कोरोना से होने वाली मौतों का कारण अवैज्ञानिक दवाइयां और इनकी अधिक मात्रा है:विवेकशील अग्रवाल
नयी दिल्ली। देश की एक रिसर्च संस्था निरामया रिसर्च फाउंडेशन ने हाल ही में देश और विदेश के चिकित्सकों के साथ मिलकर कोरोना से होने वाली मौतों का कारण जांचने की पहल की।
मौजूदा ट्रेंड और कोरोना होने पर दिए जाने वाली दवाइयों पर जब आंकलन किया तो रिसर्च में पाया गया कोविड-19 में होने वाली भयंकर समस्याओं और मौतों का कारण वायरस नहीं अपितु आरम्भ में दी जाने वाली अवैज्ञानिक और उग्र औषधियां हैं।
यह रिसर्च पेपर को संसथान द्वारा भारत सरकार के स्वास्थ मंत्रालय, ICMR, मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया , इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और नीति आयोग को भेजा जा चुका है।
ट्रस्ट के चेयरमैन श्री विवेक शील अग्रवाल का कहना है कि कोरोना के उपचार में बड़ी मात्रा में आरम्भ में ही दी जाने वाली पेरासिटामोल सहित अन्य औषधियां वैज्ञानिक रूप से पूर्णतया अशुद्ध हैं और अत्यधिक हानिकारक हैं।
विश्व भर का कोई भी वैज्ञानिक शोध यह नहीं मानता कि वायरस इन्फेक्शन में बुखार को उतारने की दवाइयां लेनी चाहिए, अपितु सभी शोध इस बात का समर्थन करते हैं कि यदि वायरस इन्फेक्शन में बुखार को नीचे किया जाता है तो उससे न केवल रोग की अवधि लंबी होती है, अपितु मृत्यु दर भी बहुत बढ़ जाती है।
विश्व के सर्वाधिक मान्यता प्राप्त मेडिकल जनरल्ज़ में छपे के शोधों के आधार पर बनाया गया यह शोधपत्र यह भी बताता है कि पेरासिटामोल लेने से किस प्रकार मानव शरीर की रोग से लड़ने की स्वाभाविक प्रक्रियाओं में बाधा होकर न केवल साइटोकाईन स्टोर्म जैसी भयानक स्थिति बनती है, अपितु फेफड़ों में इन्फ्लेमेशन और शरीर में खून का जमना आदि प्रक्रियाएं भी आरंभ हो जाती हैं और बड़ी संख्या में रोगियों की मृत्यु हो जाती हैं।
श्री अग्रवाल ने बताया कि पिछले 70 वर्षों से इतनी बड़ी मात्रा में खिलाई जाने वाली पेरासिटामोल का आज तक वायरस इन्फेक्शन में मनुष्यों पर कोई भी ट्रायल विश्व भर में नहीं हुआ। जानवरों पर जब ट्रायल किए गए तो वह फेल हो गए। दूसरी ओर अनेकों ट्रायल में यह सिद्ध हो चुका है कि वायरस इन्फेक्शन में बुखार उतारने से ना केवल वायरस इनफेक्शन बढ़ती है अपितु शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता भी अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाती है और वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी नहीं बन पाती हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि वैक्सीन के बाद भी जो बुखार आता है उसे औषधि देकर उतारने से लोगों में एंटीबॉडी ठीक से नहीं बन पा रही हैं। लखनऊ के किंग जॉर्ज हॉस्पिटल के सर्वे में भी ऐसा ही सामने आया कि वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी केवल 7% लोगों में एंटीबॉडी बन पाईं।
कोविड की वैक्सीन लगाने के बाद भी बड़ी संख्या में लोगों का मारा जाना चिंताजनक तो है ही पर पह डाटा भी इकट्ठा कर पड़ताल होनी चाहिए कि क्या वैक्सीन लेने के तुरंत बाद पैरासिटामोल और उसके बाद जब तबीयत और बिगड़ती है तो अन्य एण्टीबायोटिक, स्टीरायड आदि मौतों का कारण बन रहे हैं।
श्री विवेक अग्रवाल का दावा है कि यदि इस शोध पर भारत की वैज्ञानिक संस्थाएं गहन पड़ताल करें और अवैज्ञानिक ढंग से दी जाने वाली दवाओं को रोक दें तो करोना कि अगली लहर में न किसी व्यक्ति को हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता होगी, न ही किसी को ऑक्सीजन के लिए तड़पना पड़ेगा।
आईसीएमआर के अध्यक्ष डॉ. बलराम भार्गव, कोविड-19 नैशनल टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. पॉल, ऐम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया तथा अन्य अनेक विख्यात डॉक्टरों को प्रेषित किये गए इस शोध पत्र का समर्थन किया है जिनमें प्रमुख हैं डॉ. संजय जैन, एमएस, अमेरिका से डॉ.अनू गर्ग एमडी, डॉ.सुरेश अग्रवाल एमएस आदि।