होने पर इसकी दो−दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालने से नेत्र ज्योति भी बढ़ती है। नकसीर फूटती हो तो ताजा एवं पके हुए गूलर के लगभग 25 मिली लीटर रस में गुड़ या शहद मिलाकर सेवन करने या नकसीर फूटना बंद हो जाती है।

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