ख़्याल

कुछ दिनों से मेरी तबीयत बहुत नासाज़ है… इन दिनों मुझे एक अलग ही अहसास मिला |न जाने क्यूँ फूट फूट कर रोना चाहती हूँ अपने मन की वो सारी पीड़ा बहा देना चाहती हूँ जो भीतर से मुझे घुन की तरह खोखला कर रही है | अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में माँ को ज्यादा वक़्त नहीं दे पाती हूँ कुछ काम और पढ़ाई का बोझ कुछ दूसरी जिम्मेदारियाँ |

साल के बीतते बीतते इस बार तबीयत ने धोखा दे दिया | पिछले हफ्ते से स्वास्थ्य ठीक नहीं.. दवाई देखकर नफरत सी होती है | मन में बहुत उथल-पुथल चल रही है.. कुछ भी अच्छा नहीं लगता..न खाने का मन होता है | बस एक बात अच्छी हुई कि माँ का वो लाड एक और बार करीब से महसूस किया | माँ को हजारों काम होते हैं फिर भी वो मेरी तबीयत के लिए बहुत परेशान रहती हैं |मेरा नाश्ता,दवाइयों का ध्यान और हजारों दुआएं ,मन्नते इसी में दिन बीत जाता है |

जब तक उनके मन को तसल्ली न हो जाए पास बैठकर अपने नरम हाथों से मेरा माथा सहलाती हैं और सिर अपनी गोद में रखकर मुझे स्नेह देती हैं | उनकी गोद की गरमाहट ले मेरी सारी तकलीफ़ एक झटके में दूर हो जाती है | कल रात माँ के लिए सोचते समय आँखें डबडबा गई और मोटे-मोटे दो आंसू मेरे गालों से ढुलककर तकिए में समा गए | ख़्याल बस यही आया दुनिया माँ की तरह अच्छी क्यूँ नहीं…..?

शिवानी त्रिपाठी ‘सोना’
मीरापुर, प्रयागराज

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